ज्येष्ठ पूर्णिमा, कलियुग वर्ष ५११५
वास्को, गोवामें आर्ट ऑफ लिविंगद्वारा आनंदोत्सव संपन्न
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पणजी, गोवा – यहांके जुवारीनगर, वास्कोके बिट्स पिलानी शिक्षा संकुलके सभागृहमें आनंदोत्सव २०१३ महासत्संग कार्यक्रम संपन्न हुआ । इस कार्यक्रममें आर्ट ऑफ लिविंगके श्री श्री रविशंकरजीने प्रतिपादित किया कि प्राचीन समयमें भारत गणितमें सर्वोच्च स्थानपर था । उस समय भारतीय खगोलशास्त्र, ज्योतिषशास्त्र विकसित हुआ था । शून्यका शोधन भारतीयोंने ही किया । यहांसे ये शास्त्र इजीप्तके मार्ग होकर पश्चिमी देशोंमें पहुंचे । भारतीयोंद्वारा विकसित सूत्रोंका उपयोग कर अंग्रेजी कालगणना बनाई गई है । परंतु यह सत्य आज नहीं स्वीकारा जाता । श्री श्री रविशंकरजीकी उपस्थिति, ध्यान, भजन तथा प्रत्यक्ष वाणीसे आशीर्वचन एवं प्रश्नोत्तरद्वारा उपस्थित व्यक्तियोंको आनंदकी झलक दिखानेवाले सत्संगका लाभ हुआ । इस अवसरपर राज्यपाल भारतवीर वांच्छू, बिट्स पिलानी गोवा संकुलके संचालक के.ई. रामन मंचपर उपस्थित थे । इस कार्यक्रममें सहस्रों भक्त उपस्थित थे ।
श्री श्री रविशंकरने आगे कहा कि आकाश अर्थात अंबर, इस संस्कृत शब्दसे अंग्रेजी माहके नाम बने हैं । उदा. दिसंबर, सितंबर, नवंबर आदि । अंग्रेजी माहके इन नामोंका अंग्रेजी भाषामें अन्य कोई अर्थ नहीं है ।
नववर्षारंभ गुढीपाडवेको करना खगोलशास्त्रकी दृष्टिसे योग्य !
संस्कृत नववर्षका प्रारंभ गुढीपाडवेको होता है । खगोलशास्त्रके अनुसार गुढीपाडवेके ही दिन नववर्ष प्रारंभ अत्यंत उचित है । गुढीपाडवा मार्च-अप्रैल माहकी कालावधिमें आता है । वास्तवमें प्राचीन समयमें अंग्रेजी पंचांग (दिनदर्शिका) में भी मार्च माहसे नववर्ष आरंभ होता था । मार्च शब्दका अर्थ है प्रारंभ । लगभग ५०० वर्षपूर्व जॉर्ज नामक राजाने जनवरी माहके आरंभसे दिनदर्शिका आरंभ करनेके आदेश दिए । तब भी कुछ लोग मार्च माहके अंतमें नववर्षका आरंभ करते थे । इसलिए इन लोगोंको अभाव दिखाने हेतु `१ अप्रैल’ यह दिन पागलोंके दिनके रूपमें संपन्न किया जाने लगा । अब भी इरान तथा टर्की देशोंमें नववर्षका आरंभ मार्च माहमें होता है । चीनी नववर्षका आरंभ फरवरी माहके अंतमें होता है ।
ज्योतिष एक शास्त्र है !
ज्योतिष एक सिद्ध शास्त्र है । इस शास्रको जानेनेवाले अब न्यून हो गए हैं । ज्योतिषशास्त्र आपको मार्गदर्शन करता है । आपको योग्य निर्णय लेने हेतु सहायता करता है, परंतु आपको अपना निर्णय लेनेका अधिकार भी देता है । प्रारब्धपर स्वकर्तृत्वसे (नामस्मरणसे) मात करना संभव है । ९ ग्रह एवं १२ तारकापुंजकी विविध संभावनाओंसे (पम्र्युटेशन एंड कौम्बिनेशन) बननेवाले स्थानोंकी संख्या १०८ बनती है । इसलिए १०८ स्थानोंकी शुद्धि करने हेतु जपमालामें १०८ मणि होते हैं ।
अध्यात्मविद्या सबसे बडी उपलब्धि
मनुष्यको आनंदप्राप्ति करा देनेवाली अध्यात्मविद्या सबसे बडी उपलब्धि है । इस विद्याका ज्ञान जिसके पास नहीं है, वह भिखारी है । आनंदप्राप्तिके लिए आयोजित सत्संगमें औपचारिकता, कृत्रिमता रखी गई, तो आनंदप्राप्ति नहीं होती । आनंदप्राप्तिके लिए सबके साथ आत्मिक स्तरपर व्यवहार करना चाहिए । यदि जीवनमें ध्येयकी निश्चिति नहीं हो एवं समस्याएं हों, तो जीवन नीरस बनता है । अनावश्यक क्रोध करनेपर मनुष्यको नियंत्रण रखना चाहिए । यदि हम अंतर्मुख रहे, तो प्रकृति अपनेआप सहायक होती है । अयोग्य मार्गसे धनार्जनकरनेवाले धनवान लोगोंका बादमें पतन अटल है ।
श्रोताओंमें भाजपाके उत्तर गोवाके संसद सदस्य श्रीपाद नाईक, प्रवक्ता डॉ. विल्फ्रेड मिस्किता, गोविंद पर्वतकर आदि उपस्थित थे ।
स्वार्थी एवं संकीर्ण मानसिकताके कारण राजनीतिज्ञ लोगोंकी दृष्टिमें गिर गए हैं ।
राजनीतिक नेताओंको देशहितको प्रथम प्राधान्य देकर कार्य करना चाहिए । परंतु वर्तमान समयके राजनीतिज्ञ प्रथम स्वहित, पक्षहित तथा पश्चात राष्ट्रहित इसप्रकार अयोग्य क्रमसे कार्य कर रहे हैं । एक पक्ष सत्तामें आनेपर पिछले पक्षोंद्वारा बनाई गई नीतियां निरस्त कर अपनी नई नीतियां बनाता । अतः देश आगे जानेके स्थानपर ४ कदम पीछे जा रहा है । इसलिए राजनीतिज्ञोंने अपना सम्मान खो दिया है । लोग राजनीतिज्ञोंका सम्मान नहीं करते । राजनीतिज्ञोंको लोगोंके समक्ष आदर्शका उदाहरण रखना चाहिए । स्वहित तथा पक्षहित अलग रखकर देशके लिए कार्य करना चाहिए । भारतकी तुलनामें चीन तीव्र गतिसे प्रगति कर रहा है, भारतकी स्थिति इसके विपरीत है । भारतको अत्याचार, अनाचार तथा दुराचारसे मुक्त करने हेतु समदर्शी, दूरदर्शी तथा पारदर्शी एवं प्रियदर्शी नेतृत्वकी आवश्यकता है । युवकोंको भारतके निर्माण कार्यमें भाग लेना चाहिए । नशा, मद्य आदि व्यसनोंसे दूर रहना चाहिए । अश्लील चित्रपट (पोर्नोग्राफी) देखनेके व्यसनसे युवक बलात्कारी बन रहे हैं । जिज्ञासाकी आडमें ऐसी बातोंका सेवन कदापि न करें । इन बातोंसे आप कब व्यसनाधीन होंगे, आपको भी पता नहीं लगेगा ।
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात