मुंबई, ठाणे एवं पालघर जिलों में ‘हिन्दू राष्ट्र समन्वय समिति’ की स्थापना कर संगठित रूप से कार्य करने का निर्णय !
मुंबई – हिन्दू जनजागृति समिति के प्रवक्ता डॉ. उदय धुरी ने आवाहन करते हुए कहा, ‘देश के सामने खालिस्तान, जिहाद, आतंकवाद के साथ ही अन्य अनेक चुनौतियां हैं । इनका सामना करते हुए संवैधानिक मार्ग से भारत को हिन्दू-राष्ट्र घोषित करने के लिए हिन्दुओं को संगठित होना चाहिए ।’ १७ मार्च को कांजूरमार्ग में स्थित महावीर मैजेस्टिक सभागृह में हिन्दू जनजागृति समिति की ओर से आयोजित किए गए एक दिवसीय प्रांतीय हिन्दू राष्ट्र अधिवेशन में वे बोल रहे थे । इस समय व्यासपीठ पर परशुराम तपोवन आश्रम के संस्थापक भार्गवश्री बी.पी. सचिनवाला एवं हिन्दू जनजागृति समिति की मराठवाडा समन्वयक कु. प्रियांका लोणे उपस्थित थीं ।
मुंबई, ठाणे एवं पालघर जिलों के अधिवक्ता, उद्योगपति, डॉक्टर, सूचना-अधिकार के कार्यकर्ता, भिन्न भिन्न संप्रदाय, मंडलों के प्रतिनिधि सम्मिलित हुए थे । हिन्दू राष्ट्र समन्वय समिति की स्थापना कर हिन्दुत्वनिष्ठों ने संगठित रूप से कार्य करने का निश्चय किया । मार्गदर्शन करते हुए भार्गवश्री बी.पी. सचिनवाला ने आवाहन किया, ‘यदि हिन्दू राष्ट्र लाना चाहते हैं, तो हिन्दू समाज को प्राणवान बनाना पडेगा । हिन्दू बंधुओं को धर्मग्रंथों में विद्यमान ज्ञान का अध्ययन करना पडेगा ।’ कु. प्रियांका लोणे ने कहा, ‘हिन्दुओं पर भिन्न भिन्न माध्यमों से होनेवाले प्रहारों को रोकने के लिए हिन्दुओं को संगठित होना चाहिए । हिन्दू राष्ट्र स्थापना की दिशा एवं भूमिका निश्चित कर इस संबंध में कार्य होने के लिए हिन्दू राष्ट्र समन्वय समिति सभी स्तरों पर कार्यान्वित करना आवश्यक है ।’
अधिवेशन में ‘हिन्दू धर्म की रक्षा का कार्य’, ‘लव जिहाद’, ‘धर्मांतरण’ आदि विषयों पर परिसंवाद लिया गया । महाराष्ट्र के साथ ही मुंबई, ठाणे, रायगढ एवं पालघर जिलों के गढ-दुर्ग सहित अन्य ऐतिहासिक स्थानों के अतिक्रमण रोककर उनका संवर्धन करने का निश्चय किया गया । महाराष्ट्र मंदिर महासंघ के कार्य में अधिकाधिक मंदिर न्यासियों को जोडना, साथ ही आगामी समय में मंदिर-न्यास परिषद एवं गढ-दुर्ग परिषद आयोजित करने का निश्चय किया गया । इस अधिवेशन के भिन्न भिन्न सत्रों में विविध संगठनों के प्रतिनिधि एवं अन्य मान्यवरों ने उपस्थित लोगों का मार्गदर्शन किया । कार्यक्रम के समापन सत्र में सनातन संस्था की श्रीमती धनश्री केळशीकर ने राष्ट्र एवं धर्मकार्य करते हुए साधना करने का महत्त्व विशद किया ।