अपना राष्ट्र, अपनी संस्कृति, अपने श्रद्धास्थान एवं राष्ट्रपुरुषोंकी रक्षा हेतु …..


१. हिंदू  समाजको नरसिंह बनना पडेगा !

        `पूरे विश्वमें ऐसा कोई भी देश नहीं, जहां बहुसंख्यक समाज चारों ओरसे दबावमें हो । हमारे  देशमें  बहुसंख्य हिंदू  समाज अनाथ हो गया है । उसका कोई त्राता नहीं रहा ।

अ. हमारी सरकार, जो हमारी पालनकर्ता तथा तारणहार है ; हमारे  देश, हमारे देशकी महान परंपरा तथा हमारी संस्कृतिकी रक्षा करनेमें असमर्थ  सिद्ध हुई है। पाकिस्तान एवं चीन हमारे कट्टर शत्रु हैं उन शत्रुओंपर धाक जमानेमें हमारा प्रशासन अभीतक असफल ही रहा है ।

आ. हमारे देशके राष्ट्रपुरुष, संस्कृति-उपासक तथा संस्कृति-रक्षकोंका जानबुझकर अवमान करनेवालोंको , तथा उनका अनादर करनेवालोंको कठोर दंड देनेमें हमारी सरकार असमर्थ है, इसका प्रत्यय अब बारबार आ रहा है ।

इ. हमारी न्यायव्यवस्था भी हमारे राष्ट्रपुरुषोंका अनादर रोकने तथा  उसपर  प्रतिबंध लगानेमें असमर्थ है । उसी प्रकार, ‘ कोई भी हमारे राष्ट्रपुरुषोंका पुनः अनादर करनेका प्रयत्न करनेका दुस्साहस न करे  ऐसा रोब निर्माण करनेमें असमर्थ रही है । इसलिए हमारा राष्ट्र, हमारी संस्कृति, हमारे  श्रद्धास्थान तथा राष्ट्रपुरुषोंकी रक्षा हेतु इस देशके बहुसंख्य हिंदू  समाजको  नरसिंह बनना पडेगा !’

 

२. हिंदुस्थानको नष्ट करनेके सपने

देखनेवालोंका प्रतिरोध करनेका पूरा अधिकार हिंदू  समाजको है । 

        हिंदुओंको सहिष्णुता, दुसरोंकी भावनाअ‍ोंका आदर करना, अहिंसा तथा संयम रखनेका उपदेश करनेकी  आवश्यकता नही; क्योंकि ये गुण हिदुओंके रक्तमें पूर्वसे  ही विद्यमान  है किंतु जब सामनेवालेकी विकृत आसुरी वृत्ति, इन  गुणोंको लाचारी तथा दुर्बलता समझकर हमारी संस्कृति, राष्ट्रपुरुष एवं राष्ट्रपर आक्रमण करके यहांका  सार्वभौमत्व एवं स्वतंत्रता मिट्टिमें मिलाकर , इस देशको नष्ट करनेके सपने देखती  रहे , तो विफल करनेका  पूरा अधिकार इस देशके बहुसंख्य समाजको है । 

 

३. राष्ट्रपुरुष तथा जनताके श्रद्धास्थानोंकी अपकीर्ति करना, आंतरराष्ट्रीय

निर्बंधेंके अनुसार अपराध होते हुए भी  शिवछत्रपतिकी प्रतिमा कलंकित करनेवाले

जेम्स लेनपर आरोपपत्र प्रविष्ट करनेका साहस न दिखानेवाला राष्ट्राभिमानशून्य कांग्रेस प्रशासन !

        पश्चिमी लेखक  जेम्स लेनने अपने लेखन द्वारा हिंदवी स्वराज्यके संस्थापक छत्रपति शिवाजी महाराजका अपमान  किया है । जेम्स लेन अमरिका स्थित मान्यताप्राप्त विश्वविद्यालयका प्राध्यापक है । उसे शिवचरित्र लिखनेकी धुन चढती है  ;  किंतु वह  शिवाजी महाराजके पराक्रमका इतिहास कथन करनेकी अपेक्षा  छत्रपती शिवाजी महाराज तथा उनके मातापिता (जिजामाता एवं  शहाजीराजे ) का चरित्रहनन करनेमें अधिक रुचि रखता  है । उसकी  दृष्टि में दादोजी कोंडदेवजी वासनांध थे  । ऐसे लेखककी  पुस्तकपर केवल प्रतिबंध घोषित करनेसे कुछ नहीं होगा । हमारा देश स्वतंत्र एवं  सार्वभौम है । इस देशके राष्ट्रपुरुष तथा जनताके श्रद्धास्थानोंकी अपकीर्ति  करना आंतरराष्ट्रीय निर्बंधानुसार है । जिस प्रकार व्यक्ति मानहानिकी क्षतिपूर्तिके लिए अभियोग चला सकता है, उसी प्रकार  स्वतंत्र एवं सार्वभौम देश भी अमरिका तथा वहांके दोषी प्राध्यापकके विरोधमें मानहानिका अभियोग चला सकता है । किंतु हमारी सरकारने ‘हमारे राष्ट्रपुरुष तथा श्रद्धास्थानोंका अनादर करनेवाली , ’अमरिकाकेविरोधमें अभियोग प्रविष्ट करनेका विचार तक नहीं किया ।  वास्तवमें न्यायालय एवं सरकारको  आपसी  सहकार्यसे उस प्रकारके प्रयत्न करनेकी आवश्यकता है  । इसके विपरीत  प्रशासनाने  उस पुस्तकपर   लगा प्रतिबंध हटाकर पूरे हिंदु समाजके  हृदयको ठेस पहुंचाई है ।

 

४. यह कितना भीषण वास्तव है कि गायोंकी हत्या

करनेवालोपर कडी कार्यवाही करनेका हमारी  क्लीब (नपुंसक)

सरकारमें कोई साहस नहीं है ; किंतु गोहत्याका विरोध करनेवाले 

हिंदुत्वनिष्ठोंको बंदी बनाकर उन्हें कारावास दिलानेमें  प्रशासनका पौरूष झलकता है !

        २१ जुलै २०१०, बुधवार, आषाढी एकादशी, हिंदुओंका बडा त्यौहार । उस दिन  महाराष्ट्रके  मालेगाव-मनमाड मार्गपर लगभग २२ गायोंका वध कर , उन्हें फेंक दिया गया था । जिन्होंने इस प्रकारका क्रूर कर्म किया है ; उनपर कठोर कार्यवाही की जानेकी कोई संभावना नहीं है । इस घटना संबंधी समाचार न फ़ैल  जाए , इसलिए  सरकारकी ओरसे पूरा ध्यान दिया गया । प्रसारमाध्यमोंको सूचनाएं दी गई कि ‘इस घटनाके संदर्भमें कोई सनसनीखेज समाचार प्रसारित न किया जाए ’ ‘तरुण भारत’ नामक दैनिकके २२ जुलाई २०१० के अंकमें इस प्रकारकी जानकारी दी गई है । राजनेताओंका यह निर्णय, तथा यह भूमिका अत्यंत गंभीर है । एक ओर यह कहा जाता है कि ईश्वरको पशुओंकी बलि न चढाई जाए; इस हेतु प्रशासनद्वारा किसी भी पशुका शिकार करनेपर  प्रतिबंध  लगाए गए हैं। इतना ही नहीं, गलीमें घूमनेवाले कुत्तोंको  मारना भी मना है । ऐसी स्थिति में गायोंकी हत्या निरंतर हो रही है , किंतु उसपर प्रतिबंध लगानेमें सरकारको सफलता नहीं मिल रही है । सरकार इस बातसे पूर्णरूपसे परिचित है कि गायोंकी हत्या करनेवाले  मुसलमान ही हैं । उनका विरोध कर उनपर कडी कार्यवाही करनेके आवश्यक पौरुषत्व प्रशासनमें नही है । हिंदू समाजकी यही तो विशेषता है कि वह कभी संगठित नहीं हो सकता । अत: वे विरोध करने नहीं जाते । यदि कुछ हिंदुधर्माभिमानी विरोध करनेका प्रयत्न करेंगे, तो उनके उनपर मोक्का लगाकर उन्हें कारावासमें भेजनेके लिए प्रशासनके पास अपनी  यंत्रणा होती है ।

 

५. भाईयों, अब राजनेताओंको यह समझानेका समय आ

गया है कि  ‘जनताकी भावनओंको ध्यानमें रखकर अपनी कुर्सीको छोड दो !’

        देशभक्त एवं राष्ट्रनिष्ठ जनताको ही अब आगे आकर कठोर शब्दोंमें प्रशासनको यह समझानेका समय आया है कि न तुम  संस्कृतिकी रक्षा  कर सकते हो, न शत्रूपर धाक जमा सकते हो, न ही तुम आतंकवादियों एवं नक्सलवादियोंके विघातक कृत्योंको नियंत्रणमें रख सकते हो, गोहत्याको रोकना तुम्हारे बसकी बात नहीं है, तुम कुछ भी करनेके योग्य नहीं हो ; क्या इन बातोंसे तुम अनभिज्ञ हो ? किसलिए सत्ताको अपने हाथमें लेकर देश तथा संस्कृतिका विनाश कर रहे हो ? सरकार भलेही विवश तथा दुर्बल हो किंतु जनता नहीं है । अत: लोगोंकी भावभावनओंको ध्यानमें रखकर सत्तासे हट जाना ही सरकारके लिए ठीक होगा !’
– श्री. दुर्गेश परुळकर (धर्मभास्कर, सप्टेंबर २०१०)

सौजन्य : दैनिक सनातन प्रभात 

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