सर्वोच्च न्यायालय ने कहा – ‘एक्ट को समझने में उच्च न्यायालय से हुई भूल, यह सेक्युलरिज्म के खिलाफ नहीं’
सर्वोच्च न्यायालय ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के यूपी मदरसा एक्ट २००४ को असंवैधानिक करार देने के निर्णय पर रोक लगा दी है। सर्वोच्च न्यायालय इस मामले में अब सुनवाई जुलाई २०२४ के दूसरे सप्ताह में करेगा। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इस कानून को गलत तरीके से समझ लिया।
इस मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने की। कोर्ट ने इस मामले में कहा, “प्रथम दृष्टया लगता है कि इस क़ानून को रद्द करते समय उच्च न्यायालय ने इसके प्रावधानों की गलत व्याख्या कर ली। यह कानून किसी धार्मिक निर्देश की बात नहीं करता है बल्कि इसका उद्देश्य नियामक वाला है।”
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि यदि इस निर्णय का उद्देश्य मदरसों में पढ़ने वाले बच्चों को अच्छी शिक्षा उपलब्ध करवाना था तो क़ानून को असंवैधानिक ना घोषित करके कुछ दिशानिर्देश भी जारी किए जा सकते थे। इससे छात्रों को अच्छी शिक्षा मिलती।
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— AajTak (@aajtak) April 5, 2024
इलाहाबाद उच्च न्यायालय के निर्णय का उत्तर प्रदेश सरकार ने विरोध नहीं किया। सर्वोच्च न्यायालय में उत्तर प्रदेश सरकार ने कहा कि वह उच्च न्यायालय का निर्णय मानेगी। केंद्र सरकार की तरफ से पेश अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने भी इस मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के निर्णय का समर्थन किया।
राज्य सरकार ने कोर्ट को यह भी आश्वासन दिया कि मदरसों में पढ़ने वाले इन बच्चों को आराम से सरकारी स्कूलों के तंत्र में ले लिया जाएगा। राज्य ने कहा कि कानून का असर केवल मदरसों को मिलने वाले फंड पर आएगा जो कि ₹१०९६ करोड़ था।
सर्वोच्च न्यायालय में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के निर्णय के खिलाफ याचिका लगाने वाले मैनेजर्स असोसिएशन मदारिस ने कहा कि उच्च न्यायालय के निर्णय से राज्य में १७ लाख छात्र प्रभावित होंगे। उसने यह भी कहा कि मदरसों में पढ़ने वाले छात्रों को इकट्ठे राज्य सरकार के ढाँचे में नहीं घुसाया जा सकता है।
असोसिएशन की तरफ से पेश वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि शैक्षणिक संस्थानों में धार्मिक शिक्षा देना, धर्म के प्रति कठोर बनाना नहीं होगा। उन्होंने इसके लिए गुरुकुलों का भी उदाहरण दिया। सिंघवी ने कहा कि मदरसे की यह व्यवस्था १२० साल से चली आ रही है, ऐसे में इसे इकट्ठे समाप्त नहीं किया जा सकता।
इस दौरान सर्वोच्च न्यायालय में यह भी बात उठाई गई कि मदरसों में गणित, विज्ञान और अंग्रेजी जैसे शब्द नहीं पढ़ाए जाते, इसके कारण इनमें पढ़ने वाले बच्चे भी आज के समय में पीछे छूट जाएँगे। कोर्ट ने सभी पक्षों को सुनने के बाद इस मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के निर्णय पर रोक लगा दी और याचिकाकर्ताओं को नोटिस जारी किया। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि वह अब इस मामले में जुलाई, २०२४ के दूसरे सप्ताह में सुनवाई करेगा। तब तक इलाहाबाद उच्च न्यायालय के निर्णय पर रोक जारी रहेगी।
गौरतलब है कि २२ मार्च, २०२४ को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए २००४ के मदरसा एक्ट को गैरकानूनी करार दिया था। उच्च न्यायालय ने इस मामले में कहा था कि मदरसे की शिक्षा सेक्युलरिज्म के सिद्धांतों के विरुद्ध है और सरकार को ये कार्यान्वित करना होगा कि मदरसों में मजहबी शिक्षा ग्रहण कर रहे बच्चों को औपचारिक शिक्षा पद्धति में दाखिल करें। उच्च न्यायालय ने इस दौरान पूछा था कि आखिर मदरसा बोर्ड को शिक्षा मंत्रालय की जगह अल्पसंख्यक मंत्रालय द्वारा क्यों संचालित किया जाता है।
इलाहांबाद उच्च न्यायालय के मदरसा बोर्ड को असंवैधानिक घोषित करने के निर्णय के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में अंजुम कादरी की तरफ से याचिका डाली गई थी। इस पर शुक्रवार (५ अप्रैल, २०२४) को रोक का यह निर्णय आया है। इससे पहले राज्य सरकार ने प्रदेश में चलने वाले मदरसों के दूसरे बोर्ड में पंजीयन को लेकर आदेश जारी किया था।
स्त्रोत : ऑप इंडिया