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संदेशखाली में यौन उत्पीड़न और डर का माहौल, अधिकारियों की लापरवाही

  • मानवाधिकार आयोग की आई रिपोर्ट

  • TMC सरकार को 8 हफ़्ते का समय

पश्चिम बंगाल के संदेशखाली में सत्ताधारी तृणमूल कॉन्ग्रेस (TMC) से निष्कासित शाहजहां शेख और उसके गुर्गों द्वारा महिलाओं का शोषण करने को लेकर देश भर में बवाल हुआ था। इस मामले में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) भी घटनास्थल पर पहुंचकर जांच की थी। NHRC ने इसको लेकर अपनी रिपोर्ट जारी है, जिसमें मानवाधिकार से जुड़ी कई चिंताओं को जाहिर किया गया है।

आयोग ने घटनास्‍थल पर की गई जांच में पाया कि पीड़ितों पर कई तरह से अत्याचार किए। आयोग का कहना है कि लोक सेवकों ने इसे रोकने में लापरवाही की, जिसके कारण मानवाधिकारों का खुला उल्लंघन हुआ। आयोग ने अपनी यह रिपोर्ट बंगाल के मुख्य सचिव और डीजीपी को भेज दी है। साथ ही आयोग द्वारा की गई सिफारिशों पर कार्रवाई की रिपोर्ट 8 सप्ताह में माँगी है।

दरअसल, संदेशखाली की महिलाओं के साथ शेख शाहजहां और उसके गुर्गों द्वारा किए गए यौन उत्पीड़न का NHRC ने स्वत: संज्ञान लिया था। इसके बाद आयोग ने पश्चिम बंगाल की सरकार से इस मामले पर रिपोर्ट माँगी थी। आयोग ने आरोपितों के खिलाफ उचित कार्रवाई करने की भी बात कही थी। इसके साथ ही आयोग ने एक सदस्यीय जांच दल को घटनास्थल पर जांच के लिए भेजा था।

आयोग द्वारा भेजे गए नोटिस के जवाब में पश्चिम बंगाल के डीजी और आईजीपी ने 29 फरवरी को बताया कि इस मामले में कुल 25 केस दर्ज किए गए हैं। इनमें से 7 केस महिलाओं के खिलाफ यौन अपराध की शिकायतों से जुड़े थे। इसके साथ ही इन मामलों में 24 व्यक्तियों को गिरफ्तार करने की बात भी कही थी। बाकी अपराधियों को जल्दी ही गिरफ्तार करने की बात कही गई थी।

NHRC ने अपनी जांच में पाया है कि संदेशखाली की पीड़ितों के मन में डर समाया हुआ है। आयोग ने सरकार से इस डर को दूर करने के लिए कहा, ताकि वे अपने परिवारों के साथ सामान्य जीवन जी सकें। पीड़ितों में विश्वास बहाली के लिए इलाके के अधिकारियों के साथ-साथ राज्य सरकार को भी कदम उठाने के लिए कहा है। जांच में आयोग ने निम्नलिखित तथ्य पाए हैं-

कथित आरोपित व्यक्तियों द्वारा किए गए अत्याचारों के कारण पीड़ितों को डराने-धमकाने वाला तथा खामोश करने वाला माहौल बन गया है। इस आतंक ने उनमें न्याय माँगने के प्रति अनिच्छा पैदा कर दी। यहां के लोगों को हमले, धमकी, यौन शोषण, भूमि पर कब्जा और जबरन अवैतनिक श्रम का सामना करना पड़ा। ऐसी परिस्थितियों में उन्हें आजीविका के लिए बाहर जाने के लिए मजबूर होना पड़ा।

संबंधित अधिकारियों द्वारा कथित व्यक्तियों के समूह के साथ मिलीभगत से सरकारी योजनाओं जैसे कि वृद्धावस्था पेंशन, मनरेगा, सार्वजनिक वितरण प्रणाली, घरों और शौचालयों के निर्माण के लिए वित्तीय सहायता आदि के में भेदभाव/अस्वीकार करने का आरोप है, जो गहरी चिंता का विषय है। इसके अलावा, वोट देने के अधिकार से वंचित करने का मामला भी सामने आया है।

प्रतिशोध के डर से इन व्यक्तियों ने शिकायतें नहीं की या देर की कीं।

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