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वैश्विक हिन्दू राष्ट्र अधिवेशन का चौथा दिन (२७ जून) : राष्ट्र, धर्म एवं संस्कृति की रक्षा के प्रयास कैसे करने चाहिए ?

बाएं से, स्वप्नील सावरकर (संपादक, हिन्दुस्थान पोस्ट (डिजिटल मीडिया हाऊस), मुंबई, महाराष्ट्र), अभिजीत जोग (प्रबंध निदेशक, ‘प्रतिसाद’ कम्युनिकेशन), मेजर सरस त्रिपाठी एवं हर्षद खानविलकर (युवा संगठक, हिन्दू जनजागृति समिति, गोवा)

हिन्दुत्वनिष्ठों को ‘डिजिटल’ योद्धा बनना चाहिए ! – स्वप्नील सावरकर, संपादक, हिन्दुस्थान पोस्ट (डिजिटल मीडिया हाऊस), मुंबई, महाराष्ट्र

(डिजिटल योद्धा का अर्थ है सामाजिक प्रसारमाध्यमों के द्वारा होनेवाले वैचारिक आक्रमण को रोकनेवाला व्यक्ति)

स्वप्नील सावरकर, संपादक, हिन्दुस्थान पोस्ट (डिजिटल मीडिया हाऊस), मुंबई, महाराष्ट्र

माध्यमों में हिन्दुत्व के प्रति नकारात्मकता है । आज का युग ‘डिजिटल’ युग है । क्या हम इस ‘डिजिटल’ युग की नई क्रांति में सम्मिलित होने के लिए तैयार हैं ? मुख्य प्रवाह के माध्यम वैश्विक हिन्दू राष्ट्र महोत्सव जैसे बडे कार्यक्रम को प्रसिद्धि नहीं देते । प्रसारमाध्यमों को कैसे ‘मैनेज’ किया जाता है, इसे ध्यान में लेना चाहिए । हिन्दुत्वनिष्ठों को ‘डिजिटल’ योद्धा बनना चाहिए । चलित भ्रमणभाष आज के समय का दोहरा हथियार है । उसका उपयोग कैसे करना चाहिए ?, यह सीख लेना चाहिए । आज यदि वीर सावरकर होते, तो वे भी यही बात कहते । हमारी अगली पीढी हिन्दू राष्ट्र ला सकेगी; इसलिए उसे उसकी भाषा में समझ में आए, इस प्रकार की सामग्री हमें तैयार करनी चाहिए । ‘राष्ट्र प्रथम’ का विचर लेकर काम करनेवाले ३० सेकंड के ‘रिल्स’ (छोटे वीडियो) बनाने पडेंगे । इस प्रकार तैयार किए गए समाचार माध्यमों को देने पडेंगे । ऐसे उपायात्मक सूत्र वीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक के श्री. स्वप्नील सावरकर ने रखे । वैश्विक हिन्दू राष्ट्र अधिवेशन के चौथे अर्थात २७ जून को संपन्न ‘राष्ट्र, धर्म एवं संस्कृति रक्षा हेतु कैसे प्रयास करने चाहिएं ?’, इस सत्र में ‘हिन्दू संगठनों को प्रभावशाली मीडिया व्यवस्थापन की आवश्यकता’ विषय पर वे ऐसा बोल रहे थे ।

सावरकर ने आगे कहा कि हिन्दुत्वनिष्ठ पाठ्यक्रम से युक्त पत्रकारिता की शिक्षा तैयार की जानी चाहिए । हिन्दुत्वनिष्ठ शिक्षा देनेवाली संस्थाएं खोली जानी चाहिएं । राष्ट्र हेतु यदि हमने १० से १५ वर्ष माध्यमों के लिए परिश्रम किए, तो आगे जाकर हिन्दुत्व के लिए पूरक माध्यम उपलब्ध होंगे । आज हिन्दू शेर अपने-अपने क्षेत्रों में कार्यरत हैं; परंतु उन्हें एकत्र आना चाहिए । वर्तमान समय की वामपंथी विचारधारावाली माध्यमों को बदलने हेतु सत्ताधारियों को दबाव बनाना चाहिए तथा उस प्रकार से दबाव बनाने हेतु हमें अपने माध्यमों को शक्तिशाली बनाना चाहिए ।

संस्कृति पर आक्रमण करनेवालों के मुखौटों को पहचानकर उनके विरुद्ध लडना चाहिए ! – अभिजीत जोग, प्रबंध निदेशक, ‘प्रतिसाद’ कम्युनिकेशन

अभिजीत जोग, प्रबंध निदेशक, ‘प्रतिसाद’ कम्युनिकेशन

स्वतंत्रता के उपरांत इतिहास तथा शिक्षाप्रणाली पर वामपंथियों की प्रभुता रही है । भारत के टुकडष करना वामपंथियों की नीति रही है । उन्होंने भारत के टुकडे करने हेतु इतिहास एवं शिक्षा में तोडफोड की । वर्ष २०१४ में ये प्रयास असफल सिद्ध होने के उपरांत ÷होंने हिन्दू संस्कृति को लक्ष्य बनाना आरंभ किया । धर्मसंस्था, राष्ट्रवाद एवं शिक्षाव्यवस्था संस्कृति के आधार हैं; इसलिए उन्हें नष्ट करने का प्रयास किया गया । हमारी संस्कृति यदि नष्ट हुई, तो हमारा अस्तित्व मिट जाएगा । इसलिए इस आक्रमण को समझ लेना पडेगा । इसके लिए उनके मुखौटों को पहचानकर हमें उनके विरुद्ध लडना चाहिए । अंततः विजय हमारी ही होनेवाली है, ऐसा प्रतिपादन ‘प्रतिसाद’ कम्युनिकेशन के प्रबंध निदेशक अभिजीत जोग ने ‘वैश्विक हिन्दू राष्ट्र महोत्सव’के चौथे दिन अर्थात २७ जून को किया ।

उन्होंने आगे कहा, ‘’भारत पर लंबे समय तक राज करने हेतु उन्होंने यहां की संस्कृति नष्ट कर भारतीयों का आत्मविश्वास तथा आत्मसम्मान नष्ट करने के प्रयास किए । उसके लिए उन्होंने शिक्षा तथा इतिहास नष्ट करने का प्रयास किया । प्राचीन काल से चले आ रहे गुरुकुल बंद कर अंग्रेजी शिक्षाव्यवस्था आरंभ की । उसके कारण भारत के अधिकतर लोक अशिक्षित बन गए । इसके साथ ही उन्होंने भारत के मूल इतिहास में झूठी बातें घुसा दी, साथ ही भारत में प्राचीन काल से चली आर रही मनुष्य के कर्म पर आधारित वर्णव्यवस्था को उन्होंने जन्म पर आधारित अर्थात जातिव्यवस्था का नाम दिया । इस प्रकार अंग्रेजों ने हमारी पहचान दूर कर उनकी इच्छा के अनुसार पहचान हम पर थोप दी । इस प्रकार से मेकैले के पुत्र तथा मार्क्सवादियों ने एकत्रित होकर भारत का आत्मसम्मान नष्ट करने का प्रयास किया ।’’

कश्मीर में सेना की ओर से धर्मांधों द्वारा तोडे गए कुछ मंदिरों का पुनर्निर्माण किया जा रहा है ! – मेजर सरस त्रिपाठी

मेजर सरस त्रिपाठी

एक बार अटलबिहारी वाजपेयी के पास एक पाकिस्तानी अधिकारी आकर कश्मीर का मानचित्र देकर उन्हें कहने लगा, ‘आप यह टोपी निकाल कर दें’ उस समय उन्होंने कहा, ‘‘यह टोपी नहीं, अपितु हमारा मस्तक है तथा मस्तक कोई निकालकर नहीं देता ।’’ कश्मीर का इतिहास ८ सहस्र ५०० वर्ष से भी पुराना है । ऋषि कश्यप की यह नगरी कुछ सौ वर्ष पूर्व भारत की शिक्षानगरी थी । यहां की आज की झेलम अर्थात वितस्ता नदी तो साक्षात माता पार्वती का रूप है । शिवजी ने माता पार्वती को आज्ञा देकर वहां भेजा है ।

५०० वर्षाें तक कश्मीर पर आक्रमण हुए । मुसलमान शासकों ने यहां के हिन्दुओं पर अत्यंत क्रूरतापूर्ण प्रतिबंध लगाए । उसके कारण वहां का हिन्दू वंश नष्ट हुआ । अभी तक कश्मीरी लोगों को यहां से ७ बार पलायन करना पडा है । मुसलमान शासकों ने यहां के सूर्यमंदिर मार्तंड मंदिरसहित सैकडों मंदिर नष्ट किए । पिछले कुछ दिनों में सेना ने यहां के कुछ छोटे मंदिरों का पुनर्निर्माण करने का प्रयास किया है, ऐसी जानकारी उत्तरप्रदेश के प्रज्ञा मठ पब्लिकेशन के लेखक तथा प्रकाशक मेजर सरस त्रिपाठी ने दी । २७ जून को वैश्विक हिन्दू राष्ट्र अधिवेशन के ‘राष्ट्र, धर्म एवं संस्कृति रक्षा’ के सत्र में ‘सांस्कृतिक धरोहर की रक्षा में सेना की भूमिका’ विषय पर वे ऐसा बोल रहे थे ।

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