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केरल में हिंदुओं की आबादी ६६ से घटकर ५४%, मुस्लिम बढ गए ६ से २६%

जनसंख्या वृद्धि दर के ‘केरल मॉडल’ – यह लेख नहीं, आँकड़े हैं

हमारे देश में २८ राज्य हैं, जिसमें से ८ राज्यों में हिन्दू अल्पसंख्यक हैं। देश की जनसंख्या में लगातार वृद्धि हो रही है, जो बहुत ही चिंता का विषय है। ऐसे समय में यह जानना अतिमहत्वपूर्ण है कि इस जनसंख्या वृद्धि में हिन्दुओं की संख्या का कितना अनुपात है।

अगर हम एक साधारण हिन्दू परिवार की बात करें, तो हम पाएँगे कि हमारी दादी, नानी और हमारे माता-पिता कम से कम ५ से ६ भाई-बहन हुआ करते थे। लगभग ४० वर्ष के युवा के माता-पिता का जन्म आजाद भारत में हुआ, बढ़ती हुई जनसंख्या निश्चित रूप से देश की प्रगति में बहुत बड़ी समस्या है और इसका सीधा असर आर्थिक और सामाजिक रूप से दिखता है।

अगर सही मायनों में हम जनसंख्या के प्रति जागरूक हैं तो हमें जनसंख्या वृद्धि के डेटा को समझना होगा। इंदिरा गाँधी की सरकार ने १९७० के दशक में हम दो हमारे दो का नारा दिया। कहीं न कहीं यह नीति साफ तौर पर हिन्दुओं के लिए थी। कैसे? इसका उत्तर आसानी से समझने के लिए पहले हम अभी के आँकड़ों को समझ लेते हैं।

अगर हम हिन्दू और मुस्लिम की जनसंख्या वृद्धि के अनुपात को देखें तो हम पाएँगे कि हिन्दुओं की जनसंख्या वृद्धि की दर २०११ के डेटा के हिसाब से १६.०८% थी जबकि मुस्लिम जनसंख्या की वृद्धि दर २४.६% थी। हिन्दुओं की जनसंख्या वृद्धि दर पिछले चार दशकों से घट रही है। यह वृद्धि दर १९८१ में २४.१%, १९९१ में २२.७%, २००१ में १९.९% तथा २०११ में १६.८% है। देश में हिन्दू की जनसंख्या, देश की कुल आबादी का ८०% भी नहीं रह गई है और हर दशक के बाद यह अनुपात कम ही होता जा रहा है।

२०११ की जनगणना के अनुसार केरल की बात करें तो हम पाएँगे कि हिन्दू की आबादी वहाँ सिर्फ ५४.७२% है, जबकि १९११ (तब त्रावणकोर राज्य) के डाटा के हिसाब से यह ६६.५७% थी। १९११ के उसी केरल में मुस्लिम आबादी थी मात्र ६.६१%, और २०११ में कितनी थी? २६.५६% मुस्लिम थे केरल में जनगणना २०११ के अनुसार।

मतलब केरल में हिंदू घट रहे हैं, मुस्लिम बढ़ते चले जा रहे हैं। २०११ और १९११ के आँकड़ों से अगर क्लियर नहीं डेमोग्राफी चेंज का मसला तो एक आँकड़ा २०११ और २००१ का भी है। इन १० सालों में केरल में हिंदुओं और ईसाइयों की जनसंख्या के मुकाबले मुस्लिम आबादी १०% ज्यादा बढ़ी थी। सिर्फ केरल ही नहीं, पश्चिम बंगाल में भी हिन्दुओं की जनसंख्या घटती जा रही है, जो चिंता का विषय है।

वर्ष १९७५ में इंदिरा गाँधी ने देश में आपातकाल लगा दिया, राजनीतिक गलियारों से लेकर एक आम आदमी के निजी जीवन तक इसका प्रभाव पड़ा। यह वही समय था, जब इंदिरा गाँधी ने जनसंख्या को नियंत्रण करने के लिए नसबंदी जैसे सख्त फैसले किए। यह फैसला इंदिरा सरकार ने लिया था, पर इसे लागू करने की जिम्मेदारी उनके छोटे बेटे संजय गाँधी को दी गई थी। एक रिपोर्ट के मुताबिक ६० लाख से ज्यादा लोगो की नसबंदी कर दी गई। अगर हम इस मुद्दे पर प्रकाश डालें तो पाएँगे कि मीडिया में ऐसा कोई भी डेटा प्रकाशित नहीं हुआ, जो यह बता सके कि ६० लाख लोगों में से किस धर्म के कितने लोग थे, जिनकी नसबंदी हुई।

अगर हम हिन्दुओं की जनसंख्या वृद्धि को ध्यान में रख कर १९७१ और १९८१ के डेटा का अनुपात देखें तो पाएँगे कि १९८१ के बाद हिन्दुओं की जनसंख्या घटती जा रही है, जबकि बाकी वर्ग की जनसंख्या हिन्दुओं के अनुपात में तेजी से बढ़ रही है। अगर सभी धर्म-मजहब के लोगों की नसबंदी जनसंख्या के आधार पर समानुपातिक किया गया होता तो क्या कारण है कि सिर्फ हिंदुओं की जनसंख्या घटी, जबकि बाकियों की बढ़ी? इंदिरा गाँधी की सरकार को जनसंख्या नियंत्रण करने के लिए वर्ल्ड बैंक, स्वीडिश अंतरराष्ट्रीय विकास प्राधिकरण और संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष से १० मिलियन डॉलर की आर्थिक मदद मिली थी।

इस पूरे प्रकरण से अगर हम दो साल पीछे १९७३ में देखें तो हम पाएँगे कि इंदिरा गाँधी ने वर्ष १९७३ में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, जो एक गैर सरकारी मुस्लिम संगठन है, का गठन किया। इसके लिए देश के हिन्दुओं के साथ-साथ सीधे तौर पर संविधान को भी दर किनार किया गया। यहाँ, यह जानना अति आवश्यक है कि यह वही मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड है, जो राम मंदिर जन्मभूमि विवाद में न्यायालय में राम मंदिर के विरुद्ध पार्टी था। क्या यह सब महज एक संयोग है या फिर हिन्दुओं के विरुद्ध किसी सोची समझी साजिश का हिस्सा?

अगर हम नेहरू गाँधी परिवार के इतिहास की पड़ताल करें तो पाएँगे कि कहीं न कहीं इसके तार मुगलों से जुड़ते दिखते हैं। क्या हिन्दू की आवाज़ उठाने वाला कोई नहीं है? ये कौन लोग हैं, जो हिन्दुओं या यूँ कहें की जो सनातन धर्म के अनुयायियों को मिटाने पर तूले हैं? राम मंदिर आंदोलन के समय लाखों कारसेवकों पर अंधाधुँध गोली चलाने वाले कौन थे? सनातन धर्म के विरोधी ये कौन लोग हैं, जो हिन्दू को हिन्दू के विरुद्ध भड़काना चाहते हैं?

अगर हम कानपूर के बिकरू कांड की बात करें तो पाएँगे कि अपराधी विकास दुबे एक ब्राह्मण था, जिसकी मुठभेड़ में हुई मृत्यु पर ब्राह्मणों को भड़काने की राजनीति शुरू हो गई परन्तु बिकरू कांड में बलिदान हुए पुलिस ऑफिसर देवेंदर मिश्रा भी ब्राह्मण थे, पर इस पर कोई चर्चा नहीं हुई।

यह सब उस षड्यंत्र का हिस्सा है, जो सदियों से उन लोगों के खिलाफ चल रहा है, जो सनातन धर्म का परचम लहरा रहे हैं। हिन्दुओं में आपस में फुट डालकर राजनीति करने की आदत देश विरोधी ताकतों की बहुत पुरानी है। परन्तु अब समय आ गया है कि हिन्दुओं को संगठित होकर, ब्राह्मण और दलित की राजनीति से ऊपर उठकर अपने असली दुश्मनों के विरुद्ध रण के लिए तैयार होना होगा।

स्त्रोत : ऑप इंडिया

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