धर्मकार्य में योगदान से ही हमारा जीवान सार्थक होगा ! – महामंडलेश्वर नर्मदा शंकरपुरी महाराज, निरंजनी आखाडा, जयपुर, राजस्थान
अच्छे काम करते समय आनेवाले संकट हमारी परीक्षा होते हैं । मार्गक्रमण करते समय मार्ग में गड्ढे, खाईं आते हैं; परंतु हम उन्हें कैसे पार करते हैं, यह चिंतन का विषय है । धर्मकार्य में हमारा योगदान कितना है, यह चिंतन का विषय है । विश्व की उपेक्षा कर आगे जाना है अथवा फूल की भांति सबको सुगंध देते हुए आगे जाना है, यह हमें निश्चित करना चाहिए । सुगंध और दुर्गंध दोनों ईश्वर ने ही बनाए हैं; परंतु हमें कहां खड़ा होना है, यह निश्चित करना है । नाली के पास खड़ा रहकर दुर्गंध लेना है और उसके लिए ईश्वर को दोष देना है, तो ऐसा नहीं चलेगा । बुद्धि भ्रष्ट होने के कारण मुझसे बुरा आचरण हुआ, यह कारण नहीं चलेगा; क्योंकि मनन-चिंतन करने की क्षमता भी भगवान ने हमें दी है । केवल क्षमायाचना से हम भगवान के पास पहुंच सकते हैं । अवनति की ओर जाने से बचने के लिए हमें साधना करनी चाहिए । किसी ने फूलमाला पहना दी अथवा पीठ थपथपा दी, तो ऐसा न समझें कि जीवन सफल हो गया । जब हम अपने हाथ का धर्मकार्य पूरा करेंगे, तभी जीवन सार्थक होगा ।
सनातन आश्रम में ईश्वरीय शक्ति की अनुभूति हुई !
नामजप और आध्यात्मिक ऊर्जा बाने के लिए हमें सनातन संस्था के बताए अनुसार प्रयत्न करना चाहिए । सनातन संस्था जो कार्य कर रही है, उसकी तुलना नहीं हो सकती । गोवा स्थित सनातन आश्रम के रसोई घर में जाने पर, साग-सब्जी के एक-एक पत्ते बोल रहे थे । वहां का परिसर देखने पर वहां परमात्मा की शक्ति के कार्यरत होने की अनुभूति मुझे हुई । यह मुझे किसी ने बताया नहीं, अपितु यह मैंने स्वयं अनुभव किया । केवल संख्याबल नहीं, गुणवत्ता महत्त्वपूर्ण है, ऐसे गौरवोद्गार महामंडलेश्वर नर्मदा शंकरपुरी महाराजी ने इस समय व्यक्त किए ।
‘ऐसी प्रस्थापित करें कि केवल भारत ही नहीं, अपितु विश्व में अनेक हिन्दू राष्ट्र बनेंगे !’ – प.पू. संत डॉ. संतोष देवजी महाराज, संस्थापक, शिवधारा मिशन फाउंडेशन, अमरावती, महाराष्ट्र
आज विश्व में एक भी हिन्दू देश नहीं है । एक नेपाल था; परंतु वह भी अब नहीं रहा । केवल एक ही नहीं, अपितु विश्व में अनेक हिन्दू राष्ट्र बनेंगे, ऐसा विचार करें । श्रीरामजी ने वनवास काल में कोई भी सुविधा अथवा व्यवस्था को नहीं अपनाया । सभी सुखों का त्याग किया; इसीलिए उन्हें ‘मर्यादा पुरुषोत्तम’ कहा जाता है । अनेक समाज हैं, अनेक परंपराएं हैं, जो भगवान को मानती हैं; परंतु उन्हें हिन्दुत्व से दूर रखा गया है । ऐसी परंपरा प्रस्थापित करें कि केवल भारत ही नहीं, अपितु पूरे विश्व में अनेक हिन्दू राष्ट्र बनें । हमें अपने समाज में झांककर देखना चाहिए । हिन्दुओं को आनेवाली अडचनें एवं उनकी दुर्बलता का निवारण करना चाहिए । उसके लिए यदि चाहें, तो अन्य संगठनों की सहायता ले सकते हैं । विचारों का आदान-प्रदान कर, अपने क्षेत्र में एक रणनीति निश्चित कर, उस पर मार्गक्रमण कर सकते हैं । विचार यहीं छोड देने की अपेक्षा अपने क्षेत्र में वैचारिक क्रांति की मशाल जलाएंगे ।
हिन्दू जनजागृति समिति के कार्यकर्ताओं की प्रशंसा
वैश्विक हिन्दू अधिवेशन में सम्मिलित सभी संगठनों को यहां सहजता से बहुत कुछ सीखने मिलता है । हिन्दू जनजागृति समिति के कार्यकर्ता भिन्न भिन्न प्रांत से आए हैं । वे उच्चशिक्षित भी हैं, तब भी उनमें एक ही प्रकार की सौम्यता, मधुरता, नम्रता एवं अपनापन है । यह गुरुदेवजी से (सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी से) ली प्रेरणा है ।
सनातन संस्था को अन्य हिन्दुत्वनिष्ठ संगठनों को दायित्व देना चाहिए !
सनातन संस्था सखोल कार्य कर रही है । उसे विविध हिन्दुत्वनिष्ठ संगठनों को धर्मप्रसार के कार्य का थोडा दायित्व देना चाहिए; सनातन संस्था के कार्य की ऊंचाई एवं गहराई ध्यान में आ रही है । सनातन संस्था अत्यंत व्यापक कार्य कर रही है ।
सनातन संस्था ने काल की आवश्यकता पहचानकर उचित कार्य पर लक्ष्य केंद्रित किया है । संस्था के साधकों में उत्साह एवं सतर्कता है । वर्तमान में साधना एवं पुरुषार्थ, दोनों ही आवश्यक हैं । हमारे देवी-देवताओं ने भी हाथ में शस्त्र धारण किए हैं ।
अफ्रीका के लोगों को सनातन धर्म का महत्त्व ध्यान में आ गया, तो वहां बडी मात्रा में प्रसार होगा ! – श्रीवास दास वनचारी, इस्कॉन, घाना, अफ्रीका
सनातन धर्म अनादि अनंत है । सनातन धर्म लाखों वर्ष पुराना है । सनातन धर्म, सभी धर्मों का मूल है । प्रभुपाद स्वामीजी ने अमेरिका में ‘इस्कॉन’की स्थापना की । इस माध्यम से उन्होंने सनातन धर्म का जगभर प्रसार किया । उन्होंने सनातन धर्म के विविध ग्रंथों का जगभर की विविध भाषाओं में भाषांतर किया । जगभर में महाभारत का एक विशेष महत्त्व है । अफ्रीका में सनातन धर्म का प्रसार बडी मात्रा में हो रहा है । अफ्रीका में हिन्दुओं के ५७ मंदिर हैं । अफ्रीका में रामायण और भगवद्गीता का अध्ययन किया जाता है । वहां के ईसाई हिन्दू धर्म का विरोध करते हैं । वे नहीं चाहते कि हिन्दू धर्म का प्रचार अफ्रीका में हो; फिर भी हम ‘हरिनाम’ कहते हुए उनके सामने जाते हैं ।
अफ्रीका के लोग कुंभकर्ण समान सोए हुए हैं । उन्हें सनातन धर्म का महत्त्व समझ में आ गया, तो वहां सनातन धर्म का और बडी मात्रा में प्रसार होगा । घाना में अनेक लोग हिन्दू धर्म स्वीकार रहे हैं । वहां सनातन धर्म के अंतर्गत सामाजिक और आध्यात्मिक कार्य हो रहा है ।
श्रीकृष्ण जन्मभूमि मुक्ति आंदोलन में सम्मिलित हों ! – आचार्य राजेश्वर, राष्ट्रीय अध्यक्ष, संयुक्त भारतीय धर्मसंसद, राजस्थान
मैंने तय किया था कि ‘कथा रहित कर हानि भी हुई तब भी कोई बात नहीं; परंतु वैश्विक हिन्दू राष्ट्र महोत्सव के लिए जाना ही है ।’ जो संगठन संपूर्ण भारत में हिन्दुत्व का कार्य सुदृढ कर रहे हैं, उन्हें इस अधिवेशन में आने का अवसर मिला है । उपदेश करनेवाले बहुत होते हैं; परंतु प्रत्यक्ष में कृति करनेवाले अल्प होते हैं । १३.२७ एकड श्रीकृष्ण जन्मभूमि पर आज मस्जिद है । अब तक कुतुबुद्दीन, तुगलक, जहांगीर आदि अनेक आक्रमकों ने श्रीकृष्ण मंदिर के साथ-साथ सैकडों मंदिर गिराए । अनेक बार श्रीकृष्ण का भव्य मंदिर निर्माण हुआ; परंतु उसे गिरा दिया गया । अब पुन: श्रीकृष्ण जन्मभूमि मुक्त कर, वहां भव्य मंदिर का निर्माण करना है । इस लडाई के लिए साधना और नामजप से अपना आध्यात्मिक सामर्थ्य बढाना चाहिए । इसलिए हम अपना धैर्य गंवाकर कर्तव्यच्युत नहीं होंगे । मैं आवाहन करता हूं कि श्रीकृष्ण जन्मभूमि की मुक्ति के लिए आप सभी अपना समर्थन दें ।
हिन्दू राष्ट्र आने पर, श्रीकृष्ण मंदिर का भी निर्माण होगा !
ईश्वर की कृपा से मैंने पूरे भारत में ३ सहस्र ६०० स्थानों पर भ्रमण किया है । जयपुर से श्रीकृष्णभूमि मुक्ति आंदोलन आरंभ किया है । मैंने शंकराचार्यजी से भी विनती की है कि भविष्य में आपका पीठ सुरक्षित रहे इसलिए दक्षिण छोडकर अब उत्तर में आएं । गंगातट पर पंडितों और पुरोहितों को भी मैं कहता हूं कि यदि आप अपनी अगली पीढी सुरक्षित रखना चाहते हैं, तो श्रीकृष्ण जन्मभूमि मुक्ति आंदोलन का समर्थन करें ।
सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी समान ही मुझे जगद्गुरु शंकराचार्य ने भी कहा कि हिन्दू राष्ट्र आने पर श्रीकृष्ण मंदिर भी निर्माण हो जाएगा । आज भारत में गोरक्षा, मंदिरमुक्ति, निर्धनता आदि अनेक समस्याएं हैं; परंतु सभी का उत्तर सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी जैसे कहते हैं एक ही है और वह है हिन्दूराष्ट्र !