वैश्‍विक हिन्दू राष्‍ट्र महोत्‍सव का चतुर्थ दिन (२७ जून) : हिन्दू राष्‍ट्र हेतु वैचारिक आंदोलन

हिन्दू राष्‍ट्र के कथानकों (नैरेटिव) के विरुद्ध संघर्ष करने हेतु बौद्धिक योगदान दें ! – चेतन राजहंस, राष्‍ट्रीय प्रवक्ता , सनातन संस्‍था

चेतन राजहंस, राष्‍ट्रीय प्रवक्ता , सनातन संस्‍था

सनातन संस्‍था के राष्‍ट्रीय प्रवक्‍ता श्री. चेतन राजहंस ने वैश्‍विक हिन्दू राष्‍ट्र महोत्‍सव के चतुर्थ दिन विद्याधिराज सभागृह में ‘हिन्दू विचारमंथन महोत्‍सव : वैचारिक आंदोलन की दिशा’ इस विषय पर वक्‍तव्‍य देते हुए कहा, ‘हिन्दू राष्‍ट्र के कथानकों के विरुद्ध संघर्ष करने हेतु बौद्धिक योगदान दें !’

उन्होंने आगे कहा, ‘वर्तमान स्थिति में विषय का प्रौपेगांडा कर राष्‍ट्र एवं हिन्दू धर्म के विरुद्ध ‘कथानक’ फैलाए जा रहे हैं । ऊपरी तौर पर ऐसा प्रतीत होता है कि इसके पीछे एखाद व्‍यक्‍ति ही है, परंतु वास्तव में इसके पीछे राष्‍ट्रविरोधी शक्‍तियां कार्यरत हैं । मार्क्‍सवादी, नास्‍तिकतावादी, आधुनिकतावादी (प्रगतिशीलवादी), मिशनरी एकत्र होकर अजेंडा कार्यान्वित करने का काम कर रहे हैं । भारत को तोडना एवं हिन्दू धर्म को नष्‍ट करना, उनका षड्‌यंत्र है । अकलाख की हत्‍या के उपरांत ये ‘पुरस्‍कार वापसी’ का अभियान चलाते हैं; परंतु राजस्‍थान के कन्‍हैयालाल की हत्‍या के उपरांत ये लोग मौन साध जाते हैं । ये लोग लव जिहाद के विषय में एक शब्द भी नहीं बोलते । एक ओर तो ये लोग धर्म को ‘अफीम की गोली’ बताते हैं, तो दूसरी ओर केरल के शबरीमला मंदिर में महिलाएं प्रवेश कर सकें, इसलिए आंदोलन करते हैं । चुनिंदा घटनाओं के संदर्भ में ये लोग शांति रखते हैं । इन लोगों का सामना करने हेतु हिन्दुओं को भी एकत्र होकर कार्य करना होगा । फिल्मी जगत, सामाजिक माध्‍यम, न्‍यायव्‍यवस्‍था, राजनीति, क्रीडा, कला आदि माध्‍यमों से राष्‍ट्र एवं हिन्दू धर्म के विरुद्ध नैरेटिव तैयार करने का काम जोर-शोर से शुरू है । पिछले १० वर्षों में इन सभी क्षेत्रों में बडी मात्रा में वैचारिक ध्रुवीकरण हुआ है । इस कारण आगामी ५ वर्ष हमारे लिए महत्त्वपूर्ण हैं । कहा जाता है कि बौद्धिक समाज मतभेद के कारण एकत्र कार्य नहीं करता, परंतु भविष्‍य में यह निष्‍कर्ष परिवर्तित करना पडेगा । बौद्धिक मतभेद भुलाकर हिन्दू राष्‍ट्र की स्‍थापना हेतु हिन्दुओं को एकत्रित कार्य करना पडेगा । ‘ब्रेन वॉशिंग’ अर्थात वास्तव में बुद्धि शुद्ध कर बौद्धिक युद्ध में सम्मिलित होना होगा ।’

बिना हिन्दुओं के भारत का अस्‍तित्‍व असंभव है एवं बिना भारत हिन्दू सुरक्षित नहीं ! – कर्नल आर.एस.एन. सिंह, सुरक्षा विशेषज्ञ

कर्नल आर.एस.एन. सिंह, सुरक्षा विशेषज्ञ

यहां सुरक्षा विशेषज्ञ कर्नल आर.एस.एन. सिंह ने ‘वैश्‍विक हिन्दू राष्‍ट्र महोत्‍सव’ के चतुर्थ दिन वक्‍तव्‍य देते हुए कहा, ‘सनातन के समर्पण के कारण अखिल भारतीय हिन्दू राष्‍ट्र अधिवेशन हो रहा है एवं इस अधिवेशन के कारण इस राष्‍ट्र का अस्तित्व अब तक है । इसी समर्पण के कारण इस वर्ष भाजपा की लोकसभा में २४० स्थानों पर जीत हुई । बिना हिन्दुओं के भारत का अस्तित्व असंभव है और  बिना भारत हिन्दू सुरक्षित नहीं ! वर्ष २०२४ का लोकसभा चुनाव, एक युद्ध था । इस युद्ध में हम लहूलुहान हो गए; परंतु अंतिम विजय हमारी ही हुई ।’ वे ‘राष्‍ट्र पर होनेवाले प्रहार’ इस विषय पर बोल रहे थे ।

‘विरोधकों के षड्‍यंत्रों की बलि चढना, भारतीयों के लिए लज्‍जाजनक !

‘‘‘फिलिस्तीन’ का समर्थन करनेवाले ओवैसी जैसे अलगाववादी संसद में चुने गए हैं । इसलिए आगे चलकर लोकसभा में गुंडागर्दी दिखने पर आश्चर्य नहीं होना चाहिए!  मुसलमानों से यदि पूछा जाए कि कुरान एवं संविधान में श्रेष्‍ठ कौन ? अथवा यदि ईसाईयों से पूछा जाए कि ‘बाइबल एवं संविधान में श्रेष्‍ठ कौन ?’, तो उनका उत्तर हमें पता है । विरोधकों के ‘इकोसिस्टम’ के अनुसार भारत राष्‍ट्र नहीं, अपितु केवल भूमि का टुकडा है । इस ‘इकोसिस्टम’ का प्रारंभ बहुचर्चित ‘टुकडे-टुकडे’ आंदोलन से हुआ । इस आंदोलन के उपरांत ‘हिन्दुओं की प्रतिक्रिया क्या होगी ?’, ‘इस आंदोलन का विरोध करनेवाले कितने लोग हैं ?’, ‘तटस्थ कितने एवं समर्थन देनेवाले कितने होंगे ?’, इन सभी की कसौटी के रूप में यह आंदोलन था । दुर्भाग्य से इसमें तटस्‍थ एवं विरोधकों के सूत्रों का समर्थन करनेवाले अधिक थे । यह हमारे लिए लज्‍जाजनक है ।’’ उन्होंने आगे कहा, ‘सनातन के ग्‍लोबलाइजेशन’ से विरोधकों को भय !

‘‘विरोधकों को सबसे अधिक संकट ‘सनातन के ग्‍लोबलाइजेशन’ से है । गांधी को भी इसी से धोखा था । इस कारण उन्होंने भगतसिंह आदि क्रांतिकारियों की फांसी नहीं रोकी । वीर सावरकर का कालेपानी का दंड नहीं रोका । इसी भय के कारण उन्होंने नेताजी सुभाषचंद्र बोस को कांग्रेस के अध्‍यक्षपद का त्‍यागपत्र देना अनिवार्य किया । इस ‘सनातन ग्‍लोबलाइजेशन’ का नेहरू एवं इंदिरा गांधी भी विरोध कर रहे थे ।’’

भारत के ‘ट्रान्‍सजेंडर’का महिमामंडन धोकादायक  ! – नीरज अत्री, अध्यक्ष, विवेकानंद कार्य समिति, पंचकुला, हरियाणा

नीरज अत्री, विवेकानंद कार्य समिति, हरियाणा

शस्त्रक्रिया द्वारा लिंग परिवर्तन करना, तब भी व्यक्ति के मन की भावनाएं नहीं बदल सकते । इसलिए व्यक्ति का जीवन नरकसमान हो जाता है; परंतु प्रपोगंडा (प्रचार) कर इसे ‘आधुनिकता’ होना दिखाया जा रहा है । एक बार लिंग परिवर्तन कर, उसे पुन: शस्त्रक्रिया कर मूल रूप में नहीं ला सकते । विदेश में इसकारण सैकडों लोगों का जीवन उद्‍ध्‍वस्त हुआ है । अब भारत में भी युवा पीढी को इसका शिकार बनाया जा रहा है । फिल्मों में ऐसे पात्र जानबूझकर दिखाकर उनका महिमामंडन (उदात्तीकरण) किया जा रहा है । भारत सरकार के स्वास्थ्य की आयुष्‍यमान योजना में ‘तृतीय पंथियों’ के लिए पर्याय में ‘ट्रान्‍सजेंडर’ का पर्याय दिया गया है । इसप्रकार इस शब्द को प्रसारित किया जा रहा है । आयुष्‍यमान योजना के अंतर्गत लिंगपरिवर्तन करने में जो व्यय होता है, सरकार से ५ लाख रुपयों तक की सहायता लेने की योजना है । इसके पीछे बडी ‘मेडिकल लॉबी’ है । अमेरिका में लिंग परिवर्तन करने का निर्णय महाविद्यालय के विद्यार्थी ले सकते हैं । इसमें यदि अभिभावक रोकटोक करते हैं, तो उन्हें दोषी ठहराया जाता है । यह काम भारत में भी स्वास्थ्य बीमा के नाम पर शुरू हुआ है । भारतीय प्रशासकीय सेवा के कुछ अधिकारी इसे प्रोत्साहन दे रहे हैं । केंद्रसरकार के महिला और बाल कल्याण विभाग के जालस्थल पर इसका अधिकृतरूप से प्रसार किया जाता है । शस्त्रक्रिया द्वारा लडके का लडकी बनाना और लडकी का लडका बनाना अर्थात लिंग बदलनेवालों को ‘वोकीजम’ कहा जाता है । विदेश में चलनेवाला यह प्रकार भारत में भी शुरू हो गया है । भारत के लिए यह अत्यंत घातक है, ऐसा वक्तव्य हरियाणा के विवेकानंद कार्य समिति के अध्‍यक्ष श्री. नीरज अत्री ने किया । वे ‘वोकिजम : राष्ट्रघातकी विचार’ विषय पर बोल रहे थे ।

संगणकीय जानकारी का राक्षसीकरण रोकने हेतु सामाजिक प्रसारमाध्यमों में धर्मप्रेमी भारतीय होना आवश्यक ! – प्रा. के. गोपीनाथ, ऋषिहूड विश्वविद्यालय, बेंगळुरू, कर्नाटक

प्रा. के. गोपीनाथ, ऋषिहूड विश्वविद्यालय, बेंगळुरू, कर्नाटक

कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआइ) यह प्रणाली अनुमान लगाने से संबंधित है । जानकारी (डेटा) एकत्रित करना, उसका एकदूसरे से संबंध जोडना एवं इस जानकारी के आधार पर अनुमान कथन करना, ऐसी यह प्रक्रिया होती है । हमारे यहां अनुमान कथन करने की पद्धति बहुत प्राचीन है । खगोल विज्ञान में ग्रहण के संदर्भ में अनुमान कथन किए जाते हैं । भिन्न- भिन्न ग्रहों की स्थिति की गणना कर ग्रहण के संदर्भ में अनुमान लगाए जाते है । ‘एआइ’ प्रणाली पूर्णतः अनुमान पर आधारित है । तार्किक एवं संख्यात्मक जानकारी के आधार पर यह अनुमान लगाया जाता है ।

‘चैटजीपीटी’ नामक कृत्रिम बुद्धिमत्ता के आधार पर इस प्रणाली में संग्रहित जानकारी के आधार पर अगला अनुमान लगाया जाता है । ‘एआइ’ यह प्रणाली अनेक प्रकार की जानकारी पर आधारित होती है । वह उच्च स्तर की अनुमान लगाने से संबंधित प्रणाली है । इस हेतु उसे बहुत बडा ‘डेटा’ संग्रहित करने की आवश्यकता होती है । भारतीय संस्कृति से संबंधित जानकारी कृत्रिम बुद्धिमत्ता को मिलने हेतु धर्मप्रेमी भारतीय सामाजिक प्रसारमाध्यमों में होना आवश्यक है । यदि ऐसा न हुआ, तो एआइ’ प्रणाली में जो भेदभावपूर्ण ‘डेटा’ की आपूर्ति होती है, उसमें सुधार नहीं होंगे तथा उसमें से इस जानकारी का बडी मात्रा में राक्षसीकरण होगा ।

पुर्तगाली और ब्रिटिश इतिहासकारों ने समकालीन तकनीकी ज्ञान का उपयोग कर अनुचित जानकारी संग्रहित की एवं उसके आधार पर भारत देश तथा भारतीयों को अपकीर्त (बदनाम) किया । ब्रिटिशों ने इसी जानकारी के आधार पर भारत में ‘तोडो एवं राज करो’ इस नीति को अपनाया । उस काल में भारतीयों के विषय में झूठे कथानक (नैरेटिव) तैयार किए गए । भारतीय समाज पूर्व से ही आर्थिकदृष्टि एवं राजनीतिक दृष्टि से निर्बल होने के कारण भारत में बौद्धिक स्तर पर सभी स्थानों पर बाह्यशक्तियों ने अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया । बाह्यशक्तियां भारत के विषय में बडी मात्रा में जानकारी इकट्ठा करती है । तदुपरांत वह अपने तरीके से प्रस्तुत करती है ।

‘एआय’ प्रणाली कोई भी संकल्पना प्रस्तुत करने हेतु ‘वेक्टर’ का (गणितीय पद्धति से जानकारी संग्रहित करना) प्रयोग करती है और अधिकाधिक ‘डेटा’ इकट्ठा कर ‘वेक्टर’ की परिधि बढाई जाती है । यह प्रक्रिया अधिक समय लेनेवाली एवं महंगी है । ‘एआइ’ वर्तमान में बडा खिलाडी है; क्योंकि वह बहुत बडी जानकारी कुशलता पूर्वक संभालता है । इस कारण ‘एआइ’ को उचित जानकारी की आपूर्ति करना आवश्यक है ।

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