Menu Close

हिन्दुओं के विरोध को मिली सफलता, विशाळगड पर होनेवाले अवैध अतिक्रमण हटाने की कार्यवाही शुरु

अतिक्रमण कभी भी देशहित में नहीं है, चाहे वो सड़कों पर हो या फिर प्राचीन स्मारकों पर। महाराष्ट्र के कोल्हापुर में छत्रपति शिवाजी महाराज से जुडे एक किले पर अतिक्रमण को लेकर दो समुदायों में तनाव हो गया। दरअसल आरोप लगा है कि, प्राचीन किले में दरगाह के नाम पर अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों ने अतिक्रमण कर लिया। हिंदू संगठन के विरोध के बाद सरकार और प्रशासन की नींद टूटी और अब इस किले को अतिक्रमण मुक्त कराने का अभियान शुरू हो गया है।

रविवार को शिवप्रेमियों ने किया प्रदर्शन

महाराष्ट्र के कोल्हापुर में हिंदू संगठन छत्रपति शिवाजी महाराज के किला में मजहबी अतिक्रमण को लेकर गुस्से में है। गुस्साए प्रदर्शनकारियों ने अतिक्रमण के विरोध में कुछ घरों में तोड़फोड़ कर दी। महाराष्ट्र के कोल्हापुर में ये है विशालगढ़ किला। छत्रपति शिवाजी के इस किले का प्राचीन इतिहास है।

सन 1058 में इस किले का निर्माण शिलाहार राजा मार्सिंह ने करवाया था। इस किले को सन 1659 में छत्रपति शिवाजी ने आदिलशाह के कब्जे से मुक्त करवाया था। जिसके बाद छत्रपति शिवाजी ने इसका नाम विशालगढ़ रखा था। मराठा साम्राज्य के इस ऐतिहासिक महत्व वाले किले में हजरत सैयद मलिक रेहान मीर साहब की दरगाह और एक मस्जिद है। हिंदू संगठनों का आरोप है कि किले के आस-पास मुस्लिमों ने अवैध तरीके से अतिक्रमण कर लिया है।

छत्रपति शिवाजी महाराज से किले का संबंध

विशालगढ किले का संबंध छत्रपति शिवाजी महाराज से है। बीजापुर की आदिलशाही सेना से बचकर वो यहां पहुंचे थे। सेनापति सिद्दीक मसूद तब उन्हें मारना चाहता था। मराठा योद्धा बाजी प्रभु और फूलजी प्रभु ने वर्ष 1660 में पवनखिंड में युद्ध लड़कर, छत्रपति शिवाजी महाराज को विशालगढ पहुंचने में मदद की थी।

ये क्षेत्र मराठी अस्मिता और वीर छत्रपति शिवाजी महाराज के इतिहास से जुड़ी है। इस वजह से इस इलाके में विवाद की जड़ है, यहां की बदलती डेमोग्राफी। जिससे इस इलाके का असली इतिहास धीरे धीरे मिटता जा रहा था। वर्ष 1939 में यहां 12 घर थे, जिसमें 105 लोग रहते थे। उस वक्त यहां 1 मुस्लिम और 11 हिंदू घर थे। जिनमें 15 मुस्लिम और 90 हिंदू व्यक्ति रहते थे

फिलहाल यहां 685 लोग रहते हैं, जिसमें 534 मुस्लिम और 151 हिंदू हैं। आरोप है कि यहां पर 283 अवैध मकान हैं। यहां की सरकारी जमीनों को छोड़ दें तो बाकी जमीनें छत्रपति शिवाजी महाराज के वंशजों की ही थीं। लेकिन आरोप है कि 1960-70 के दशक में ये जमीनें मुजावर यानी दरगाह के सेवकों के नाम पर स्थानांतर हो गईं।

आरोप है कि दरगाह और यहां की कई इमारतें अवैध रूप से बनाई गई हैं। यहां के दरगाह और मस्जिद संचालकों पर जबरन धर्म परिवर्तन के भी आरोप हैं। इसी वजह से हिंदू संगठन, इस इलाके से अतिक्रमण को हटाने के लिए उग्र हो गए हैं।

दरगाह की आड़ में अतिक्रमण का आरोप

दरगाह की आड़ में अतिक्रमण का आरोप है। किले में मौजूद हिंदू मंदिरों का अपमान का भी आरोप लगाया है। हिंदू संगठनों का दावा है कि साज़िश के तहत अतिक्रमण हो रहा है। इसी अतिक्रमण के खिलाफ बड़ी संख्या में हिंदूवादी संगठन के लोग इकट्ठा हुए। जब इसकी जानकारी दूसरे पक्ष को हुई तो वो भी बड़ी संख्या में आ गए और देखते-देखते दोनों पक्षों में पत्थरबाजी शुरू हो गई। गाड़ियों में तोड़फोड़ और आगजनी भी की गई।

हिंदू संगठनों के विरोध के बाद महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने विशालगढ़ किले से अतिक्रमण हटाने का आदेश दिया है। मतलब अब इस किले में भी अतिक्रमण के खिलाफ बुलडोजर गरजेगा। सरकार के आश्वासन के बाद हिंदू संगठनों ने अपना विरोध वापस ले लिया और वादा पूरा नहीं होने पर आगे भी प्रदर्शन की चेतावनी दी है।

किले के आसपास भारी संख्या में फोर्स तैनात

हालांकि राज्य के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने अतिक्रमण पर कार्रवाई का आश्वासन दिया है, इसलिए फिलहाल स्थिति सामान्य होती दिख रही है। फिलहाल इलाके में शांति है लेकिन तनाव भी है। तनाव को देखते हुए किले के आस-पास भारी संख्या में पुलिस फोर्स भी तैनात है।

विशाळगढ़ पर अतिक्रमण के विषय को उठाने में ‘विशाळगढ़ रक्षा एवं अतिक्रमण विरोधी कार्य समिति’ का अग्रणी योगदान !

विशाळगढ़ पर अतिक्रमण के विषय को उठाने के लिए १४ मार्च २०२२ को श्री महालक्ष्मीदेवी की साक्षी में और ‘जय भवानी जय शिवाजी’ के जयघोष के साथ ‘विशाळगढ़ रक्षा एवं अतिक्रमण विरोधी कार्य समिति’ की स्थापना की गई। इसमें पहली बार १६ मार्च को समिति ने कोल्हापुर में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर इस प्रकरण को उठाया। इस अवसर पर समिति के प्रवक्ता श्री. सुनील घनवट ने विशाळगड पर हुए अतिक्रमण, मंदिरों और समाधियों की दुर्दशा, और पुरातत्व विभाग की आपराधिक अस्वधानी को पत्रकारों के सामने प्रस्तुत किया और ‘पुरातत्व विभाग किस प्रकार धर्मांधों के अतिक्रमणों को जान कर भी अवहेलना कर रहा है?’ यह साक्ष्यों के साथ प्रस्तुत किया। इसके बाद इस विषय को जन जन तक पहुंचाने के लिए १८ मार्च २०२२ को कोल्हापुर के छत्रपति शिवाजी महाराज चौक में पुरातत्व विभाग के विरुद्ध ‘घंटानाद आंदोलन’ किया गया। इसके पश्चात पिछले ३ वर्षों से समिति द्वारा मुख्यमंत्री को ज्ञापन देना, विधायिका सत्र के समय आंदोलन करना, वन मंत्री को ज्ञापन देना, विभिन्न जिलों में आंदोलन करना, स्थानीय स्तर पर ज्ञापन देना आदि माध्यमों से यह संघर्ष जारी रहा। गढ़ पर हो रही पशुबलि के कारण वहां की पवित्रता नष्ट हो रही थी और इसके विरुद्ध भी समिति ने कुछ समय पूर्व ही आंदोलन किया जिसके कारण ईद के दिन वहां एक भी पशुहत्या नहीं हुई।

Related News

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *