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वन्दे मातरम् का अनादर करनेवाले बर्कको दंडित करें !

सारिणी


लोकसभाके अधिवेशनका समापन करते समय ध्वनिमुद्रित वंदे मातरम् आरंभ हुआ । उस समय उत्तरप्रदेशके बहुजन समाज दलके संसद सदस्य शफीकुर्र रेहमान बर्क अपने स्थानसे उठकर सभागृहके बाहर निकल पडे । साथ ही उन्होंने वन्दे मातरम् इस्लामविरोधी है, यह बताकर अपने कृत्यका समर्थन किया । सभापति मीरा कुमारद्वारा उनपर कार्रवाई करनेकी अपेक्षा केवल समझाकर उन्हें छोड दिया गया । वे धर्मांध हैं इस कारण उन्हें फटकारनेका साहस किसीमें नहीं है, इस बातकी निश्चिति उन्हें थी; इसलिए वे वन्दे मातरम् का अनादर कर सके ।
लेखक : ज्येष्ठ पत्रकार श्री. अरुण रामतीर्थकर, सोलापुर

 

१. शफीकुर्र बर्कके देशद्रोहकी ओर मीराकुमार एवं मायावतीद्वारा अनदेखा करना ।

        ८ मईको लोकसभाका अधिवेशन समाप्त हुआ । अधिवेशन अनिश्चित कालावधिके लिए स्थगित किया गया था । १९५२ से अधिवेशनका समापन वन्दे मातरम्द्वारा करनेकी प्रथा है । उसके अनुसार ८ मईको अधिवेशन स्थगित होते समय ध्वनिमुद्रित वन्दे मातरम् आरंभ हुआ । उसके स्वर कानोंमें पडते ही उत्तर प्रदेशके बहुजन समाज दलके संसद सदस्य शफीकुर्र रेहमान बर्क अपने स्थानसे उठे एवं सभागृहके बाहर निकल पडे । वन्दे मातरम् समाप्त होते ही बर्कके इस आचरणके कारण लोकसभाकी सभापति मीरा कुमार संतप्त हुई तथा उन्होंने यह चेतावनी दी कि पुनः कोई भी इस प्रकारका आचरण न करें । वन्दे मातरम्का यह अनादर उद्देश्यपूर्ण था । ऐसा लगा कि मीरा कुमारद्वारा उन्हें चेतावनी देनेवाला पत्र दिया जाएगा, उससे भी आगे बहुजन समाज दलके सर्वेसर्वा बर्कपर कार्रवाई कर वन्दे मातरम्के विषयमें दलकी भूमिका स्पष्ट की जाएगी । ऐसा लगा कि मायावती घोषित करेंगी कि बर्कका यह कृत्य व्यक्तिगत विचारोंके कारण है, उनका यह कृत्य दलको अस्वीकार है; किंतु मीरा कुमार तथा मायावती इन दोनोंने ही बर्कके इस देशद्रोही कृत्यको साधारण समझकर उसकी ओर अनदेखा किया । यह ऐसा ही दिखता  है ।

 

२. निःसंदेह बर्कका आचरण तथा वक्तव्य आपत्तिजनक है ।

        धर्मांध होनेके कारण हमें फटकारनेका किसीमें भी साहस नहीं है, बर्क यह बात जानते थे; इसलिए ही उन्होंने एक पत्रकार परिषदको लेकर अपने इस कृत्यका इस प्रकार समर्थन किया, ‘राष्ट्रगीतके रूपमें जन गण मन…का मैं आदर करता हूं । घटनामें वन्दे मातरम्का कहीं भी उल्लेख नहीं है । यह गीत इस्लामविरोधी होनेके कारण मैं उसका आदर नहीं करूंगा । अभी ही नहीं, अपितु इससे पूर्व भी मैंने अनेक बार इस प्रकारका कृत्य किया था । मेरे देशपर मेरा प्रेम है ही; किंतु एक धर्मांध होनेके कारण मेरा मेरे धर्मपर अधिक प्रेम है । इस विषयमें मैं कोई भी समझौता नहीं करूंगा ।’ बर्कका आचरण तथा वक्तव्य निःसंदेह आपत्तिजनक है । ऐसा होते हुए भी वह बेझिझक आचरण कर, वक्तव्य दे कर इस देशमें चैनसे रहता है । जिस समय कुछ देशाभिमानी कहते हैं कि ‘इस देशमें रहना है तो वन्दे मातरम् कहना होगा’, उस समय सेक्युलर मंडली उनपर टूट पडती है । इन सेक्युलरमें शेकाप, दाएं, बाएं कम्युनिस्ट तथा समाजवादी अतंर्भूत होते हैं । यदि वन्दे मातरम्का ऐतिहासिक महत्त्व ध्यानमें रखते हुए भारतीय वन्दे मातरम्का आदर करते हैं, तो वन्दे मातरम् कहना होगा, इस प्रकार कहनेकी आवश्यकता ही नहीं होगी । वन्दे मातरम्के अतिरिक्त जन गण मनको राष्ट्रगीत घोषित करना, यह नेहरूजीद्वारा किया गया भयंकर अपराध है ।

 

३. वन्दे मातरम्को हटाकर जन गण

मनको राष्ट्रगीत करना, यह नेहरूका भयंकर अपराध !


१९२२ से धर्मांध नेताओंद्वारा वन्दे मातरम्के लिए विरोध हो रहा है । इस विरोधके आगे मोहनदास गांधी एवं जवाहरलाल नेहरू झुक गए, धर्मके आधारपर देशका विभाजन कर धर्मांधोंके लिए निराला पाकिस्तान दिए जानेके पश्चात् वन्दे मातरम्को राष्ट्रगीतका सम्मान देनेमें कोई आपत्ति नहीं थी । वन्दे मातरम्का विरोध करनेवाले पाकिस्तान चले गए थे । देशके ९० प्रतिशत लोगोंको वन्दे मातरम् स्वीकृत होते हुए भी उस समयके मुट्ठीभर धर्मांधोंके लिए नेहरूजीद्वारा ‘जन गण मन’को ही राष्ट्रगीत चुना गया । नेहरूजीके हाथों यह भयंकर अपराध हुआ है तथा उसके विषैले फल अब लगे हैं/लग रहे हैं, उनमेंसे वन्दे मातरम्को हटाकर जन गण मनको राष्ट्रगीत करना, यह एक भयंकर अपराध है ।

४. जन गण मन भी इस्लामविरोधी ही !

        बर्कके अनुसार आज अनेक धर्मांधोंका भी कहना है । वन्दे मातरम्में मातृभूमिका वंदन किया गया है तथा सुजलाम् सुफलाम् इस प्रकार उसका वर्णन किया है । बर्क तथा अन्य धर्मांध कहते हैं कि अल्लाके अतिरिक्त किसीका वंदन नहीं करना । यह युक्तिवाद स्वीकार करने जैसा नहीं है; किंतु विरोध एक मूर्खता है । जन गण मन यह स्वीकार करते समय माताकी अपेक्षा भारत भाग्य विधाता है । वह जो  कोई भी भारतका भाग्यविधाता है, उसका जयजयकार है । उसके आशीषकी अर्थात आशीर्वादकी मांग की है । वंदन अथवा नमस्कार करनेके अतिरिक्त आशीषकी प्राप्ति नहीं होती । गाहे तव जयगाथा यह इस्लाम विरोधी ही है । कुल मिलाकर जन गण मनका अर्थ देखा जाए, तो वह भी निश्चित ही इस्लामविरोधी है । उसका शुभनाम लेंगे, उसे अधिनायक कहेंगे, उसका जय कहेंगे, जयगाथा गाएंगे । यदि यह सर्व चलता है, तो वन्दे मातरम् क्यों नहीं चलता । यदि अच्छीतरहसे विचार किया जाए, तो वन्दे मातरम्को किया जानेवाला विरोध यह इस्लामविरोधी होनेके कारण विरोध नहीं है, अपितु उसके पीछे इस देशके हिंदुओंको जो जो बातें वंदनीय हैं, उनसे घृणा करनेकी मनोवृत्ति है । आप गायको देवता मानते हैं, तो प्रतिदिन गोमांस खानेवालोंके वस्त्र भी हमें पवित्र लगते हैं । आप मूर्तिपूजा करते हैं, तो हम मूर्ति भंजन करते हैं; आपको सवाद्य शोभायात्रा प्रिय है, तो हमें वाद्यवादनसे घिन आती है । अतः हिंदू वेदमंत्रोंसे हमें वंद्य वन्दे मातरम् कहते हैं, इसलिए हम कहेंगे कि वन्दे मातरम् इस्लामविरोधी है । हम भी तुम्हारे समान देशाभिमानी हैं, यह कहते हुए पृथकपनका पालन करना, देशका तथा देशकी प्राचीन संस्कृतिके जो मानदंड हैं, उनपर आघात करना, यह धर्मांध नेताओकी नीति है । पहले मुट्ठीभर थे, इसलिए उन्हें डरनेकी आवश्यकता नहीं थी । अब वे अधिक संख्यामें हो गए हैं, अतः उनके सामने उनके इस देशद्रोहके सामने नतमस्तक होनेके अतिरिक्त सेक्युलरोंको कोई अन्य पर्याय ही नहीं हैं । आज कांग्रेस दलके हाथोंमें केंद्रकी सत्ता है । शरद पवारको अस्वीकार होनेपर भी कर्नाटकमें हाल ही में हुई जीतके पश्चात कांग्रेसकी लोकप्रियतापर मोहर लग गई है । कांग्रेसद्वारा कश्मीर पाकिस्तानको तथा अरुणाचल चीनको प्रदान किया गया, तो लोग कांग्रेसको मत देंगे, ऐसी अवस्था है । इसलिए कांग्रेस वन्दे मातरम्के विषयमें अपनी भूमिका स्पष्ट करे ।

५. धर्मांध नेता वन्दे मातरम् को राष्ट्रभक्तिका गीत घोषित करें !

        बर्क लोकसभाके एकमात्र मुस्लीम विधायक नहीं है । उनके अकेलेके सामने ही इस्लामविरोध क्यों आए ? कांग्रेस दलमें सलमान खुर्शीद, गुलाम नबी आजाद, उपराष्ट्रपति हमीद इस प्रकार अनेक धर्मांध हैं । ऐ मेरे वतन के लोगो इस देशभक्तिपर गीतके अनुसार वन्दे मातरम् यह भी राष्ट्रभक्तिपर एक गीत है, यह घोषित किए जानेपर विवादका एक कारण ही सदाके लिए समाप्त हो जाएगा । राष्ट्रगीत नहीं एवं देशभक्तिपर भी गीत  नहीं, इस प्रकार न घरका न घाटका (त्रिशंकु)के समान वन्दे मातरम् की अवस्था हो गई है । जो अधिकांश क्रांतिकारी वन्दे मातरम् कहते हुए हंसते हंसते फांसीपर चढ गए, वे पुनः नीचे आकर उत्तर नहीं पूछेंगे कि वन्दे मातरम् का यह अनादर क्यों हो रहा है ? कांग्रेसको मत देनेवाले हिंदू पहलेसे ही पुरुषार्थ गंवा बैठे हैं । यदि वन्दे मातरम् पर पाबंदी लगाई गई, तो भी निद्रिस्त हिंदू एक शब्दसे भी विरोध नहीं करेंगे । तो देर किस बातकी ? बर्कको दंडित करें अथवा वन्दे मातरम् पर पाबंदी लगाकर यह विषय समाप्त करें ।

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