तीर्थक्षेत्र उत्तराखंडको ’मधुचंद्रका स्थान’ बनाकर पाप किया गया, अतः इस विषयमें पश्चाताप करें !

आषाढ कृष्ण २, कलियुग वर्ष ५११५

शंकराचार्य <br />स्वामी श्री स्वरूपानंद सरस्वती” title=”शंकराचार्य <br />स्वामी श्री स्वरूपानंद सरस्वती” /><br />
<br />शंकराचार्य <br />स्वामी श्री स्वरूपानंद सरस्वती
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<p><strong>हरिद्वार (उत्तराखंड) –</strong> द्वारकापीठके शंकराचार्य स्वामी श्री स्वरूपानंद सरस्वतीने प्रतिपादित किया कि उत्तराखंड देवभूमि है । ऐसा होते हुए भी वर्तमान समयमें लोगोंको ऐसा प्रतीत होता है कि यह स्थान खाने, पीने एवं मजा करनेके लिए ही है । उत्तराखंड अर्थात देवी-देवताओंकी भूमि है । यह वही स्थान है जहां भगवान शंकरने अपनी जटामें गंगाको धारण किया था । तीर्थक्षेत्र होते हुए यह ’मधुचंद्रका स्थान’ बने यह कैसे संभव है ? यहांके पर्वत नवदंपतियोंके लिए मजा करनेके स्थान नहीं हैं । देवभूमिको नवदंपतिके लिए पर्यटनस्थल बनाकर पाप किया गया है । अतः यह इस विषयमें पश्चात्ताप करनेका समय है । सरकारको उत्तराखंडका पर्यटनस्थलके रूपमें प्रचार करना तत्काल रोकना होगा ।</p>
<h3>देवभूमिका देवत्व संजोने हेतु भारतीय सहायता करें !</h3>
<p>उत्तराखंडमें नदियोंपर बडे-बडे बांधोंका निर्माणकार्य किया गया । इसलिए यह महाप्रलय हुआ । यहांकी नदियोंपर बांधोंका निर्माणकार्य करनेके लिए सरकार प्रतिबंध करें । भागीरथी एवं अलकनंदा नदियोंपर बांधोंका निर्माणकार्य किया गया, तो नदियोंके सिकुडनेसे  सभी लोगोंपर उसका परिणाम होगा । बांधोंका निर्माण कार्य रोकनेसे इस परिसरमें बिजलीका अभाव होगा; परंतु शेष भारतद्वारा वहां विद्युत आपूर्ति कर इस भूमिकी पवित्रताको संजोए रखना चाहिए ।</p>
<h3>केदारनाथ परिसरकी पंचामृतसे स्वच्छता करें !</h3>
<p>सरकारको केदारनाथ परिसरकी स्वच्छता अधिकाअधिक तत्परतासे करनी चाहिए । यह परिसर स्वच्छ करनेके लिए सरकार पंचामृतका उपयोग करे । केदारनाथ मंदिरके परिसरमें आद्य शंकराचार्यकी प्रतिमा थी । उसे ढूंढना आवश्यक है । वह भारतीयोंकी सांस्कृतिक विरासत है ।</p>
<p><strong>स्त्रोत : <a href=दैनिक सनातन प्रभात

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