विद्याधिराज सभागृह, श्री रामनाथ मंदिर, गोवा – आज, हिंदू धर्म और हिंदुओंकी रक्षाका मुख्य दायित्व हिंदुत्वनिष्ठ कार्यकर्ताओपर ही है । अधिकांश समय धर्मरक्षाका कार्य करनेवालोंपर ही धर्मांधोंके आक्रमण होते हैं । उनका प्रतिकार करनेके लिए प्रत्येक हिंदुत्वनिष्ठ कार्यकर्ताको अपनी रक्षाकी कला सीख लेनी चाहिए । आज हम कितने भी सुरक्षित हों, फिर भी कोई-न-कोई घटना ऐसी घट ही जाती है, जिसमें हमारे प्राण संकटमें पड जाते हैं । उस समय हम सोच नहीं पाते कि क्या करें । किंतु, यदि हमें स्व-रक्षाकी कला अवगत हो, तो ऐसे आक्रमणोंमें हम अपनी रक्षा कर सकते हैं । ऐसी घटनामें स्व-रक्षा करते समय छोटी-मोटी चोट लग भी जाए, तो चिकित्सा सुविधा उपलब्ध होनेतक प्राथमिक उपचारोंसे बडी सहायता हो सकती है, यह बात, हिंदू जनजागृति समितिके उत्तर भारत संयोजक श्री. विनय पानवळकरजीने हिंदूविरोधी दंगोंमें हिंदुओंकी रक्षा इस विषयपर भाषण करते समय कही ।
श्री. पानवळकरजीने कहा,
१. लव जिहाद, धार्मिक दंगे, ऐसे समय हिंदू सदा अपना धैर्य खो देते हैं तथा संघर्ष करना टालते हैं । स्व-रक्षा प्रशिक्षणसे संघर्ष करनेकी मनोवृत्ति बनती है ।
२. ई.स. २०१५ से युद्धकाल आरंभ होनेवाला है । उस समय किसी भी परिस्थितिसे निपटनेके लिए हिंदू कार्यकर्ताओको तत्पर होना चाहिए ।
३. हिंदू राष्ट्रकी स्थापनाके लिए हिंदुओको संगठित करना और सशक्त बनाना समानरूपसे आवश्यक है । दुर्बल हिंदू समाजको संगठित करना और बलशाली बनानेके कार्यक्रममें स्थान-स्थानपर कराटे, लाठी आदि चलानेकी स्व-रक्षा विद्या सिखानेवाले प्रशिक्षणवर्ग आरंभ करना । हिंदू समाजके बलशाली होनेपर, वह हिंदू धर्मपर आए संकटोंका प्रभावी ढंगसे प्रतिकार कर सकेगा ।