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राष्ट्र तथा धर्मके विचार विद्यार्थियोंसे लेकर बडोंतक पहुंचानेवाले प्रा. दुर्गेश परुळकर ! – भाग २

ज्येष्ठ शुक्ल ४ , कलियुग वर्ष ५११५

निःस्वार्थ भावनासे राष्ट्र एवं धर्मके

विचार विद्यार्थियोंसे लेकर बडोंतक पहुंचानेवाले प्रा. दुर्गेश परुळकर !

श्री. दुर्गेश परुळकर

श्री. दुर्गेश परुळकर

राष्ट्र, तथा धर्मपर १० पुस्तकोंका लेखन; प्रबोधन, प्रवचन, व्याखानोंके माध्यमसे; सत्य तथा ज्वलंत इतिहास समझानेके माध्यमसे ज्येष्ठ पत्रकार एवं प्रा. दुर्गेश परुळकर राष्ट्रकार्य कर रहे हैं । अपना हिंदुनिष्ठ मत निर्भयतासे प्रस्तुत करना, उनकी एक विशेषता है । हिंदू जनजागृति समितिकी ओरसे होनेवाले आंदोलनोंमें उनका नित्य सक्रिय सहभाग रहता है । सनातन संस्थाके विविध कार्यक्रमोंमें वक्ताके पदसे उन्होंने कई बार मार्गदर्शन किया है । २०१२ में गोवामें संपन्न हुए अखिल भारतीय हिंदू अधिवेशन हेतु वे उपस्थित थे । हिंदू राष्ट्रके विषयमें उन्होंने अपने विचार दैनिक सनातन प्रभातके संवाददाता श्री. पुष्कर जोशीजीके पास व्यक्त किए । श्री. पुष्करजी द्वारा ली गई उनकी भेंटका भाग २ आज प्रसिद्ध कर रहे हैं । पिछले भागमें वे एक हिंदुत्ववादीके रूपमें कैसे तैयार हुए, विद्यार्थियोंपर हिंदुत्वके संस्कार कैसे करते हैं, हिंदू राष्ट्रवादके विषयमें उनका मत क्या है, आदि भाग देखें ।

 

हिंदुत्ववादी कहलानेवाले हर भोगवादी समाजको भाववादी बनानेका दायित्व !

प्रश्न : वर्तमान समाजकी स्थिति के विषयमें क्या लगता है ?

उत्तर : यदि हम चारों ओर दृष्टी डालें, तो एक बात विशेष रूपसे सामने आती है, कि मनुष्य भोगवादी बन गया है; उसे भोगवादसे मुक्त करके भाववादकी ओर मोडना है । इसका दायित्व स्वयंको हिंदुत्ववादी कहलानेवाले हर व्यक्तिपर है । भौतिकताको स्वीकार करना, भोगवादके नियंत्रणमें जाना नहीं है । भौतिक विकास हेतु भौतिक प्रगति आवश्यक है; किंतु इस विकासमें भी कुछ आशाएं एवं अपेक्षाएं हैं । निसर्गमें जब फूल फलमें रूपांतरित होता है, तब वह विकासका प्रतीक है, यह ध्यानमें रखना चाहिए । भंवरा फूलसे मकरंद चूसता है, किंतु फूलका कोई नुकसान नहीं होता; उलटा फूलका रूपांतर फलमें होता है । उस फलमें बडे वृक्षका बीज छुपा होता है, इस प्रकारका सहयोगात्मक संघर्ष भौतिक विकास हेतु उपयुक्त होता है । अन्यथा दुर्जन एवं मानवमें फर्क नहीं कर सकेंगे ।

 

संगठन तथा एकनिष्ठताकी आवश्यकता !

        हिंदू धर्ममें षडरिपुओंका त्याग करनेको कहा गया है, अर्थात उनपर विजय प्राप्त करनेको कहा गया है । अर्थात किसका कहां उपयोग करना है, यह सिखाया गया है । राष्ट्र एवं धर्मका अवमान होनेपर भी गुस्सा नहीं आता, किंतु आपसके लडाई-झगडे, आरोप-प्रत्यारोप उभरकर सामने आते हैं; उसी प्रकार आसक्ति हो, किंतु उस आसक्तिमें व्यापकता होनी चाहिए । वह राष्ट्र, धर्म, संस्कृति, सदगुण, न्याय एवं नीतिके संदर्भमें होनी चाहिए ।

 

राष्ट्रीय अस्मिताकी समस्याकी ओर स्वार्थी दृष्टीसे देखना आत्मघात !

        खुलके बात की जाए तो, अपना अस्तित्व सुरक्षित करने हेतु दूसरेका अस्तित्व  नष्ट करना, क्या इस वृत्तिको हम बढावा दे सकते हैं ? यदि हम सबको अपने राष्ट्रका विकास करना है, अपना स्वत्व कायम रखना है, तो संघीय भावना तथा राष्ट्रहितका विचार होना आवश्यक है । इस हेतु त्याग महत्त्वपूर्ण है । राष्ट्रको यदि किसी बातकी प्राप्ति  होती है, तो मुझे भी अपने आप हो जाएगी, यह व्यापक दृष्टीकोण होना चाहिए ।

प्रश्न : हिंदुत्ववादी संगठन तथा पक्ष इनके संदर्भमें आपका मत क्या है ?

उत्तर : १. कुछ संगठन इकट्ठे होने लगे हैं, तथा लोगोंके मन एक-दूसरेसे जुड रहे हैं; यह अच्छा संकेत है ।

२. आजकी स्थिति देखें तो दुर्जन झुंडमें रहते हैं । वे एक स्थान तथा एक दूसरेसे एकनिष्ठ होते है; विंâतु सज्जन कहलानेवाले संगठित होकर नहीं रहते हैं। नैतिकताकी गप्पें हांकनेवाले लोग आज एक-दूसरेसे कैसे बर्ताव करते हैं ? क्या इसमें राष्ट्रका हित है, इस बातपर हर एकको ध्यान देना चाहिए !

३. अधिकारकी तीव्र लालसा रखकर यदि हम व्यवहार करने लगे, तो मध्यप्रदेशके भाजपा प्रशासनका भयंकर डरावना रूप ही सामने आता है । क्या श्री. नवलकिशोर शर्मा किसीके शत्रु है ? उन्होंने ऐसा कौनसा अपराध किया था ? भोजराजा महापराक्रमी तथा सरस्वतीदेवीका उपासक इस नाते इतिहासमें प्रसिद्ध हैं । उनके द्वारा बनाए गए सरस्वतीदेवीके मंदिरमें मुसलमानोंको नमाज पठन करनेकी अनुमति देकर हिंदुओंके नैसर्गिक अधिकारको क्यों धुतकारा जाता है ? क्या यह सामाजिक द्वेष उत्पन्र्नण करनेकी साजिश नहीं है ? कुछ साल पहले दिग्विजय  सिंहजीने उनके कार्यकालमें ज्यादती की । भाजपा प्रशासन उसीकी पुनरावृत्ति करे, यह आश्चर्यकी बात है । यदि श्री. शर्माजीने इस हेतु भाजपाका विरोध किया हो, तो क्या वह अपराध हुआ ? फिर हम सारे हिंदू इकट्ठे कैसे आएंगे ? राष्ट्रकी अस्मिताका प्रश्न होकर भी उसकी ओर स्वार्थी दृष्टीसे देखनेकी यह आदत क्या आत्मघातकी नहीं है ? संबंधित व्यक्तियोंको  अंतर्मुख होकर इसका विचार करना चाहिए । `वीज म्हणाली धरतीला,’ इस नाटकमें वि.वा. शिरवाडकरजीने झांसीकी रानी लक्ष्मीबाई तथा जुलेखाके संभाषणमें एक वाक्य अंतर्भूत किया है, वह याद आता है । `पराजय बाहरसे नहीं, अंदरसे आता है । जिस समय स्वकीय ही अपने विरोधमें खडे हो जाते हैं । ’ क्या मध्यप्रदेशके भाजपा प्रशासनका वर्तन तथा यह वाक्य सुसंगत नहीं है ?

 

श्रीराम, श्रीकृष्ण, शिवराय, लोकमान्य तिलक,

सावरकर राष्ट्रके राजकीय पंचायतन करके हिंदुत्ववादियोंने घोषित करने चाहिए !

        असलमें देखा जाए तो श्रीराम, श्रीकृष्ण, शिवराय, लोकमान्य तिलक, सावरकर राष्ट्रके राजकीय पंचायतन करके हिंदुत्ववादियोंने घोषित करने चाहिए । इस पंचायतनको सच्चे मनसे माननेवालोंको निराशासे बोलनेका कोई भी अधिकार नहीं । प्रतिकूल से प्रतिकूल परिस्थितिमें भी, हिम्मतसे कठिनाइयोंका सामना करके निष्ठासे लक्ष्यतक पहुंचना ही, निष्ठा, भक्ति , तथा धर्म है ।

प्रश्न : ईसाई तथा मुसलमानों द्वारा भारतपर किए आक्रमणोंके संदर्भमें बताइए !

उत्तर : आज पूरी दुनियामें आतंकवादी ऊधम मचा रहे हैं । पूरी दुनियाका इस्लामीकरण करना, तालिबानका ध्येय है, तो ईसाई मिशनरी पूरी दुनियाका ईसाईकरण करनेके प्रयासोंमें हैं । १५ वर्षापूर्व पोप हिंदुस्थानमें आए, तब उन्होंने नई देहलीमें कहा था, `चालू सहस्रकमें संपूर्ण भारतीय उपखंड ईसाईमय करनेका हमारा उद्दीष्ट है । यदि हम इन बातोंपर ध्यान दे, तो गंभीर परिस्थितिका आकलन सहज हो सकता है । उसी प्रकार अरुण शौरीके, `क्या दीमक लगे वृक्षको फौलादकी बाड बचा पाएगी ? ’ इस पुस्तकमें कुछ सूत्र पढनेको मिलते हैं । दुनियाके सारे मुसलमानों हेतु जनवरी २००२ में जागतिक तबलिघ जमातने विश्व इस्तेमा नामका एक कार्यक्रम आयोजित किया था । इसमें ६४ देशोंके ४० लाख मुसलमान उस अवसरपर उपस्थित थे । उस कार्यक्रममें लिए गए निर्णय आगे दिए हैं ….

        बांगलादेशके युवकोंको जिहादी शिक्षा देना, इस हेतु तबलिघके माध्यमसे युवकोंको सुदान, पाकिस्तान, आराकान, फिलीपाईन्स इन स्थानोंपर प्रशिक्षण हेतु भेजना, अमरिकापर सीधे आक्रमण करनेसे अन्य दांवपेच लडाकर युद्ध छेडना, दुनियाभरमें ज्यू समाजपर आक्रमण करना, सारे प्रसारमाध्यमोंपर दबाव लाना, मुसलमानोंकी आतंकवादी प्रतिमा न होने देते हुए यह काम करना है, यह उसके पीछेका उद्देश्य हो सकता है । तालिबान तथा अल कायदाका नाम पलटाके उसकी पुनर्रचना करे ।

इससे आगे ईशान्य हिंदुस्थानके संगठनोंका ध्येय विशद किया गया है । वह इस प्रकार –
१. हिंदुस्तानसे असम अलग करना, वहां मुस्लिम राष्ट्र् स्थापित करना ।
२. बांगलादेशसे आए मुसलमानोंके हितकी रक्षा करना ।
३. बांगलादेशीय मुसलमानोंको असममें उनके अधिकारका स्थान दिलाना ।
४. असम स्थित नौगांव, धुबरी, कामरूप, करीमगंज जनपद तथा काचार जनपदका हिलाकांडी क्षेत्र एक करके बांगलादेशीय मुसलमानों हेतु वह स्वतंत्र करना ।
५. मुसलमानेतरोंसे लडाई लडने हेतु तैयार रहना ।
६. हिंदुस्थान प्रशासनसे तथा हिंदू जनताके विरोधमें लडने हेतु मुसलमानोंको संगठित करना तथा इस्लामी राज्यकी स्थापना करना ।
७. हिंदुस्थान प्रशासनसे प्रसंग आनेपर सशस्त्र लडाई करना तथा ईशान्य क्षेत्रपर इस्लामी ध्वज फहराकर इस्लामी राज्य निर्माण करना ।

इसीके साथ कुछ बातें वैध मार्गसे प्राप्त करना निश्चित हुआ । जैसे मतदारसूचीमें बांगलादेशी घुसपैठियोंके नाम प्रविष्ट करना, मुसलमानोंके आरक्षण हेतु लडाई लडना । इस परिस्थितिमें राष्ट्रकी रक्षा हेतु हम हिंदुनिष्ठोंने तथा निधर्मीवादियोंने कैसा बर्ताव करना चाहिए, इसका विचार करें ।

प्रश्न : सनातन संस्था तथा हिंदू जनजागृति समितिका कार्य कैसा लगता है ?

उत्तर : सात्त्विकतासे कार्य करनेवाला; किंतु समय आनेपर कठोर एवं आक्रामक भूमिका अपनानेवाला आजके देशका अग्रसर संगठन; निरपेक्ष भावनासे काम करनेवाली मंडली एक छत्रके नीचे आकर राष्ट्र, धर्म, एवं संस्कृतिकी रक्षा करनेका कार्य कर सकते हैं, यह विश्वास सनातन संस्था द्वारा उत्पन्र्नण किया गया है । वैधानिक पद्धतिसे भी राजकीय, सामाजिक, सांस्कृतिक, तथा धार्मिक समस्याओंका हल ढूंढा जा सकता है । उस हेतु बंदका आवाहन करनेकी आवश्यकता नहीं, हिंसक आंदोलन करनेकी भी आवश्यकता नहीं होती, इसका वस्तुपाठ एक अच्छा आदर्श समाजमें स्थापिर्तण किया तथा अनेक व्यक्तियोंको इस महान कार्यमें सहभागी होने हेतु प्रवृत्त किया ।

 

हिंदू जनजागृति समितिका आदर्श अन्य हिंदुत्ववादी संगठन लें !


सारे हिंदुत्ववादी संगठन, संस्था, पक्ष, एवं व्यक्ति को संगठित करनेका हिंदू जनजागृति समितिका प्रयास निश्चित ही प्रशंसनीय है । हर समय आगे आकर हिंदू समाज तथा राष्ट्रपर होनेवाले अन्यायका पर्दाफाश करने हेतु लोकराज्यके मार्गसे हिंदुओंका दबावगट अस्तित्वमें लानेका यशस्वी प्रयास यह संगठन कर रहा है । उनके कार्यमें अनेक लोगोंको सहभागी कराने हेतु कार्यकर्ता अथक मेहनत करते हैं । वही आदर्श अन्य संगठन भी उतनी ही निष्ठासे आत्मसात करें, तो आनेवाले कालमें हम अपने देशकी संरचना उत्तम प्रकारसे कर सकते हैं तथा आज मनको अस्वस्थ करनेवाली जो घटनाएं घट रही हैं, उनपर संपूर्ण नियंत्रण रख सकते हैं तथा यथावकाश सारी समस्याएं सदाके लिए नष्ट कर सकते हैं ।  इस संगठनके कारण यह विश्वास सहज ही प्रस्थापित हो रहा है ।

 

ग्रंथपठनसे लेकर प्रत्यक्ष आंदोलनमें सहभागी होनेतकका सफर !

        ख्रिस्ताब्द १९९२ में मैं पहली बार सनातन-रचित कुछ ग्रंथ खरीदनेके बहाने संर्पर्कमें आया । अनेक ग्रंथ पढे, बहुत अच्छे होते हैं । आगे ख्रिस्ताब्द २००१ में दैनिक सनातन प्रभातका पाठक बना । पिछले ३-४ वर्षोमें ५० से अधिक हिंदू धर्मजागृति सभा, गुरुपूर्णिमा महोत्सव एवं आंदोलनके माध्यमसे निकटता और बढी ।

प्रश्न : हिंदू राष्ट्रकी स्थापना आवश्यक है, ऐसा क्यों लगता है ?

उत्तर : दुनियाका कोई भी राष्ट्र सेक्युलर (निधर्मीवादी) नहीं । सपनेमें स्थापित; किंतु धरातलपर अस्तित्वमें न उतरनेवाले राष्ट्रकी स्थापण करनेका दुराग्रह पिछले ६५ वर्षोंसे क्यों किया जा रहा है ? यदि इसका उत्तर संबंधित जानकारोंने दिया तो हमारी अज्ञानता दूर होगी ।

        आरंभसे यह देश हिंदुओंका है । इस देशकी परंपरा कितनी पुरानी है, इसका निश्चित कार्यकाल आज भी कोई निश्चित रूपसे नहीं बता सकता । वैदिक परंपरा ही मानव, प्राणी,तथा सृष्टीके हितकी देखभाल करती है । उसीके नामसे यह देश जाना जाता है । सर्व धर्म परिषदमें स्वामी विवेकानंदजीने हिंदू धर्मका तत्त्वज्ञान ही विषद किया तथा पूरी दुनियाकी आंखोंमें अंजन डाल दिया । उन्होंने यह दिग्विजय ब्रिटिश कार्यकालमें संपादन किया, यह ध्यानमें रखकर हमें यह उद्घोषित करना है कि यह हिंदू राष्ट्र है । ऐसा करते हुए अन्य किसीकी भावनाओंको ठेस पहुंचानेका प्रश्न ही नहीं उठता ।

        यदि दूसरे शब्दोंमें कहा जाए, तो सारे मानव एक-दूसरेके बांधव हैं, यह सत्य है, किंतु क्या हम सब एक ही घरमें रहते हैं ? इसपर भी विचार करें । अपना स्वत्व, स्वाभिमान, परंपरा, संस्कार, तत्त्वज्ञान, श्रद्धास्थान तथा इतिहास यदि इन सबको हम नष्ट कर दें, तो अपना अस्तित्व ही मिट जाएगा । हमारी क्या पहचान रहेगी, इसका भी विचार हो । विश्वके अनेक देश, अनेक समाज स्वयंके धर्मका ऊंचे स्वरमें तथा अभिमानसे निर्देश करते हैं । कोई भी उन्हें संकुचित वृत्तिका, जातीवाद संबोधित नहीं करता । तो  हिंदू अपनी पहचान क्यों छुपाएं ? क्या यह मूलभूत प्रश्न नहीं है ?

 

‘हिंदू राष्ट्र' घोषित करना,  हिंदुओंका परम कर्तव्य !


हिंदू राष्ट्रने प्रारंभसे लेकर आजतक किसी भी देशपर कभी भी आक्रमण नहीं किया । दूसरोंके धर्मस्थलोंपर आक्रमण नहीं किया । विश्वके कई तत्त्वचिंतकोंने हिंदू धर्मका तथा हिंदू धर्मके तत्त्वज्ञानका निर्देश किया है । उसी तत्त्वज्ञानको यदि हिंदुओंने स्वीकार किया तथा उस संदर्भमें अभिमान धारण किया, तो उसमें क्या खराबी है ? पूरे विश्वको अपनी सही पहचान कराना, इसमें कौनसा अपराध है ? नकल उतारनेसे, नाटकीयतासे वास्तविकताको स्वीकार करना, क्या सच्चा सुशिक्षित तथा सुसंस्कृत होनेका द्योतक नहीं है ? अत: अपना राष्ट्र हिंदू राष्ट्र घोषित करनेसे कौनसी समस्या उत्पन्र्न हानेवाली है ? उलटा सारे विश्वको अपने देशकी सही पहचान  होगी तथा हम अधिक सामर्थ्यवान बनेंगे । मेरा शरीर सुदृढ रहे, इस हेतु मैं कसरत करता हूं; किंतु यदि मेरा पडोसी कहता है कि तू मुझे मारने हेतु कसरत कर रहा है, तो क्या मैं कसरत करना छोड दूं ? उसी-प्रकार हमारा हिंदू राष्ट्र है, इसका हमें अभिमान होना चाहिए, अपनी परंपराओंके संदर्भमें आस्थाका भान हो, अपने तत्त्वज्ञानसे परिचय हो, जिससे वैचारिक प्रगल्भता, लौकिक, पारलौकिक दृष्टी प्राप्त होकर वैचारिक, मानसिक, आत्मिक, बौद्धिक बल प्राप्त होगा । जिसमें सबका कल्याण है । उस कल्याणको तिलांजली देनेका पातक अपने हाथसे न हो, इस हेतु यह राष्ट्र हिंदू राष्ट्र घोषित करना, परमकर्तव्य है ।

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात 

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