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दिल्ली दंगे के आरोपी सलीम मलिक को जमानत देने से उच्च न्यायालय का इनकार

दंगे के लिए विरोध प्रदर्शन की जगहों को दिए गए थे हिन्दू नाम, खुले में हो रही थी लोगों को मारने की प्लानिंग

दिल्ली उच्च न्यायालय ने 2020 दंगों के आरोपित सलीम मलिक उर्फ़ मुन्ना को सोमवार (22 अप्रैल, 2024) को जमानत देने से मना कर दिया। न्यायालय ने कहा कि उसने दिल्ली दंगा की योजना बनाने में स्पष्ट रूप से भाग लिया था। न्यायालय ने इस दौरान दंगे को सेक्यूलर रूप देने के लिए विरोध प्रदर्शनों को हिन्दू नाम देने की योजना पर भी टिप्पणी की।

दिल्ली उच्च न्यायालय दिल्ली दंगा के मामले में आरोपित सलीम मलिक की जमानत याचिका पर सुनवाई कर रहा था। जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस मनोज जैन की सदस्यता वाली बेंच ने इस मामले की सुनवाई की है। उन्होंने दंगों में सलीम मलिक की भूमिका के चलते उसे जमानत देने से इनकार किया।

न्यायालय ने कहा कि सलीम उस व्हाट्सएप ग्रुप का हिस्सा भले नहीं था जिसमें दंगे की योजना बनाई गई थी लेकिन वह उस बैठकों में शामिल था जहाँ लोगों को मारने की योजना पर काम हुआ था। न्यायालय ने इस मामले में कहा कि सलीम चाँद बाग़ की एक बैठक में भी शामिल हुआ था जिसमें दिल्ली को जलाने की खुले तौर पर बात की गई थी।

उच्च न्यायालय ने कहा कि ऐसी बातें किसी भी लोकतांत्रिक देश में स्वीकार नहीं की जा सकतीं। न्यायालय ने कहा कि इन बैठकों में हथियार खरीदने, लोगों को मारने और पेट्रोल बम तक खरीदने की बातें की गई। इसके अलावा इन बैठकों में लोगों की सम्पत्ति जब्त करने की बात की गई थी। न्यायालय ने कहा कि सलीम की दंगे के दौरान यह जिम्मेदारी थी कि वह गलियों में लगे CCTV कैमरे तोड़ दे या फिर उन्हें ढक दे।

न्यायालय ने कहा कि सलीम मलिक को जिस मामले में आरोपित बनाया गया है, उसमें उसके खिलाफ इस बात के काफी सबूत हैं कि उसने अपराध किया। न्यायालय ने 2020 के दिल्ली दंगों को एक बड़ी साजिश करार दिया। न्यायालय ने यह भी कहा कि इस मामले में दंगाइयों ने 2019 के दंगों से भी सबक लिया था और उस हिसाब से प्लानिंग की थी।

दंगे से पहले विरोध प्रदर्शनों के लिए चुने गए स्थानों के नाम हिन्दू और सेक्यूलर नामों पर रखने पर न्यायालय ने कहा कि ऐसा इसे सेक्यूलर दिखाने के लिए किया गया था। न्यायालय ने कहा कि लोगों को विरोध प्रदर्शन करने का अधिकार है लेकिन हिंसा करने का नहीं।

दिल्ली दंगों की भी बात करें तो 4 मुख्य चरणों में इसकी साजिश रची गई थी। पहले चरण में PFI सहित अन्य इस्लामी संगठनों ने विश्वविद्यालयों में CAA के खिलाफ प्रदर्शन किया और छात्रों को भड़काया। दूसरे फेज में शाहीन बाग़ जैसे धरने हुए। तीसरे चरण में हिन्दू-विरोधी प्रतीकों और गतिविधियों की बाढ़ आ गई। चौथे चरण में वारिस पठान जैसों के घृणास्पद बयानों के बाद हिन्दुओं पर हमले शुरू हो गए।

मुस्लिम महिलाओं ने भी अपनी छतों से ईंट-पत्थर फेंके थे। मुस्लिम परिवार के लोग अपने छात्रों को पहले ही स्कूलों से ले गए थे। फैसल फारूक का स्कूल दंगाइयों का अड्डा बना। ताहिर हुसैन की फैक्ट्री दंगाइयों का बसेरा बनी। हिन्दुओं की दुकानों को चुन-चुन कर जलाया गया। पेट्रोल बम और पत्थरों का इस्तेमाल हुआ। इस दंगे में 50 से अधिक लोग मारे गए थे।

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