सतर्कता, आक्रामकता और विस्तारवादी नीति से ही हिन्दू धर्म की सुरक्षा संभव ! – महामंडलेश्वर आचार्य स्वामी प्रणवानंद सरस्वतीजी, संस्थापक, श्री स्वामी अखंडानंद, गुरुकुल आश्रम, इंदौर, मध्य प्रदेश
हिन्दू आक्रामक और विस्तारवादी नहीं थे, यह असत्य है । दशहरे के दिन हमारे अपने पूर्वज केवल गांव की ही नहीं, अपितु देश की सीमा भी लांघते थे । मातृभूमि की संकीर्ण भावना हमें विस्तारवादी होने से रोक रही है । उसके लिए हिन्दुओं को विस्तारवादी होना ही होगा । हिन्दू सतर्क नहीं । ‘आसपास क्या हो रहा है ?’, इस विषय में हिन्दुओं को सतर्क रहना चाहिए । चीटियों से हमें यह सीखना चाहिए । चीटियां किसी भी अन्य प्राणि को अपने घर में घुसने नहीं देतीं । यदि किसी ने उनके बिल में घुसने का प्रयत्न किया, तो वे उसपर आक्रमण कर देती हैं और बिल के बाहर ही उसे नष्ट कर देती हैं । यह सजगता और आक्रामकता हिन्दुओं को भी स्वयं में लानी चाहिए । हिन्दुओं को परिवार, भूमि, राष्ट्र और धर्म की रक्षा के लिए सजग रहना चाहिए । अपने धर्म पर यदि कोई आक्रमण करने का प्रयत्न करता है, तो हमें भी आक्रामक होना चाहिए, ऐसा मार्गदर्शन मध्य प्रदेश के इंदौर के श्री स्वामी अखंडानंदजी, गुरुकुल आश्रम के संस्थापक महामंडलेश्वर आचार्य स्वामी प्रणवानंद सरस्वतीजी ने किया । वैश्विक हिन्दू राष्ट्र महोत्सव के पहले दिन के इस सत्र में ‘धर्मांतरण रोकने के लिए आदिवासी क्षेत्र में किया कार्य’ इस विषय पर बोलते हुए किया ।
महामंडलेश्वर आचार्य स्वामी प्रणवानंद सरस्वतीजी के मार्गदर्शन के विशेष सूत्र
हिन्दू राष्ट्र के लिए हिन्दू एकता आवश्यक !
उन्होंने आगे कहा, ‘‘हिन्दू एकता के बिना हिन्दू राष्ट्र का सपना हम साकार नहीं कर सकते । हिन्दुओं का एक होना ही सबसे महत्त्वपूर्ण बात है । सभी हिन्दुओं में एकता की भावना होनी चाहिए । हम भले ही विविध जाति अथवा संप्रदाय के हों, तब भी हममें एकता की भावना होनी चाहिए । हिन्दू एकता की भावना हमें शक्तिशाली करनी चाहिए ।
हिन्दू धर्मानुसार आचरण करना आवश्यक !
हिन्दुओं में नास्तिकता, विद्रोह बढता है । यह बात चिंता की बात है । अधिकांश हिन्दुओं को धर्मशिक्षा नहीं । हिन्दू धर्मांतरण कर रहे हैं, यह भी चिंता का विषय है । निर्धनता, धर्मांतरण का कारण नहीं, अपितु धर्महीनता के कारण हिन्दुओं का धर्मांतरण हो रहा है । हिन्दू धर्म समझकर लेना और उस अनुसार आचरण करना महत्त्वपूर्ण है, तब ही हिन्दू राष्ट्र की स्थापना संभव है । जीवन में नैतिकता को लाए बिना हम भारत को हिन्दू राष्ट्र नहीं बना सकते । हमारा जीवन और व्यवहार, चारित्रसंपन्न होना चाहिए, तब ही हम हिन्दू धर्म का प्रचार प्रभावीरूप से कर सकते हैं । प्रत्येक व्यक्ति तक हमें सनातन धर्म और अपने धर्म का ज्ञान पहुंचाना है ।
सनातन संस्था का कार्य दैवीय !
सनातन संस्था के पीछे दैवीय शक्ति है । दैवीय शक्ति के कारण ही सनातन संस्था का कार्य हो रहा है । सनातन संस्था के संस्थापक सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी तपस्वी महापुरुष हैं । उनके कार्य के पीछे भगवान श्रीराम और भगवान श्रीकृष्ण की शक्ति है ।
भारतीय ज्ञान पर आधारित पश्चिमी वैज्ञानिक प्रगति ! – डॉ. नीलेश ओक, इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस्ड साइंसेज, यूएसए
सनातन धर्म शब्दप्रमाण्य पर आधारित है; परंतु प्रत्यक्ष अनुपात भी महत्त्वपूर्ण है । हमारे ऋषि-मुनियों ने प्रत्यक्ष अनुभव किया, उसी को उन्होंने शब्दबद्ध किया । अत: हमें समझना चाहिए कि हमारा शब्दप्रमाण ऋषियों का प्रत्यक्ष माप है । हमें इस शब्दप्रमाण का प्रत्यक्ष अनुभव करने का प्रयास करना चाहिए । वर्तमान समय में यद्यपि यूरोप में विज्ञान की उन्नति हो चुकी है, परन्तु विदेशों में यह ज्ञान भारत से ही पहुँचाया गया है । अमेरिका में इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस्ड साइंसेज में कार्यरत डॉ. नीलेश ओक ने कहा कि पश्चिमी लोगों ने भारत के समृद्ध ग्रंथों का अनुवाद करके ही विज्ञान के क्षेत्र में प्रगति की है । वे ‘विश्वगुरु भारत की बलस्थान : सनातन हिन्दू धर्म’ विषय पर बोल रहे थे । उन्होंने आगे कहा कि रामायण और महाभारत में सैकडों खगोलीय संदर्भ हैं । इससे स्पष्ट है कि महाभारत युद्ध 7 हजार 585 वर्ष पूर्व हुआ था, जबकि रामायण 12 हजार 296 वर्ष पूर्व हुआ था । अमेरिका, कनाडा के 500-600 विश्वविद्यालयों में रामायण और महाभारत की अनेक प्रतियां हैं । वहां के लोग उनका अध्ययन करते हैं । जहां विश्वास उचित है, हम संदेह व्यक्त करते हैं, और जहां संदेह उचित है, हम विश्वास करते हैं । हमें बुद्धि के लिए सत्य, शरीर के लिए सेवा और मन के लिए संयम को अपनाना चाहिए ।
‘विश्व हिन्दू राष्ट्र महोत्सव’ से हिन्दुत्ववादियों में होगा नए उत्साह का संचार ! – रंजीत सावरकर, कार्यकारी अध्यक्ष, वीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक, मुंबई
भारत में हाल ही में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में तीसरी बार केंद्र में सरकार बनी है । इस सरकार को अपेक्षित संख्या में सांसद नहीं मिले, इससे हिन्दुत्वनिष्ठों में कुछ निराशा उत्पन्न हुई है; परंतु अब जो ‘वैश्विक हिन्दू राष्ट्र महोत्सव’ हो रहा है, उससे यह निराशा दूर होगी और देश के सभी हिन्दुत्वनिष्ठों में एक नए उत्साह का संचार होगा । ऐसा प्रतिपादन वीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक, मुंबई के कार्यकारी अध्यक्ष रंजीत सावरकर ने ‘विश्व हिन्दू राष्ट्र महोत्सव’ के उद्घाटन सत्र में किया । वे ‘हिन्दुओं द्वारा किए जा रहे प्रयत्नों को हिन्दुओं से ही प्रोत्साहन मिलना चाहिए’ विषय पर बोल रहे थे ।
हमें हिन्दू राष्ट्र ऐसे ही नहीं मिल जाएगा, अपितु युद्ध से ही मिलेगा । इसके लिए हमें अध्ययन और हिन्दू संगठन की आवश्यकता है । महाभारत में 12 वर्ष के वनवास के उपरांत पांडवों ने शमी वृक्ष से अपने हथियार निकाले थे । जो एक महोत्सव था । उसी प्रकार अब भी हिन्दुओं को अपने हथियार निकालकर, हिन्दू विरोधी षडयंत्र को नष्ट करना है । ये हथियार पारंपरिक नहीं हैं, अपितु वैचारिक स्वरूप के हैं । इसमें आर्थिक हथियार सबसे महत्वपूर्ण है । इसी को ध्यान में रखते हुए मुसलमानों द्वारा हलाल सर्टिफिकेट के माध्यम से बनाई गई समानांतर अर्थव्यवस्था को टक्कर देने के लिए हिन्दुत्ववादी संगठनों के पहल करने पर तीर्थक्षेत्र श्रीत्र्यंबकेश्वर से हिन्दू दुकानदारों को ‘ओम शुद्ध प्रमाणपत्र’ देना आरंभ हुआ है । ओम शुद्ध प्रमाणपत्र केवल हिन्दू दुकानदारों को ही दिया जाएगा । तीर्थक्षेत्रों में बडी संख्या में प्रसाद की दुकानें मुसलमान दुकानदारों द्वारा चलाई जाती हैं । यह नहीं कहा जा सकता कि उनकी दुकानों पर बिकनेवाला प्रसाद शुद्ध और पवित्र होगा । इसलिए भगवान को शुद्ध और पवित्र प्रसाद अर्पित करने के लिए यह अभियान चलाया जा रहा है ।