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‘सेक्युलरिज्म’ अर्थात हमारे गलेका फंदा !

ज्येष्ठ शुक्ल ९ , कलियुग वर्ष ५११५

सारिणी



        १० वर्ष बाद भी गुजरात दंगेके नामसे चिल्लानेवाले असम एवं कश्मीरके विषयमें चुप रहते हैं । कश्मीरके हिंदू भारतीय होकर भी अपने ही देशमें शरणार्थीका जीवन व्यतीत कर रहे हैं । अब यही समय असमके लोगोंपर आ रहा है । हिंदुस्थानमें यदि हिंदूको सुरक्षित एवं सुखसे रहना है, तो इस ‘सेक्युलरिज्म’ को तथा स्वयंको ‘सेक्युलर’ पक्ष कहलानेवाले पक्षोंको अर्धचंद्र देकर अरबी सागरमें ओसामा बिन लादेनके समीप डुबो देना चाहिए ।
लेखक : ज्येष्ठ पत्रकार श्री. अरुण रामतीर्थकर, सोलापुर.

 

१. …..तो हिंदू धर्म नामशेष होगा !

        ६५ वर्ष पूर्व अंग्रेजोंने हमें स्वतंत्रता प्रदान की । हमने १४ अगस्तका दिन स्वतंत्रता प्राप्ति हेतु निश्चित किया । अभी अस्तित्वमें न आए पाकिस्तानने भी १४ अगस्तपर दबाव दिया । हमने पाकिस्तानके आगे पहली शरणागति स्वीकार की । हमने १५ अगस्तका दिन चुना । समय मध्य रात्रिका भूत-प्रेत योनिके विचरणका । किसी भी शुभ कार्य हेतु वज्र्य समय ही निश्चित किया । ‘सेंट्रल हॉल’ में सत्ता हेतु ललचाए नेहरू सत्ताग्रहण कर रहे थे; उसी समय लाखों हिंदू मारे जा रहे थे । अनगिनत हिंदू स्त्रियोंका शील लूटा गया । अशुभ काल, अशुभ संकेत पाकर स्वतंत्रता प्राप्त हुई । ९० प्रतिशत हिंदू रहनेवाले देशका नाम ‘हिंदुस्थान’, राष्ट्रध्वज भगवा, राष्ट्रगीत ‘वन्दे मातरम ’ ऐसा होना चाहिए था । एकदम धर्माधिष्ठित राष्ट्र नहीं; किंतु न्यूनतम इतना सब होना आवश्यक था । यह तो हुआ ही नहीं, उलटा हिंदुओंको ‘सेक्युलरिज्म’ नामके विषैले पाशमें लपेटा गया । अब इसी पाशसे, जिह्वा बाहर आनेतक, हिंदुओंका गला  कसा जा रहा है । हर जन्महिंदू यदि ‘कट्टर हिंदू’ नहीं हुआ, तो हिंदुस्थानसे हिंदू धर्म नामशेष होगा ।

२. श्रावण मासमें ईसाईयों द्वारा हिंदुओंके श्रद्धास्थानेंकी  विडंबना !


मैं बातको बढा-चढाकर नहीं लिख रहा हूं अथवा यह प्रक्षुब्ध  लिखाई भी नहीं है । यह वस्तुस्थिति है । साथका चित्र देखिए । अभी सावन मास चल रहा है । भगवान शंकर तथा पिंडीकी विशेष पूजा इसी माहमें होती है । लक्ष्मण जॉन्सन, ऐसे ‘हाइब्रीड’ नामके एक ईसाई युवकने सावन मासके मुहूरतपर स्वयंका एक छायाचित्र ‘फेसबुक’ पर डाल दिया । मैं अधिक विस्तारसे वर्णन नहीं करूंगा । हिंदुओंकी श्रद्धाओंके विषयमें कितने निचले स्तरपर जाकर कृत्य हो रहे हैं, देखें । यह जॉन्सन मुंबईमें रेलवेमें चाकरी करता है । ९७६९२२७५३१ उसका भ्रमणभाष क्रमांक है, जो उसने ही ‘फेसबुक’ पर दिया था । अनेक लोगोंद्वारा (उसको) उसकी मां, बहनके लिए अपशब्द कहनेपर उसने उसे बंद कर रखा है । उसकी चाकरीका स्थान, भ्रमणभाष क्रमांक हाथमें आनेपर भी उसे हथकडी नहीं लगी । इसका एक ही अर्थ है । हिंदुओंको लात लगती है; किंतु हिंदुओंकी लात प्रक्षोभक होकर अपराध बन जाती है । ऐसा है यह ‘सेक्युलरिज्म ।’

 

३. हिंदुओंका निद्रिस्त होना घातक !


        जॉन्सनके वीभत्स (अभद्र) कृत्यसे एक बात सामने आई । हिंदू पहले जितना अर्थात नेहरू, गांधीके जमाने जितना निद्रिस्त नहीं रहे । वे सतर्क एवं सजग होने लगे हैं । ‘फेसबुक’पर जॉन्सन पर जोरदार प्रतिक्रियाओंकी बौछार हुई । उनमेंसे कुछ गिनी-चुनी प्रतिक्रियाओंपर आप भी एक दृष्टि डालें । 'दूसरे धर्मके देवताओंकी विडंबना करनेवालोंको पाठ पढाएं ।’ 'जो दूसरे धर्मका आदर नहीं करते ऐसे लोगोंको पीटें ।’ `येशुके इस भक्तको अच्छा पाठ पढाएं ।’ `इसके पैर काट डालें, जहां मिले वहीं काट डालें !’ ‘अब भारतीय प्रसारमाध्यम कहां है ? क्या वे सो रहे हैं ?’ ‘ऐसे समाजघाती कृत्य क्या प्रसारमाध्यमोंको दिखते नहीं ?’ `धर्मांध अथवा ईसाईयोंके संदर्भमें यदि ऐसा होता, तो ये ही माध्यम आसमान सिरपर उठा लेते ।’ ‘उसके घरके तथा धर्मके संस्कार ऐसे ही हैं । वह ऐसे ही धंधे करेगा ।’ `इतनी संतापजनक घटना घटित होनेपर भी हिंदू अभी सोए हैं तथा सदैव सोए ही रहेंगे ।’ यदि ऐसा ही होता रहा, तो एक दिन अपनेपर कठिन काल आनेवाला है, हिंदू इसे ध्यानमें रखें !

 

४. सुप्रसिद्धि हेतु कुप्रसिद्धिका भी लाभ उठाना !

        ‘जॉन्सनको नग्न कर भरे बजारमें कोडे लगाएं । चूक उसकी नहीं, हमारी है; क्योंकि मंदिरमें यदि सुरक्षा नामकी कोई चीज होती, तो यह स्थिति नहीं आती’, `इसे ‘फेसबुक’ पर प्रतिक्रिया देकर आप लोग बिनाकारण प्रसिद्धि दे रहे हो, ऐसे नीच कृत्य करनेवालेको अनुल्लेख द्वारा मारना चाहिए । इस प्रकार प्रसिद्धि देनेसे ऐसे लोग कुप्रसिद्धिका भी सुप्रसिद्धि जैसा लाभ उठाते हैं ।’ `ऐसे मूर्ख नराधमके कृत्यसे देवाधिदेव महादेव छोटे नहीं होते । शिव भगवान यह कृत्य देख रहे हैं । इस करनीका फल भगवान उसे अवश्य देंगे !’ ये तथा इससे भी प्रक्षोभक प्रतिक्रियाएं लोगोंने ‘फेसबुक’ पर दी हैं । हिंदुओंको भी क्रोध आता है यह शुभसूचक है ।

 

५. हिंदुओंके मंदिरमें घुसकर ‘अल्ला हो अकबर’ की बांग !

        ‘सेक्युलरिज्म’ के नामपर हम हिंदुओंको क्या-क्या सहना है ? इसी सावन मासमें तुळजापुरमें एक धर्मांध युवक तुळजाभवानीके मंदिरमें घुसा । सैकडों देवी भक्तके इधर-उधर होते हुए उसने नमाज पढकर ‘अल्ला हो अकबर’की घोषणा की । इसपर देवीभक्तोंकी प्रतिक्रिया क्या हुई, उसे पकडकर पुलिसमें दिया । जरा सोचो ! किसी प्रसिद्ध मस्जिदमें जाकर कोई हिंदू युवक ‘दुर्गे दुर्घट भारी’ आरती चालू करता, तो वह कितने मिनट जिंदा रहता । इस धर्मांध युवक तथा जॉन्सन, इन ईसाई युवकोंकी यह हिमत कैसे हुई ? मस्जिदके मार्गसे सवाद्य जुलूस निकालनेकी मनाही; किंतु मंदिरमें घुसकर ‘अल्ला हो अकबर’ की घोषणा देनेको ही ‘सेक्युलरिज्म’ कहते हैं ।

६. ‘सेक्युलरिज्म’समवेत गांधी तत्त्वज्ञानसे विदा लें !

        इस विषकी यह गोली प्रतापगढकी है । वहां अफजलखानकी कबर असलमें अवैधानिक है । पुरातत्त्व विभाग एवं प्रशासन चुप है । उच्च न्यायालयमें बहुत टालमटोल की, किंतु उसके पश्चात ‘निर्माणकार्य गिराओ’, ऐसा निर्णय हुआ । महाराष्ट्र शासन सर्वोच्च न्यायालय पहुंचा । जूनमें सर्वोच्च न्यायालयका परिणाम निकला । अवैधानिक निर्माण है, पूरा गिराओ । एक माह हो गया । प्रशासन चुप है । गांधी-नेहरूके वारिस प्राचीन रामसेतु उद्ध्वस्त करने हेतु उतावले हो रहे हैं तथा अफजलखानकी अवैधानिक कबर ना गिराई जाए, इस हेतु जान दांवपर लगा रहे हैं ‘सेक्युलरिज्म’ गटरमें फेकना है, वह इसी हेतु । ‘फेकना है’ कहनेसे ‘सेक्युलरिज्म’ गटरमें थोडे ही जानेवाला है । उस हेतु हर हिंदूके मनमें तथा भुजाओंमें बल जागृत होना चाहिए । अभी वह नहीं है इसलिए बरेली जैसी घटना घटती है । अभी सावन मास होनेके कारण गंगाजल लेकर ‘जय गंगामइया’ के जयघोषमें कांवर लेकर गुटमें जो लोग जाते हैं, उन्हें ‘कांवरिया’ कहते हैं । २५०-३०० कांवरियोंके २२ जुलाईको बरेली जिलेके शहाबाद आनेपर धर्मांधोंने उनपर आक्रमण किया । उनमें एक कांवरियाकी मौत हो गई । २५० घायल हुए । २५०-३०० की संख्यामें होते हुए कांवरिया ही क्यों घायल हुए ? उनके द्वारा प्रतिकार क्यों नहीं हुआ । ‘एक गालपर थप्पड पडनेपर दूसरा गाल आगे करो,’ यह मोहनदास गांधीकी शिक्षा थी । ‘सेक्युलरिज्म’ समेत ऐसे गांधी तत्त्वज्ञानको भी सदाके लिए विदा (goodbye) करना जाहिए । इन दो बातोंसे हम बहुसंख्य होकर भी पीडित हैं । ‘सेक्युलरिज्म’ का धोखा देनेवाली यह एक गंभीर घटना है । बांगलादेशसे असममें बडे पैमानेपर घुसपैठ हो रही है । उसे रोकनेकी अपेक्षा केंद्रशासन उसे प्रोत्साहन दे रहा था; क्योंकि उससे उनकी ‘वोटबैंक’ मजबूत हो रही थी । असमकी २७ विधानसभा मतदातासंघोंमें अब बांगलादेशी धर्मांध घुसपैठियोंका बहुमत हुआ है । इन घुसपैठियोंको बीपीएल कार्ड, शिधापत्रिका, मतदातासूचीमें नाम, ऐसा तुरंत मिलता है । इन घुसपैठियोंने पिछले विधानसभा चुनावके समय स्वतंत्र पक्षकी स्थापना कर २७ सीटें प्राप्त कीं । घुसपैठ हेतु कांग्रेसने सहायता की थी, इस उपकारके कारण उन्होंने कांग्रेसका समर्थन किया, अत: तरुण गोगाई पुन: मुख्यमंत्री बने । प्रशासन नियंत्रणमें आनेपर इन सीनाजोर घुसपैठियोंने स्थानीय लोगोंको निष्काषित करना प्रारंभ किया है । कश्मीर घाटीमें अब एक भी हिंदू शेष नहीं रहा, असममें ऐसी ही परिस्थिति  लानेका यह एक षड्यंत्र है । २३ जुलाईको घुसपैठिये धर्मांध एवं स्थानीय लोगोंमें संघर्ष चालू हुआ । एक दिनमें यह दंगा ५०० गावोंमें फैल गया । देखते ही गोली मारनेके आदेश देकर इन ५०० गावोंमें संचारबंदी लगा दी गई है । ५० की मौत, सैकडों घायल, अनेक घर, दुकान भस्मसात, अनेक वाहन जलाए गए , तीन दिनोंके दंगेका ऐसा स्वरूप है । १० वर्ष बाद भी गुजरात दंगेके नामसे चिल्लानेवाले असम एवं कश्मीरके विषयमें चुप बैठे हैं । कश्मीरके हिंदू भारतीय होकर भी अपने ही देशमें शरणार्थीका जीवन जी रहे हैं । अब यही काल असमके लोगोंपर आ रहा है । हिंदुस्थानमें यदि हिंदूको सुरक्षित तथा सुखचैनसे रहना है, तो इस ‘सेक्युलरिज्म’ को तथा स्वयंको ‘सेक्युलर पक्ष’ कहलवानेवाले पक्षोंको अर्धचंद्र देकर अरबी समुद्रमें ओसामा बिन लादेनके निकट डुबो देना चाहिए ।

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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