ज्येष्ठ शुक्ल १० , कलियुग वर्ष ५११५
हिंदुओ, अशास्त्रीय श्रीगणेशमूर्तिका वैध मार्गसे विरोध करें !
कोल्हापुर – गणेशोत्सवकी पाश्र्वभूमिपर गणेशमूर्ति सिद्ध करनेवाले कुम्हारोंको शाडू उपलब्ध नहीं होता । अत: ‘प्लास्टर ऑफ पेरिस’ की मूर्तियां सिद्ध होनेका प्रमाण बढ गया है । उस से पर्यावरण रक्षा हेतु निश्चित रूपसे क्या किया जा सकता है, इसके विषयमें समाचारपत्र समूहकी ओरसे सिटीजन एडीटरके माध्यमसे ६ जून को इस क्षेत्रसे संबंधित व्यक्तियोंकी चर्चा आयोजित की गई थी । इसमें भाजपाके विधायक सर्वश्री चंद्रकांतदादा पाटिल, महाराष्ट्र वनीकरण महामंडलके संचालक माणिक पाटिल-चुयेकर, कुंभार समाजके राज्य उपाध्यक्ष मारुतराव कातवरे, प्रदूषण नियंत्रण महामंडलके प्रादेशिक व्यवस्थापक एस.एस. डोके तथा विज्ञान प्रबोधिनीके उदय गायकवाड आदि उपस्थित थे । यदि गणेशमूर्ति सिद्ध करनेमें शाडू उपलब्ध नहीं होता, तो कागदकी लुगदीसे गणेशमूर्ति सिद्ध करें, चर्चामें इस सूत्रपर बल दिया गया । ( इससे हिंदुओंका धर्मशास्त्राविषयक अज्ञान ही स्पष्ट होता है । शाडूमिट्टीकी मूर्ति पर्यावरणपूरक है तथा धर्मशास्त्रानुसार मूर्ति बहते पानीमें विसर्जन करनेपर ही लाभ होता है । ऐसा होते हुए केवल सस्ती लोकप्रियता हेतु इस प्रकारकी मांग करना अनुचित है ! – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात )
चर्चासत्रके सूत्र
१. कोल्हापुरमें कागदकी लुगदीसे बनी श्रीगणेशमूर्तिकी अच्छी मांग हैं। अत: इस पर्यायको स्वीकार करें ।
२. कागजकी लुगदीकी मूर्तिका व्यय अल्प होने हेतु, श्रद्धालुओंको ये मूर्तियां अल्प मूल्यमें उपलब्ध कराई जाएंगी । ( पर्यावरणका यदि इतना ही प्रेम है, तो प्लास्टर ऑफ पेरिसकी अपेक्षा शाडूमिट्टीकी मूर्तिका आग्रह करें । कागदकी लुगदीसे बनी मूर्ति विसर्जनके पश्चात वह कागज जलाशयकी मछलियोंके कांटेमें फंसकर मछलियोंकी मृत्यु होनेकी घटना घटी है । ऐसी स्थितिमें ऊपर दी गई मांग करनेवालोंका अभ्यास कितना अल्प है, यह दर्शाता है ! – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात )
३. गणेशमूर्ति हेतु नैसर्गिक रंग प्रदूषण नियंत्रण मंडल उपलब्ध कराए । विर्सजन हेतु पर्यायी कुंड सिद्ध करें, ऐसा भी इस अवसरपर बताया गया ।
४. श्री. माणिकराव पाटिलने कहा कि कुम्हारोंको वन विभागसे शाडू उपलब्ध किया जाए, इस हेतु वनमंत्री डॉ. पतंगराव कदमके साथ चर्चा कर शीघ्र ही संबंधित विभागके अधिकारी तथा कुम्हार समाजके प्रतिनिधियोंकी बैठक आयोजित करनेका प्रयास किया जाएगा । ( कुम्हारोंको शाडू उपलब्ध कराने हेतु प्रयास करनेवाले श्री. माणिकराव पाटिलका अभिनंदन ! – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात )
५. एस. एस.डोकेने कहा, मूर्तिविसर्जन हेतु स्वतंत्र कुंड अथवा कृत्रिम तालाब बनाना आवश्यक है ।
इस हेतु प्रदूषण नियंत्रण मंडल भी सहभागी होनेवाला है । चाहे वह प्लास्टर ऑफ पेरिसकी मूर्ति हो या शाडूकी, यदि उनका कृत्रिम तालाबमें विसर्जन हुआ तो उनका प्रयोग पुन: किया जा सकता है । ( श्रीगणेशमूर्तिका विसर्जन नदीके बहते पानीमें करनेसे मूर्तिकी सात्विकता दूर-दूरतक फै लती है । इसका लाभ सबको होता है । अत: कृत्रिम कुंड सिद्ध कर उसमें श्रीगणेशमूर्तिका विसर्जन करना अशास्त्रीय है एवं श्रीगणेशमूर्तिके रंगोंसे होनेवाला प्रदूषण वर्षभरमें कारखानोंद्वारा नदीमें छोडे जानेवाले विषैले रसायनोंकी तुलनामें ०.२ प्रतिशतके इतना ही है । ऐसी स्थितिमें एस. .एस. डोके जै लोगोंने प्रदूषण फैलानेवाले कारखानोंके विरोधमें कितनी बार आंदोलन किए, एक बार घोषित करें ! हिंदुओ, केवल त्योहारोंपर पर्यावरणप्रेम दर्शानेवाले ऐसे पर्यावरणवादियोंको फटकारें ! – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात )
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात