हिन्दू धर्माचरण के पीछे आध्यात्मिकता के साथ वैज्ञानिक विचार ! – श्री वीरभद्र शिवाचार्य महास्वामीजी, बालेहोन्नरू, खासा शाखा मठ, श्रीक्षेत्र सिद्धरामबेट्टा, तुमकुरू, कर्नाटक
सनातन धर्म से ही शांति मिलती है, इस पर विदेशों के लोग भी विश्वास करते हैं । कुछ शक्तियां इस सनातन हिन्दू धर्म का नाश करने हेतु प्रयासरत हैं । इसे रोकने हेतु सभी संत, हिन्दुत्वनिष्ठ संगठन तथा हिन्दू धर्मप्रेमियों को प्रयास करने पडेंगे, तभी हमारा धर्म टिका रहेगा । हिन्दू धर्माचरण के पीछे आध्यात्मिकता के साथ वैज्ञानिक विचार भी है । अन्य धर्मी लोग उनके धर्म के विषय में प्रश्न नहीं पूछते; परंतु हिन्दू धर्माचरण करने से पूर्व प्रश्न पूछते हैं; इसलिए हमें हिन्दुओं को धर्माचरण के पीछे समाहित वैज्ञानिक कारण बताने आवश्यक हैं । हिन्दू राष्ट्र की स्थापना में सभी को सफलता मिले, ऐसा तुमकुरू (कर्नाटक) के वीरभद्र शिवाचार्य महास्वामीजी महाराज ने ‘वैश्विक हिन्दू राष्ट्र महोत्सव’में दिया ।
हिन्दू धर्मविरोधियों के द्वारा किए जानेवाले दुष्प्रचार के विरुद्ध आक्रामक नीति आवश्यक ! – डॉ. भास्कर राजू वी., न्यासी, धर्ममार्गम् सेवा ट्रस्ट, तेलंगाना
संपूर्ण विश्व में सनातन धर्म ही सत्य है, अन्य सभी असत्य हैं । ईसाई, इस्लामी तथा नास्तिक अर्थात वामपंथियों द्वारा दुष्प्रचार किया जा रहा है । झूठी कथाएं रची जा रही हैं । इसका सामना करता समय सनातनधर्मीय सुरक्षात्मक नीति अपना रहे हैं; परंतु अब इसका समय आ गया है कि इस दुष्प्रचार का सामना करते समय हमें आक्रामक नीति अपनाना आवश्यक है, ऐसा प्रतिपादन तेलंगाना के धर्ममार्गम् सेवा ट्रस्ट के न्यासी डॉ. भास्कर राजू वी. ने यहां के वैश्विक हिन्दू राष्ट्र महोत्सव को संबोधित करते हुए किया ।
डॉ. भास्कर राजू वी. ने आगे कहा कि ईसाई तथा इस्लामी पाखंडी हैं, जबकि वामपंथी देशद्रोही हैं । इन लोगों की विचारधारा को अस्वीकार किया जाना चाहिए । हमने उनकी झूठी कथाओं को खारीज करनेवाला ‘नैरेटिव’ तैयार करना चाहिए । उसके लिए सभी प्रकार के भेद बाजू में रखकर हिन्दू के रूप में संगठित होकर हमें आक्रामक नीति अपनानी चाहिए । इसे करते हुए हमें पाखंडी, जिहादी, धर्मांध, ‘कन्वर्जन माफिया’, ‘अर्बन नक्सल’ (शहरी नक्सलवाद) इत्यादि शब्दों का खुलकर प्रयोग करना चाहिए ।
कानून बनाने हेतु अनेक देशों ने मनुस्मृति का संदर्भ लिया ! – भारताचार्य पू. प्रा. सु.ग. शेवडेजी, राष्ट्रीय प्रवचनकार तथा कीर्तनकार, मुंबई, महाराष्ट्र
विश्व अनादि है तथा ईश्वर ही इस विश्व के नियंता हैं । इस विश्व का कार्य वेदों के अनुसार चलता है । अन्याय करनेवाले को नरकयातनाएं भोगनी पडती हैं, जबकि अच्छा आचरण करनेवाले को अच्छा फल मिलता है, इस प्रकार विश्व की व्यवस्ता है । जो भगवान को नहीं मानते, वे इस पर विश्वास नहीं करते । धर्म समझ लेने हेतु भगवान ने वेदों की निर्मिति की । सोना पुराना भी हुआ, तब भी उसका मूल्य न्यून नहीं होता । उसी प्रकार वेद भले ही प्राचीन हों; परंतु उनमें विद्यमान ज्ञान कालबाह्य नहीं होता । भगवान के पास असीम ज्ञान है । सत्ययुग में भी अग्नि में लकडी डालने पर वह जलती थी तथा कलियुग में भी जलती है । उस प्रकार वेदों का ज्ञान शाश्वत है, यह बतानेवाले मनु पृथ्वी के पहले व्यक्ति थे । मनु राजा थे । जब पाश्चात्त्यों को कपडे पहनने का भी ज्ञान नहीं था, उस समय मनु ने ‘मनुस्मृति’ लिखी । ऐसा ज्ञान देनेवाले मनु को मैं पूजनीय मानता हूं । अनेक देशों ने कानून बनाने हेतु मनुस्मृति का संदर्भ लिया । अतः ‘मनुस्मृति’, ‘वेद’ तथा अन्य धर्मग्रंथों का अन्याय सहन न करें, ऐसा आवाहन भारताचार्य पू. प्रा. सु.ग. शेवडेजी ने ‘मनुस्मृति’ पर होनेवाली राजनीति कैसे रोकी जाए ?’, इस विषय पर मार्गदर्शन करते हुए किया ।
धर्मप्रसार हेतु अधिकाधिक संत बनने आवश्यक ! – बाल सुब्रह्मण्यम्, निदेशक, मंगलतीर्थ इस्टेट एवं ब्रुकफील्ड इस्टेट, चेन्नई, तमिलनाडू
पहले मंदिरों से हिन्दुओं को संस्कार मिलते थे; परंतु अब सरकार की नीतियों के कारण वह बंद हुआ है । ऐसे संस्कार आश्रम में मिल सकते हैं । आश्रम में रहनेवाले संत-महात्माओं के कारण लोगों के धार्मिक प्रश्नों के उत्तर मिलते हैं, साथ ही गांव में संत अथवा महात्माओं के आने से वहां के वातावरण में अच्छा परिवर्तन आता है । अतः समाज में धर्म का प्रसार होने हेतु अधिकाधिक संत बनने चाहिएं, जिससे हिन्दू संस्कार जीवित रहेंगे, ऐसा प्रतिपादन ‘मंगलतीर्थ इस्टेट एवं ब्रुकफील्ड इस्टेट’के निदेशक श्री. बाल सुब्रह्मण्यम् यांनी ‘वैश्विक हिन्दू राष्ट्र महोत्सव’के चौथे दिन किया ।
श्री. बाल सुब्रह्मण्यम् ने कहा, ‘‘वेद, पुराणों, उपनिषदों, गीता, रामायण, महाभारत आदि धर्मग्रंथों में एक शब्द का भी परिवर्तन हुए बिना वे हम तक पहुंचे हैं । यह केवल गुरु-शिष्य परंपरा के कारण संभव हुआ है; इसलिए हमें गुरु-शिष्य परंपरा का सम्मान करना चाहिए । इस अमूल्य ज्ञान को अगली पीढी तक पहुंचाना हमारा दायित्व है । हमारे धर्म का ज्ञान हमारी संस्कृति है । अंग्रेजों का शासन आने से पूर्व भारत में लाखों गुरुकुल थे, जिनके कारण समाज को धर्म की शिक्षा तथा नैतिक मूल्यों की शिक्षा मिलती थी । आज लोगों को धर्म की शिक्षा नहीं मिलती; उसके कारण धर्मांतरण हो रहा है । स्वामी विवेकानंदजी ने कहा था, ‘‘बच्चे यदि विद्यालय नहीं जाते हों, तो विद्यालयों को उन तक पहुंचाना चाहिए’’, इसे ध्यान में लेकर हमने ‘बनवासी लोगों को शिक्षा मिले’, इसके लिए गांवों में ‘एकल विद्यालय’ खोले । उस माध्यम से गांव के बच्चों को प्राकृतिक वातावरण मूल्यों पर आधारित शिक्षा दी जाती है । इस प्रकार संपूर्ण देश में ७० सहस्र एकल विद्यालय चल रहे हैं ।’’
प्रत्येक राज्य में हिन्दू विचारकों का संगठन होना आवश्यक ! – श्री. मोहन गौडा, कर्नाटक राज्य प्रवक्ता, हिन्दू जनजागृति समिति
कर्नाटक में एक डॉक्टर हिन्दू युवती और बोझा ढोनेवाले मजदूर मुसलमान युवक का आंतरधर्मीय विवाह होने की जानकारी विवाह पंजीयन कार्यालय (रजिस्ट्रेशन ऑफिस) द्वारा समाचारपत्रों में प्रसारित की गई । इसका संदेश सामाजिक प्रसारमाध्यमों पर प्रसारित होने के केवल २ घंटों में ही एक मुसलमान व्यक्ति ने इस विषय में कार्रवाई करने के लिए पुलिस को आवाहन किया । कुछ मुसलमान अधिवक्ताओं ने मुख्यमंत्री से मिलकर विवाह पंजीयन कार्यालय द्वारा किया जानेवाला प्रसारण न करने की मांग की । एक संदेश पर केवल २ दिनों में ही मुसलमान उसके लिए एकत्र हो गए । हिन्दुओं को भी इसप्रकार की संपर्कव्यवस्था निर्माण करना आवश्यक है । इसके लिए हिन्दू विचारकों का संगठन आवश्यक है । हिन्दू जनजागृति समिति की ओर से विविध राज्यों में हिन्दू विचारकों का संगठन बनाया जा रहा है । इससे हिन्दुओं का दबावतंत्र निर्माण हो सकता है, इसके साथ ही हिन्दू धर्म पर वैचारिक आक्रमण को योग्य प्रकार से प्रत्युत्तर दे पाएंगे ।
जहां धर्म है, वहीं विजय है ! – पू. डॉ. शिवनारायण सेन, सहसचिव, शास्त्र धर्म प्रचार सभा, कोलकाता
पू. डॉ. शिवनारायण सेन ने कहा, ‘बंगाल के संत पंडित उपेंद्र मोहन के प्रारंभ का जीवन कष्टमय था । विवाह के उपरांत पत्नी के अनुरोध पर उन्होंने चंडीपाठ किया । चंडीपाठ में देवीमां ने कहा है ‘जो कोई चंडीपाठ करेगा, उनके सभी प्रकार के दु:ख मैं दूर करती हूं !’ उन्होंने उसकी प्रतीति लेने हेतु चंडीपाठ जारी रखा । एक वर्ष के उपरांत उन्हें अनुभूति हुई । उनके बहुत से प्रलंबित काम हो गए । उन्होंने चंडीपाठ का पठन अखंड शुरू रखा । ढाई वर्षों के पश्चात प्रत्यक्ष भगवान उनके सामने प्रगट होकर बोले, ‘‘मेरे साथ चलो, मैं तुम्हें लेने आया हूं ।’ उन्होंने भगवान के साथ जाना अस्वीकार कर दिया । उन्होंने भगवान से कहा, ‘आप कितने दयालु हैं, यह सभी को बता न दूं, तब तक मैं आपके साथ नहीं चलूंगा । विश्व भगवान को भूल गया है । इसलिए भगवान के मन में विशाद है । उनकी यह वेदना दूर होने तक मैं नहीं आऊंगा ।’ ‘जहां धर्म है, वहीं विजय है’, इस पर उनकी श्रद्धा थी । पंडित उपेंद्र मोहनजी के जीवन का यह प्रसंग कोलकाता, बंगाल के शास्त्र धर्म प्रचार सभा के सहसचिव पू. डॉ. शिबनारायण सेन ने बताया । ‘पंडित उपेंद्र मोहनजी के हिन्दू राष्ट्र के संबंध में विचार’ इस विषय पर बोलते समय उन्होंने पंडितजी का जीवनचरित्र उजागर किया ।
पू. डॉ. सेन ने आगे कहा, ‘पंडित उपेंद्र मोहनजी कहते थे, ५०० वर्ष मुसलमानों ने भारत को लूटा, मंदिर तोड डाले, परंतु वे हिन्दुओं का विश्वास नहीं तोड सके । आक्रामकों ने भारत को बडी मात्रा में लूट लिया, तब भी उस समय भारत की आर्थिक स्थिति विश्व में सुदृढ थी । ब्रिटिशों ने वर्ष १९३६ में देश में संस्कृत सिखाने पर प्रतिबंध लगा दिया । तब पंडित उपेंद्र मोहनजी ने उसका विरोध करते हुए ब्रिटिशों को सुनाया ‘संस्कृतद्रोह पाप है । पंडित उपेंद्र मोहनजी जिलाधिकारी बन गए । इस सरकारी पद पर कार्यरत रहते हुए उन्होंने भारतीय संस्कृति, परंपरा एवं नीतिमूल्यों को बनाए रखने का प्रयास किया । उसके लिए उन्होंने सरकारी नौकरी से त्यागपत्र दे दिया । उन्होंने जर्मनी द्वारा किए गए जनसंहार का निषेध किया और कहा था जर्मनी एवं जापान द्वारा किए गए अधर्म का फल उन्हें भुगतना पडेगा और आगे ऐसा ही हुआ ।’