ज्येष्ठ शुक्ल १, कलियुग वर्ष ५११५
श्री. उपानंद ब्रह्मचारीजीने कहा,
१. प्रसारमाध्यमोंपर विदेशी शक्तियोंका प्रभाव है । यह प्रभाव नष्ट करना भी एक धर्मयुद्ध ही है । पत्रकारितामें विद्यमान धर्मनिरपेक्षता नष्ट होने हेतु हिंदुत्वनिष्ठ विचारोंके छोटे-छोटे समाचारपत्रोंका नियोजनपूर्वक प्रयोग किया जाना चाहिए ।
२. धर्मनिरपेक्ष प्रसारमाध्यमोंके लिए विकल्पके रूपमें समांतर व्यवस्थासे युक्त सामाजिक सूचना जालस्थलोंका (वेबसाइटोंका) परिणामकारक प्रयोग करना चाहिए । इसलिए हिंदुओंको जालस्थलोंके (वेबसाइटोंके) व्यक्तिगत खातेका उपयोग केवल मनोरंजन कर, समय गंवानेके लिए नहीं, अपितु हिंदू धर्मके प्रसार हेतु करना चाहिए ।
३. धर्मशिक्षा और धर्मसत्संगोंके माध्यमसे हिंदुओंसे संपर्क कर उन्हें धर्मशिक्षा देनी चाहिए ।
४. मुसलमान, उनके विरोधमें कोई अनिष्ट घटनेपर प्रसारमाध्यमोंके सामने जाकर कुहराम मचा देता है, इसलिए हिंदुओंको भी उनपर हो रहे अत्याचारोंको बिना झिझक प्रसारमाध्यमोंके सामने प्रस्तुत करनेकी आदत डाल लेनी चाहिए ।