देश की सर्वोच्च अदालत मंगलवार (16 अप्रैल, 2024) को एक जनहित याचिका (PIL) पर सुनवाई कर रही थी। इस याचिका में अल्पसंख्यकों के खिलाफ मॉब लिंचिंग के अपराध बढ़ने का दावा करते हुए गोरक्षकों पर निशाना साधा गया था और तथाकथित पीड़ितों के लिए त्वरित वित्तीय मदद की व्यवस्था की मांग की गई थी। यह याचिका सर्वोच्च न्यायालय में अधिवक्ता निजाम पाशा द्वारा दायर की गई थी।
Adv Nizam Pasha files PIL in SC against lynching and mob violence against minorities seeking immediate interim financial relief
SC: You can't be selective when it comes to mentioning cases. Why Rajasthan's Kanhaiya Lal is missing from your petition? pic.twitter.com/Utnqu09YqG
— Megh Updates 🚨™ (@MeghUpdates) April 16, 2024
जिस पर सुनवाई करते हुए जस्टिस BR गवई, जस्टिस अरविंद कुमार और जस्टिस संदीप मेहता ने कन्हैया लाल तेली हत्याकांड का जिक्र करते हुए याचिकाकर्ताओं को सलाह दी कि वो ऐसे मामलों को लेकर वो सेलेक्टिव न बनें।
अदालत ने पूछा, “राजस्थान के उस दर्जी…कन्हैया लाल…के बारे में क्या, जिसकी पीट-पीट कर हत्या कर दी गई?”, जिस पर याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील निज़ाम पाशा ने स्वीकार किया कि इसका उल्लेख नहीं किया गया।
वहीं गुजरात सरकार की तरफ से पेश हुईं वकील अर्चना पाठक दवे ने कहा कि याचिका में सिर्फ मुस्लिमों की मॉब लिंचिंग की बात है, जबकि राज्य सरकार की जिम्मेदारी है सबको सुरक्षा देना।
जिस पर अदालत ने कहा, “हां…आपको यह सुनिश्चित करना होगा कि यह बिल्कुल भी चयनात्मक न हो, अगर सभी राज्य इसमें शामिल हैं।” इसके बाद वकील पाशा ने प्रतिवाद करते हुए कहा- “केवल मुसलमानों को पीट-पीटकर मार डाला जा रहा है… यह तथ्यात्मक बयान है।” जिस पर जस्टिस गवई ने वकील पाशा से कहा कि आप कोर्ट में क्या कह रहे हैं इसे लेकर सतर्क रहें।
इसके बाद मामला गर्मियों की छुट्टी के बाद के लिए टाल दिया गया, जो 20 मई से 7 जुलाई तक चलता है।
बता दें कि वकील निजाम पाशा वही वकील हैं जो सर्वोच्च न्यायालय में ‘लव जिहाद’ की कलई खोलने वाली फिल्म ‘द केरल स्टोरी’ को ऑडियो-विजुअल प्रोपेगंडा बताते हुए इस पर बैन लगाने की माँग को लेकर गए थे। साथ ही कोर्ट में कुरान का हवाला देते यह तर्क भी दिया था कि बुर्का-हिजाब को पहनने वाली महिलाओं से छेड़खानी करने वाले डरते हैं और ये समझते हैं कि ये एक मजबूत महिला है, इसका समुदाय इसके पीछे खड़ा है।
इसके अलावा निजाम पाशा ज्ञानवापी सर्वे के खिलाफ भी सर्वोच्च न्यायालय जा चुके हैं।
स्रोत : पांचजन्य