आषाढ कृष्ण १०, कलियुग वर्ष ५११५
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जनता पार्टी के अध्यक्ष सुब्रमण्यम स्वामी ने चीन से कहा है कि वह मैकमोहन रेखा को भारत के साथ सीमा के तौर पर स्वीकार कर ले.स्वामी ने कहा कि बिल्कुल वैसे ही जैसे उसने सीमा विवाद को समाप्त करने के लिए म्यामां के साथ किया है ।
चीन के विदेश मंत्रालय के तत्वाधान में देश की त्शिंहुआ विश्वविद्यालय की ओर से आयोजित ‘२०१३ वर्ल्ड पीस फोरम’ में ‘पड़ोसियों के साथ चीन के संबंध’ विषय पर बोलते हुए स्वामी ने कहा कि चीन को मैकमोहन रेखा को स्वीकार कर लेना चाहिए क्योंकि उसने उसी दौरान वर्ष १९९२ में म्यामां के साथ खिंची गई इसी रेखा (मैकमोहन रेखा) को स्वीकार कर लिया है । चीन और अन्य देशों के रणनीतिक महत्व के विचारकों की मौजूदगी में एक महत्वपूर्ण शोध प्रस्तुत करते हुए स्वामी ने कहा कि ऐसी स्वीकार्यता भारत-चीन के संबंधों को बहुत बेहतर बना देगी । संयोग से स्वामी की यह टिप्पणी ऐसे समय पर आयी है जब राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार शिवशंकर मेनन और उनके समकक्ष यांग जेइची के बीच शनिवार से ही १६वें दौर की सीमा वार्ता चल रही है । स्वामी ने कहा कि जापान की तरह भारत-चीन संबंधों में उत्तराधिकार का कोई ऐसा मामला नहीं है जो चीन के लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंचाए.उन्होंने कहा कि इसके विपरीत (जापान से उलट) पिछले ढाई हजार वर्षों से भारत और चीन के बीच अच्छे और शांतिपूर्ण संबंध हैं जो दो बड़े पड़ोसियों और तत्कालीन परिस्थितियों के अनुसार आर्थिक शक्तियों के परस्पर सम्मान और सांस्कृतिक आदान – प्रदान पर आधारित है और सच तो यह है कि वर्ष १९६२ से पहले दोनों देशों के बीच कभी युद्ध नहीं हुआ था । सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा कि चीन को शिकायत ब्रिटिश तानाशाहों और उपनिवेशवादियों की ओर से निरूपित सीमा से है और वे सर हेनरी मैकमोहन रेखा को अनुचित बताते हुए कहते हैं कि चीन जब कमजोर था तो उसका फायदा उठाते हुए यह रेखा खिंची गयी.उन्होंने कहा कि सचमुच यह विचार योग्य मुद्दा है । स्वामी ने कहा कि महत्वपूर्ण सवाल यह है कि चीन को भारत के साथ मैकमोहन रेखा को सीमा के तौर पर स्वीकार करने में क्या परेशानी है, जबकि वह उसी रेखा को म्यांमा के साथ सीमा के तौर पर स्वीकार कर चुका है । उन्होंने कहा कि समय आ गया है कि जब भारतीयों को भारत-चीन संबंधों में नयी जान फूंकने के लिए कोशिशें करनी चाहिए ।
स्त्रोत : समय लाईव