आषाढ कृष्ण २, कलियुग वर्ष ५११५
मद्रास उच्च न्यायालयके निर्णयकी प्रतिध्वनि विधि शाखामें ही तीव्र रूपसे गूंज उठी !
मुंबई – तामिलनाडूके मद्रास उच्च न्यायालयके न्यायमूर्ति सी.एस. कर्ननने हाल ही में दिए परिणाममें कहा है, ’यदि स्त्री-पुरुष एकत्र रहकर एक दूसरेकी सहमतिसे शरीरसंबंध रखते हैं, तो उन्हें पति-पत्नीके रूपमें मान्यता देनी चाहिए ।’ विधिक्षेत्रमें इस निर्णयके विषयमें तीव्र प्रतिक्रियाएं उभरी हैं । मुंबई उच्च न्यायालयके निवृत्त न्यायमूर्तिने सनातन प्रभातके प्रतिनिधिसे बोलते समय प्रतिक्रिया व्यक्त की है कि इस निर्णयसे विवाहके लिए शरीरसंबंध ही एकमात्र कसौटी सिद्ध होगी एवं विवाहकी पवित्रता नष्ट होगी ।
मुंबई उच्च न्यायालयके निवृत्त न्यायमूर्ति विश्वनाथ पलशीकर ने कहा कि इस निर्णयसे हिंदू विवाह अधिनियम पूरी तरहसे भग्नप्राय होगा । अभ्यास न करते हुए केवल सवंग लोकप्रियताके लिए ऐसे निर्णय लिए जा रहे हैं । यह बौद्धिक दिवालियापन है । हिंदू अधिनियमके अनुसार चचेरी बहनसे विवाह नहीं कर सकते । मद्रास न्यायालयके निर्णयसे यह नियम टूटेगा । भविष्यमें यह निर्णय सुरक्षित रहनेकी तनिक भी संभावना नहीं है । इससे विवाहकी पवित्रता नष्ट होगी । निवृत्त न्यायमूर्ति राजन कोचरने कहा कि मद्रास उच्च न्यायालयके इस निर्णयके पीछेका दृष्टिकोण अत्यंत अनुचित है । ’विवाह’ शब्दकी व्याख्या संसदने निश्चित की है । यह संज्ञा भग्न करनेका अधिकार न्यायालयको किसने दिया ? यह न्यायालयद्वारा संसदके अधिकारमें किया गया हस्तक्षेप है । वर्तमानमें समाजमें फैलनेवाली ’लिव इन रिलेशनशिप विकृति’ को किसी भी प्रकारसे कानूनन करनेका यह प्रयास है । उच्च न्यायालय द्वारा लिया गया निर्णय अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है । उच्च न्यायालयके ज्येष्ठ अधिवक्ता उदय वारुंजीकरने कहा, ’मद्रास न्यायालयके र्णयसे कानूनके अनुसार ’वैध विवाहके लिए सप्तपदी एवं कबूलनामा जैसी विधियोंका कोई महत्त्व नहीं है ।’ अतः कानूनमें विद्यमान विविध प्रबंधोंका भंग होनेवाला है । हिंदू विवाह अधिनियममें ’सप्तपदी’ एवं पारसी विवाहमें ’आशीर्वाद’ नामक महत्त्वपूर्ण विधि करना बंधनकारी है । इस अधिनियमके कारण अधिनियमके धार्मिक संस्कारोंका महत्त्व नष्ट होगा । इस प्रकार सभी धर्मोंके विवाह अधिनियमोंके प्रबंध गौण सिद्ध होंगे । संक्षेपमें विवाह संस्थाकी पवित्रता संकटमें आएगी । प्रत्येक व्यक्तिके लिए व्यक्तिगत स्वतंत्रता है; परंतु वह कानूनसे बंधा हुआ है । यदि स्वतंत्रताको नियंत्रित नहीं किया गया, तो वह दुराचार बन जाती है ।
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात