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पुणे के ससून चिकित्सालय में घटित फर्जी दिव्यांग प्रमाणपत्र घोटाले को दबाए जाने की संभावना – सुराज्य अभियान

  • २ वर्ष होने आ रहे हैं, तब भी जांच समिति ने ब्योरा ही प्रस्तुत नहीं किया !

  • राज्य में बनावट अपंग प्रमाणपत्र द्वारा अपात्र व्यक्तियों को शासकीय लाभ लूटने की संभावना

  • हिन्दू जनजागृति समिति के सुराज्य अभियान के समन्वयक श्री. अभिषेक मुरुकटे के सूचना अधिकार द्वारा प्राप्त जानकारी से उजागर हुआ प्रकरण !

मई 2022 में पुणे के ससून चिकित्सालय के अस्थिरोग विभाग के कुछ अधिकारियों द्वारा फर्जी दिव्यांग प्रमाणपत्र दिए जाने की चौंकानेवाली घटना उजागर हुई । इस प्रकरण की जांच के लिए जून 2022 में सरकार ने एक तीन सदस्यीय जांच समिति का भी गठन किया; परंतु लगभग 2 वर्ष बीत जाने पर भी यह जांच ब्योरा सार्वजनिक नहीं किया गया है । हिन्दू जनजागृति समिति के सुराज्य अभियान के समन्वयक श्री. अभिषेक मुरकटे के द्वारा सूचना के अधिकार के अंतर्गत मांगी गई जानकारी से यह बात स्पष्ट हुई है । इसलिए क्या इस प्रकरण में दोषी चिकित्सकीय अधिकारियों को संरक्षण दिए जाने की संभावना को अस्वीकार नहीं किया जा सकता, ऐसा श्री. अभिषेक मुरुकटे ने कहा है ।

https://x.com/SurajyaCampaign/status/1795062303651446985

इस प्रकरण में जांच ब्योरा प्रस्तुत किया जाए, इसके लिए सरकार की ओर से चिकित्सकीय शिक्षा विभाग ने जुलाई एवं अक्टूबर 2022 की अवधि में 2 बार चिकित्सकीय शिक्षा एवं अनुसंधान संचालनालय के आयुक्त को पत्र भी भेजे; परंतु अभी भी यह ब्योरा सार्वजनिक नहीं किया गया है । इस प्रकरण में पहले विधायक बच्चू कडू के प्रहार संगठन की ओर से चिकित्सकीय शिक्षा विभाग से शिकायत की गई है । इस शिकायत के आधार पर 1 जून 2022 को चिकित्सकीय शिक्षा विभाग ने चिकित्सकीय शिक्षा एवं अनुसंधान संचालनालय को पत्र लिखकर फर्जी प्रमाणपत्रों की पुनर्पडताल के निर्देश दिए । इस प्रकरण की जांच करने हेतु समिति का गठन कर फर्जी प्रमाणपत्र देनेवाले अधिकारियों के नाम भी सरकार को देने के निर्देश भी आयुक्त को दिए गए हैं; परंतु इतने गंभीर प्रकरण में अभी भी आगे की कार्यवाही नहीं हुई है । सूचना के अधिकार के अंतर्गत यह वास्तविकता सामने आई है ।

पुणे की भाजपा विधायिका माधुरी मिसाळ एवं विधायक सुनील कांबळे ने 18 अगस्त 2022 को इस विषय में विधानसभा में तारांकित प्रश्न उठाया था । इस प्रश्न का उत्तर देते हुए तत्कालिन चिकित्सकीय शिक्षामंत्री गिरीश महाजन ने ससून चिकित्सालय में फर्जी प्रमाणपत्र दिए जाने की घटनाओं में सच्चाई होने की बात स्वीकार की; परंतु विधानसभा में आवाज उठाकर भी इस प्रकरण में कार्यवाही क्यों नहीं की गई ?, यह प्रश्न उठ रहा है ।

ऐसा हुआ है घोटाला ! : 40 प्रतिशत अथवा उससे अधिक दिव्यांगता से ग्रसित व्यक्तियों को सरकारी नौकरियों में आरक्षण तथा सरकारी योजनाओं का लाभ दिया जाता है । ससून चिकित्सालय के अस्थिरोग विभाग के कुछ चिकित्सीय अधिकारियों ने उनके पास आनेवाले दिव्यांग व्यक्तियों को सरकारी नौकरी का लाभ मिलने का लालच देकर उनसे पैसे लिए तथा उनकी दिव्यांगता का अनुपात बढाकर उन्हें फर्जी प्रमाणपत्र दिए । निजी अथवा अनुदानित चिकित्सालयों की ओर से दिए गए दिव्यांग प्रमाणपत्र की पडताल कर ही दिव्यांग व्यक्ति की रूप में संबंधित व्यक्ति को सरकारी योजनाओं का लाभ मिलना अपेक्षित है; परंतु इस प्रकार सरकारी चिकित्सालयों की ओर से दिए जानेवाले दिव्यांग प्रमाणपत्रों की पडताल ही नहीं की जाती, यह वास्तविकता भी इस प्रकरण से उजागर हुई है । इसलिए सरकार ने आयुक्त को प्रमाणपत्रों की पुनर्पडताल की कार्यवाही आरंभ करने के निर्देश दिए हैं । इस घटना को देखते हुए पुणेसहित राज्य के अन्य निजी अथवा अनुदानित चिकित्सालयों की ओर से फर्जी प्रमाणपत्र लेकर दिव्यांगों के लिए चलाई जानेवाली योजनाओं का लाभ अयोग्य व्यक्तियों के द्वारा उठाए जाने की संभावना बनती है ।

वास्तविक दिव्यांग सरकारी सुविधाओं से वंचित हो रहे हैं ! – सुराज्य अभियान

इस विषय में सुराज्य अभियान की ओर से 8 मई को चिकित्सकीय शिक्षामंत्री, साथ ही चिकित्सकीय अनुसंधान संचालनालय के आयुक्त से शिकायत की गई है । दिव्यांग व्यक्तियों के संदर्भ में घटित संवेदनशील विषय की 2 वर्ष उपरांत भी जांच न होना अत्यंत दुखद एवं चिंता का विषय है । फर्जी प्रमाणपत्र उपलब्ध कराकर अयोग्य दिव्यांग व्यक्ति सरकारी नौकरियों अथवा सरकारी सुविधाओं का लाभ उठा रहे हैं; परंतु उसके कारण वास्तविक दिव्यांग सुविधाओं से वंचित रह जाते हैं, यह गंभीर बात है । अतः इस प्रकरण में आप स्वयं ध्यान देकर इस जांच को तुरंत पूर्ण करने का आदेश दें तथा दोषियों पर कठोर कार्यवाही करें, यह मांग सुराज्य अभियान की ओर से की गई है ।

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