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देवस्थान की ‘वर्ग 2’ की इनामी जमीन को ‘वर्ग 1’ में परिवर्तित कर स्थायी कब्जाधारियों को मालिकाना हक देने के सरकार के फैसले का मंदिर महासंघ द्वारा कड़ा विरोध

राजाओं और महाराजाओं के साथ भक्तों ने मंदिर के वित्तीय प्रबंधन, दिया-बाती की व्यवस्था और वार्षिक उत्सव आदि के उद्देश्य के लिए मंदिरों को अपनी भूमि दान में दी ।  इस ‘क्लास 2’ की जमीन को कोई बेच नहीं सकता है, लेकिन मीडिया से बात करते हुए सरकार ने कहा है कि मराठवाड़ा की यह ‘क्लास 2’ की इनामी जमीन ‘क्लास 1’ में बदल कर कब्जाधारियों या स्थायी कब्जेदारों को स्वामित्व अधिकार के साथ देने का निर्णय लिया जाएगा ।‌ ‘महाराष्ट्र मंदिर महासंघ’ सरकार के इस प्रस्तावित फैसले का कड़ा विरोध करता है क्योंकि इससे मंदिर स्थायी रूप से आर्थिक रूप से कमजोर हो जाएंगे। ‘महाराष्ट्र मंदिर महासंघ’ के प्रांत संयोजक श्री. सुनील घनवट ने आवाहन किया कि सरकार इस निर्णय पर पुनर्विचार करें तथा इस प्रकार का कोई भी निर्णय न ले । इस संबंध में कल मंदिर महासंघ के पदाधिकारियों की बैठक हुई और उक्त निर्णय लिया गया ।

एक करोड़ रुपये बाजार मूल्य की जमीन के लिए कब्जेदार को सिर्फ पांच लाख रुपये ही जमा कराने होंगे। यह बहुत अनुचित है कि मंदिर को एक बार केवल दो लाख रुपये दिये जायेंगे । सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला दिया है कि ‘मंदिर की जमीन पुजारियों या कब्जाधारियों के नाम पर नहीं की जा सकती’ और ‘मंदिर की जमीन पर किसी और का अधिकार नहीं है ।’ साल 2007 में सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसला दिया था कि ‘मंदिर की संपत्ति की पूरी सुरक्षा करना सरकार की जिम्मेदारी है ।’ इसलिए सरकार का उक्त फैसला सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उल्लंघन होगा ।

भले ही देश में न्याय सबके लिए बराबर है, लेकिन आज भी देश में केवल मंदिरों का ही सरकारीकरण किया जाता है । सरकार केवल मंदिरों का ही पैसा लेती है । मंदिरों के पैसों पर ही कर लगाया जाता है । लेकिन धर्मनिरपेक्ष सरकार इस न्याय को चर्चों और मस्जिदों पर क्यों लागू नहीं करती? यदि सरकार को जमीन चाहिए तो भारत सरकार के बाद सबसे अधिक जमीन के स्वामी वक्फ बोर्ड की लाखों एकड़ जमीन को सरकार क्लास 1 में स्थानांतरित कर कब्जाधारियों के नाम करने का साहसिक निर्णय ले ।

कई मंदिरों की ज़मीनों पर अतिक्रमण कर लिया गया है और उन पर अनाधिकृत निर्माण कार्य चल रहा है; इसलिए अगर सरकार ऐसा कोई फैसला लेती है तो यही कहना पड़ेगा कि इलाज बीमारी से भी बदतर है । अगर अतिक्रमण है, तो अतिक्रमण हटाना सरकार का काम है । ऐसा किए बिना कब्जाधारियों को भूमि का स्थायी मालिकाना हक देना अनुचित है। इस फैसले से मंदिरों का वित्तीय प्रबंधन, मंदिर की मरम्मत, वार्षिक उत्सव आदि सभी प्रभावित होंगे। मंदिरों का वित्तीय प्रबंधन ध्वस्त हो जाएगा। इसे कोई भी मंदिर प्रबंधन और श्रद्धालु जनता स्वीकार नहीं कर सकती ।

एक तरफ जहां देश की कई बीजेपी सरकारें मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त कराकर भक्तों को सौंपने की सोच रही हैं । मंदिरों को वित्तीय सहायता प्रदान कर रही है, ऐसे में महाराष्ट्र में मंदिरों की जमीन को लेकर ऐसी भूमिका क्यों है? ये सवाल सभी मंदिर ट्रस्टियों के मन में है । सरकार को समस्त मंदिर न्यासियों, पुजारियों एवं मंदिर प्रतिनिधियों की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए उक्त निर्णय नहीं लेना चाहिए, अन्यथा उन्हें सड़कों पर उतरकर आंदोलन करना पड़ेगा ।

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