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पवित्र स्वतंत्रतावीर सावरकर एवं पातकी कांग्रेस

स्वातंत्र्यवीर सावरकर

स्वातंत्र्यवीर सावरकर

कांग्रेसके तत्कालीन केंद्रीय मंत्री मणिशंकर अय्यरने अंदमानमें स्वातंत्र्यवीर सावरकरद्वारा रचित काव्यपंक्तियां स्मारकसे हटाई, जब कि लंदनके ‘इंडिया हाऊस’ में ब्रिटेनके सांसद लॉर्ड फेनर ब्रॉकवेने स्वातंत्र्यवीर सावरकरके स्मारकका अनावरण किया । स्वातंत्र्यवीर सावरकरका- जिन्होंने ब्रिटिशोंके विरोधमें क्रांतिकार्य किया- ब्रिटिश सरकारने सम्मान किया, जब कि जिस देशके लिए सावरकरने क्रांतिकार्य किया, उसी देशकी सरकारने उनका द्वेष किया । विश्वमें यह एकमेव उदाहरण है ।


सावरकरद्रोही मणिशंकर अय्यर

        स्वातंत्र्यवीर सावरकर जब अंदमानके कारागृहमें थे, उस समय उन्होंने दीवारको खोदकरी निम्नलिखित काव्य पंक्तियां लिखी थीं ।
कि घेतले व्रत न हे अम्हि अंधतेने ।
लब्ध प्रकाश इतिहास निसर्गकाने ।।
जे दिव्य दाहक म्हणुनी असावयाचे ।
बुध्याची वाण धरिले करी हे सतीचे ।।

इसका अर्थ यह कि हमने देशकी आजादीके लिए जो  व्रत लिया है, वह अज्ञानके कारण नहीं, अपितु समझबूझकर एवं ज्ञानपूर्वक लिया है । यह व्रत कठिन है, इसलिए सावरकरने उसे सतीका वाण कहा है ।

        इन पंक्तियोंसे सावरकरजीमें विद्यमान उत्कट राष्ट्रभक्तिके दर्शन होते हैं; परंतु ये काव्य पंक्तियां कांग्रेसके तत्कालीन केंद्रीयमंत्री मणिशंकर अय्यरको सहन नहीं हुई । तीव्र राष्ट्रभक्तकी तेजस्वी एवं ओजस्वी भावनाएं मणिशंकर अय्यरकी मदांध बुद्धि एवं विकृत मानसिकताको अच्छी नहीं लगी । उन्होंने अपने पातकी हाथोंसे उन पंक्तियोंको कुरेदकर हटा दिया ।

लंदनके ‘इंडिया हाऊस’ में सावरकरके

स्मारकके लिए प्रयास करनेवाले मुकुंद सोनपाटकी


     विश्वविख्यात वीर सावरकरके स्मारकका निर्माण करनेका श्रेय लंदनमें रहनेवाले मुकुंद सोनपाटकीको देना होगा । वीर सावरकरका वर्ष १९०६ से १९१० की कालावधिमें भारत भवनमें (‘इंडिया हाऊस’) निवास था । उस स्थानपर लेखशिला स्थापित करने हेतु मुकुंद सोनपाटकीने ग्रेटर लंदन कौन्सिलसे पत्रव्यवहार किया । वहांके अधिकारियोंसे भेंट की ।  लेखशिलाके लिए १ सहस्र २०० पौंडकी राशि लगती है । यह व्यय कौंसिल ही करती है । इसके लिए केवल एक ही शर्त है कि जिसका स्मारक खडा करना है, उस व्यक्तिके जन्मको पूरे १०० वर्ष पूर्ण होने चाहिए अथवा उसका निधन हुए २० वर्ष बीत चुके हों । वर्ष १९८३ में वीर सावरकरकी जन्मशताब्दी वर्षके अवसरका लाभ लेकर मुकुंद सोनपाटकीने यह कार्य करनेका निर्णय लिया ।

क्रांतिकारियोंके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करनेवाले सुनील गावस्कर

      १. मुकुंद सोनपाटकीने वहांके अधिकारी वर्गको वीर सावरकरके कार्यका परिचय करा दिया एवं महत्व बताया । वीर सावरकर ब्रिटिशोंकी दृष्टिमें उनके शत्रु थे; इसके पश्चात भी मुकुंद सोनपाटकीकी न्याय मांग दो ब्रिटिश अधिकारी एवं सांसद लॉर्ड प्रेनर ब्रॉकवे एवं सॉरेंसनने स्वीकार की । मजूर पक्षके ये सांसद ब्रिटेनके संसदमें हिंदुस्थानकी स्वतंत्रताका समर्थन करते थे । वीर सावरकरके कार्यका महत्व जानकर प्रेनर ब्रॉकवेने ८ जून १९८५ को आयुके ८४ वें वर्ष ‘इंडिया हाऊस’ वास्तुपर बनाए गए स्वतंत्रता वीर सावरकरकी स्मृतिशिलाका अनावरण किया । इस समारोहके लिए हिंदुस्थानके विख्यात क्रिकेट `स्टार’  सुनील गावस्कर मुख्य अतिथिके रूपमें उपस्थित थे । इस अवसरपर बोलते हुए सुनील गावस्करने कहा, ‘हमने स्वतंत्र भारतमें जन्म लिया, परंतु यह लेखशिला हमें भारतकी स्वतंत्रता प्राप्त करनेके लिए लडनेवाले सावरकर एवं अन्य क्रांतिकारियोंका स्मरण करवाती रहेगी ।’

सावरकरकी देशभक्तिको वंदन करनेवाले ब्रिटेनके सांसद

      लॉर्ड प्रेनर ब्रॉकवेने अपने छोटेसे भाषणमें सावरकरके कार्यका गौरव किया एवं उनकी उत्कट राष्ट्रनिष्ठाके विषयमें ऐसे उद्गार कहे जिससे उनके शत्रुको भी कभी संदेह नहीं होगा । ब्रिटिशोंने सावरकरपर अन्याय किया । उन्हें अत्यंत कष्ट दिए, अमानवीय छल किया, परंतु उन्हें सावरकरकी राष्ट्रभक्तिपर कभी संदेह नहीं हुआ । ऐसा अव्यभिचारी राष्ट्रनिष्ठा रखनेवाला देशभक्त अपने नगरमें रहता था, शिलापर ऐसा अंकित कर वह शिला उन्होंने सम्मानपूर्वक भारत भवन वास्तुपर बिठाई । उस गोलाकार शिलापर खोदे हुए अक्षर नीचे दिए हैं –


(ग्रेटर लंडन कौंसिल विनायक दामोदर सावरकर, १८८३-१९६६ भारतीय देशभक्त एवं तत्वज्ञ/दार्शनिक यहां रहते थे ।)

        शत्रुद्वारा सम्मानपूर्वक लेखशिला बनवाकर लेनेवाले श्री. मुकुंद सोनापाटकी प्रातःस्मरणीय हैं, जब कि मणिशंकर अय्यर तुच्छताके मानकरी/उदाहरण हैं ।

देशभक्त सावरकरकी अंग्रेजोंद्वारा जप्त संपत्ति
न लौटानेवाली देशद्रोही कांग्रेस सरकार

        देश स्वतंत्र होनेके पश्चात वर्ष १९१० में ब्रिटिशोंद्वारा सावरकरजीकी जप्त की गई संपत्ति भारत सरकारद्वारा नहीं लौटाई गई ।  न्यायालयद्वारा जप्त की गई संपत्ति लौटानेमें स्वतंत्र भारतकी सरकारने असमर्थता दर्शाई । देखें, क्या उपहास है, विदेशी सत्ताधारियोंने देशभक्तकी संपत्ति जप्त की । स्वदेशकी सरकार बनी । विदेशी सत्ता समाप्त हुई । परंतु अपने देशभक्त क्रांतिकारियोंकी संपत्ति वापस लानेकी साधारण सभ्यता भी नेहरू सरकारने नहीं दिखाई । परंतु देशभक्त नागरिकोंने सावरकरजीको न्याय दिला दिया । भगूरमें (नाशिक) सावरकरजीका घर आज राष्ट्रीय स्मारक बन गया है ।

सावरकरजीका महत्व जाननेवाले महाराष्ट्रके भूतपूर्व मुख्यमंत्री

        महाराष्ट्रके भूतपूर्व मुख्यमंत्री बाबासाहेब भोसलेने सावरकरजीके शताब्दी महोत्सवके समय मुंबईमें कहा, ‘देशने सावरकरजीकी नहीं सुनी, इसलिए देशकी अत्यधिक हानि हुई । सावरकरजीने अपने लेखद्वारा जाति-भेदपर तीव्र आक्रमण किया एवं विज्ञाननिष्ठा दिखाई,  उनका यह ऋण हमपर अत्यंत भारी मात्रामें है ।

सावरकरद्रोहियोंको समय ही शिक्षा देगा

     मणिशंकर अय्यरको इस बातका महत्व नहीं स्वीकार होगा । कांग्रेसके लिए भी यह स्वीकारना संभव नहीं है । क्योंकि उनमें वीर सावरकर समान अव्यभिचारी तीव्र राष्ट्रनिष्ठा नहीं है । स्वार्थकी लालसा रखनेवाले सत्तांधोंको प्रखर राष्ट्रनिष्ठा नहीं स्वीकार होती । इसीलिए वीर सावरकरके वचनोंको कुरेदनेके लिए उनके हाथ सलसल (हाथोंमें गुदगुदी होती रहती है) करते हैं । ऐसे लोगोंको आनेवाला समय ही शिक्षा देगा । संबंधित व्यक्तियोंको ध्यानमें रखना चाहिए कि जनता अब भी वीर सावरकरजीको ही अपना राष्ट्रनेता मानती है ।

संदर्भ : दैनिक तरुण भारत, बेलगांव आवृत्ति १५.४.२०१२

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