ज्येष्ठ शुक्ल ३ , कलियुग वर्ष ५११५
विद्याधिराज सभागृह, श्री रामनाथ देवस्थान, गोवा : वर्तमान लोकतंत्रकी त्रुटियां तथा धर्माधारित हिंदू राष्ट्र इस विषयपर प्रा. रामेश्वर मिश्रने कहा, यूरोपके देशोंमें वहांकी धार्मिक व्यवस्थाको विशेष अधिकार हैं, साथ ही वहांके नागरिक अपने देशकी कभी निंदा नहीं करते । भारतमें ऐसा नहीं है । यहां बहुसंख्यकोंके धर्मका राज्यव्यवस्थामें कोई स्थान नहीं है ।
भारत और यूरोपके देशोंमें भेद विषद करते हुए प्रा. मिश्रने आगे कहा,
१. यूरोपके देशोंमें वहांकी राष्ट्रीय संपत्तिका स्वामित्व नागरिकोंका होता है । इसके विपरीत भारतमें वह शासनका अथवा राजनीतिक दलोंका होती है ।
२. वहां बहुसंख्यकोंके धर्मके कानूनी अधिकार होते हैं । मुसलमान देशोंमें शरीयत कानून होता है । बौद्ध देशोंमें उनके धर्मगुरु निर्णय करते हैं । परंतु भारतमें बहुसंख्यकोंकी धार्मिक संस्थाके कोई अधिकार नहीं । इसके विपरीत अल्पसंख्यकोंके धर्मको ही प्रधानता दी जाती है ।
३. यूरोपके देशोंमें न्याय और शिक्षा उस देशकी प्रथा-परंपराओंको केंद्रमें रख निश्चित की जाती हैं; परंतु भारतमें भारतीय ज्ञान परंपराका कोई स्थान नहीं ।
४. शिक्षाके संदर्भमें भी यूरोपमें पूर्वजोंकी ज्ञान-परंपराओंकी शिक्षा दी जाती है । परंतु भारतमें यूरोपकी ज्ञान-परंपराओंकी शिक्षा दी जाती है । भारतीय ज्ञानी-पंडितोंके संदर्भमें भारतमें शिक्षा नहीं दी जाती । यदि ऐसी शिक्षा दी जाए, तो भारत एक अच्छा राष्ट्र माना जाएगा ।
५. यूरोपके देशोंमें बहुसंख्यकोंके धर्मका पोषण और प्रसार वहंके शासकोंका दायित्व है । परंतु भारतमें बहुसंख्यकोंके धर्मकी अनदेखी कर अल्पंसंख्यकोंके धर्मका ही प्रसार किया जाता है ।
६. यूरोपमें कानून बनाते समय वहांके धर्मका आधार लिया जाता है । भारतमें वेदशास्त्र, धर्मशास्त्रको कोई नहीं मानता । भारतका संविधान भौतिकवादी, हिंदूविरोधी ही है । भारतमें आजतक ब्रिटिशोंद्वारा हिंदुओंका दमन करनेके लिए बनाए गए कानूनोंका उपयोग किया जाता है ।