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मंदिरों पर सरकारी नियंत्रण के खिलाफ जुटे धर्माचार्य !

आषाढ शुक्ल ७ , कलियुग वर्ष ५११५


नई दिल्ली : धार्मिक संस्थानों पर ट्रस्ट के रूप में सरकार के प्रशासनिक हस्तक्षेप के खिलाफ हिंदू धर्म आचार्य सभा ने जनभावना तैयार करने का अभियान छेड़ दिया है। रविवार को दिल्ली में कानूनी संघर्ष के लिए मजबूत रास्ते तलाशने की कोशिश हुई। 'मंदिरों पर सरकारी नियंत्रण संवैधानिक मुद्दे' विषय पर हुई लंबी बहस में ज्यादातर अधिवक्ताओं का मानना था कि हिंदू धार्मिक संस्थानों को लेकर कानून में भी भेद है, इसे दुरुस्त किया जाना चाहिए। मंदिरों में धर्मार्थ दान पर सरकारी नियंत्रण के खिलाफ हिंदू धर्म आचार्य सभा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है। स्वामी दयानंद सरस्वती ने इसकी जानकारी देते हुए कहा, केवल हिंदू धार्मिक संस्थानों के साथ भेदभाव किया जाता है। अन्य धमरें के संस्थानों को इससे परे रखा गया है। सरकार अपने चुने हुए प्रतिनिधि को मंदिरों के ऊपर बिठा देती है और फिर प्रतिनिधि कभी निर्माण के नाम पर तो कभी दूसरी तरह से दान में आए हुए धन का दुरुपयोग करते हैं। अन्य धमरें की तरह ही इसके उपयोग का पूरा अधिकार धार्मिक संस्थानों के पास ही होना चाहिए।'

 

स्वामी परमात्मानंद सरस्वती ने कहा कि उनके पास वर्तमान व्यवस्था के बजाय दूसरी व्यवस्था लागू करने का पूरा ड्राफ्ट तैयार है ताकि करोड़ों श्रद्धालु जो दान देते हैं उसका पूरा सदुपयोग हो सके।दिनभर चली बैठक में अमन लेखी, पिंकी आनंद, केएन भंट्ट, जस्टिस रामा ज्वाइस, जस्टिस वीएस कोजे जैसे कानून विशेषज्ञों ने भी हिस्सा लिया। सभी वक्ता इससे सहमत थे कि मंदिरों पर सरकारी नियंत्रण खत्म नहीं तो कम से कम तार्किक स्तर तक घटना जरूर चाहिए।

 

पिंकी आनंद ने कहा, धार्मिक दान में आए पैसे एमपीलैड या एमएलए फंड नहीं है जिसके लिए सरकारी मंजूरी चाहिए। कुछ स्तर पर नियंत्रण हो सकता है लेकिन यह जरूर सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि इससे धर्म प्रभावित न हो। जस्टिस ज्वाइस ने सुझाव दिया कि मंदिरों के लिए बनाए गए ट्रस्ट में आइएएस अधिकारियों के बजाय रिटायर्ड जस्टिस नियुक्त किए जाने चाहिए जो धर्माचायरें की सलाह और सुझाव को ध्यान में रखकर निर्णय लें।

 

बैठक में प्रजेंटेशन के माध्यम से यह भी दिखाने की कोशिश हुई कि किस तरह सरकार मंदिरों में धर्मार्थ के लिए आई दान की रकम पर आधिपत्य जमाए बैठी है। ज्यादातर लोगों का मानना था कि हिंदू धार्मिक संस्थानों पर सरकारी नियंत्रण इस धर्मनिरपेक्ष सिद्धांत के खिलाफ है जिसके तहत हर धर्म को समानता का अधिकार दिया गया है।

 

स्त्रोत : जागरण . कोम 

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