७ साल जेल में गुजारे, मंदिर से लौटते समय कर लिए गए थे गिरफ्तार
केरल में एक मदरसा शिक्षक की हत्या के मामले में फंसाए गए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के तीन स्वयंसेवकों को आखिर न्याय मिल गया। हालाँकि, उन्हें अपने जीवन के ७ कीमती साल जेल में गुजारने पडे, लेकिन आखिर में कासरगोड के जिला एवं सत्र न्यायालय ने शनिवार (३० मार्च २०२४) को मामले में फँसाए गए सभी लोगों को बाइज्जत बरी कर दिया।
आरोपितों की ओर से पेश हुए वकील बीनू कुलम्मकड ने कहा, “तीन व्यक्तियों को बिना जमानत दिए सात साल तक अन्यायपूर्ण तरीके से जेल में रखा गया। पुलिस ने शुरू से ही यह मानकर जाँच शुरू की कि हत्या आरएसएस ने की है और इन लोगों को पकड़कर उसने अपनी प्रतिष्ठा बचाने का प्रयास किया। आरोपितों का पीड़ित के साथ कोई पूर्व संबंध नहीं था और वे उस स्थान से अपरिचित थे, जहां घटना हुई थी।”
वहीं, सरकारी वकील टी शाजिथ ने इन लोगों के खिलाफ कई तर्क दिए। न्यायालय ने दोनों पक्षों को ध्यान से सुना और अभियोजन पक्ष हत्या का उद्देश्य साबित करने में असफल रहा है। इसके बाद जज केके बालाकृष्णन ने अजेश, नितिन कुमार और अखिलेश को बरी करने का फैसला सुनाया। ये सभी लोग पिछले सात सालों से जेल में थे। इन्हें कभी जमानत भी नहीं मिली थी।
दरअसल, जिस व्यक्ति की हत्या में इन लोगों को फंसाया गया था उसका नाम रियास मौलवी था। मूल रूप से कर्नाटक के कोडागू जिले का रहने वाला ३४ साल का रियास मौलवी कासरगोड़ के चूरी इलाके में स्थित मुहायुद्दीन जुमा मस्जिद का मुइज्जिम और इससे जुड़े इस्सातुल इस्लाम मदरसा का मौलवी था।
साल २०२१ में २०-२१ मार्च की रात को कुछ बदमाश मस्जिद परिसर में घुसे और रियास मौलवी के दरवाजे को खटखटाया। जब मौलवी ने दरवाजा खोला तो बदमाशों ने उसे १४ बार चाकू मार दिया और वहां से निकल गए। ये पुलिस का कहना था। हालांकि, पुलिस इसके पीछे का मोटिव नहीं बता पाई। इसके कारण कासरगोड़ में सांप्रदायिक तनाव की स्थिति उत्पन्न हो गई।
इस हत्या के विरोध में इंडियन मुस्लिम लीग ने २१ मार्च २०१७ को हड़ताल का आह्वान करके प्रशासन पर दबाव बनाने की कोशिश की। आखिर उसी दिन DGP ने कन्नूर क्राइम ब्रांच के SP ए श्रीनिवास की अगुवाई में एक SIT का गठन कर दिया। २४ मार्च को पुलिस ने १९ साल के एस नितिन, २० साल के एस अजेश और २५ साल के एन अखिलेश को गिरफ्तार कर लिया।
SIT के मुखिया रहे ए श्रीनिवास ने ऑनमनोरमा ऑनलाइन को बताया कि तीनों आरोपितों का मृतक से पूर्व में जान-पहचान नहीं थी और ना ही वे रियास मौलवी को जानते थे। यह हत्या सांप्रदायिक घृणा से प्रेरित थी। इसके अलावा, इसमें अन्य कोई कारण नहीं था।
आरोपित पक्ष के एक और वकील टी सुनील कुमार ने कहा कि अभियोजन पक्ष न केवल आरोपों को साबित करने में विफल रहा, बल्कि उनके मुवक्किलों के खिलाफ घटिया सबूत भी पेश किए। उन्होंने कहा कि रियास मौलवी की कमर के ऊपर चाकू से १४ वार किए गए थे। घाव उसके सिर और कंधों पर भी थे। अभियोजन पक्ष ने मौलवी की लुंगी को सबूत के तौर पर पेश किया था।
उन्होंने कहा, “लुंगी पर चाकू के १४ वार के निशान थे। अगर हम अभियोजन पर विश्वास करें तो हमें यह मानना होगा कि जब हमला हुआ था, तब मौलवी अपने ऊपर लुंगी ओढ़कर सो रहा था। लेकिन, अकेले रहने वाले रियास मौलवी को बदमाशों के लिए दरवाज़ा खोलना पड़ा, क्योंकि घर में कोई जबरन प्रवेश नहीं किया गया था।”
इस केस का पहला गवाह हाशिम था। हाशिम ही एकमात्र व्यक्ति था, जो हत्या की घटना और अपराधियों को देख सकता था। वकील कुमार ने कहा, “हाशिम मस्जिद परिसर में रुका था। वह अपराध स्थल पर पहुँचने वाला पहला व्यक्ति था। उसने रियास मौलवी को खून से लथपथ और दर्द से कराहते हुए देखा, लेकिन उसने भी अपराध करते हुए या अपराधियों को नहीं देखा।”
उन्होंने कहा कि पुलिस ने तीन युवकों को इसलिए उठाया, क्योंकि उनके मोबाइल का लोकेशन चूरी का मिला था। उन्होंने कहा, “दुर्भाग्य से वे सभी मल्लिकार्जुन शिव मंदिर में उत्सव में भाग लेने के बाद या तो एक साथ या अलग-अलग घर लौट रहे थे।” अभियोजन पक्ष ने मोबाइल टावर के लोकेशन को भी कोर्ट में एक महत्वपूर्ण सबूत बताया था।
स्त्रोत : ऑप इंडिया