अद्ययावत
- खुदाई में निकली हरिहर प्रतिमा और शिवलिंग (२० जुलाई २०१३)
- महाभारतकालीन इतिहास से जुड़े मैनपुरी के औंछा में १०-११वीं सदी के मंदिर के सुबूत (१९ जुलाई २०१३)
मैनपुरी के वनकटी में मिले शक्तिपीठ के अवशेष
२१ जुलाई २०१३
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मैनपुरी – कुछ साल पहले तक दस्युओं के खौफ से थर्राने वाली उत्तर प्रदेश की मैनपुरी सदियों पहले बड़ी धर्मनगरी थी। औंछा में प्राचीन मंदिर के अवशेष मिलने के बाद अब वनकटी गांव में प्राचीन शक्तिपीठ होने की जानकारी सामने आई है। वक्त के थपेड़ों से जमीन में गुम हुई इस विरासत पर 'दैनिक जागरण' की खोज के बाद भारतीय सर्वेक्षण विभाग डएएसआइ़ ने भी मुहर लगा दी है।
शनिवार को जागरण की टीम के साथ एएसआइ के विशेषज्ञों का दल श्रंगी ऋषि के आश्रम के साथ ही वनकटी शिव मंदिर में मिले पुरावशेषों का परीक्षण करने पहुंचा। इस दौरान कई और पुरावशेष भी मिले। इनके भी दसवीं सदी के होने का अनुमान है। बीती नौ जुलाई को मैनपुरी की ग्राम पंचायत औंछा स्थित श्रंगी ऋषि के आश्रम में टीले के समतलीकरण के दौरान दर्जनभर से ज्यादा पुरावशेष मिले थे। जागरण की टीम ने जब इन पुरावशेषों का परीक्षण कराया और जानकारी जुटाई तो श्रंगी ऋषि आश्रम में १०वीं सदी में विद्यमान मंदिर के बारे में पता चला। इसके अगले दिन ही श्रंगी ऋषि के आश्रम से पांच किलोमीटर दूर बल्लमपुर के निकट वनकटी गांव स्थित शिव मंदिर में भी टीले की खुदाई के दौरान भगवान हरिहर की मूर्ति और अन्य पुरावशेष निकल आए। जागरण ने इन पुरावशेषों के भी लगभग उसी काल के होने की बात उजागर की। शनिवार को अधीक्षण पुरातत्वविद आगरा सर्किल एनके पाठक ने दो सहायक पुरातत्वविद केबी शर्मा और महेंद्र पाल को जागरण की टीम के साथ औंछा भेजा।
वनकटी में प्राचीन शक्ति पीठ के पुरावशेष होने का अनुमान है। वहां करीब सात फुट का शिवलिंग मिला है। लेकिन यह शिवलिंग खंडित है। एएसआइ के विशेषज्ञों ने तलाश की तो वहां प्राचीन बर्तनों के टुकड़े, कई प्राचीन मूर्तियों के टुकड़े और मंदिर का हिस्सा रहे पत्थर भी मिले हैं।
स्त्रोत : दैनिक जागरण
खुदाई में निकली हरिहर प्रतिमा और शिवलिंग
२० जुलाई २०१३
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मैनपुरी (जासं) – ऋषियों की तपोस्थली औंछा के आसपास इतिहास की परतें दबी हुई हैं। शुक्रवार को ग्राम बल्लमपुर के निकट शिव आश्रम वनकटी के प्रांगण में खुदाई के दौरान तीन फुट लंबी भगवान हरिहर की प्रतिमा निकली। ये शिव और विष्णु का मिला-जुला स्वरूप हैं। इसके अलावा छह फुट लंबा शिवलिंग और शिलालेख बरामद हुआ है। एक मंदिर के अवशेष भी निकले, जिन पर प्राचीन कलाकृतियां अंकित हैं। ये सभी अवशेष नौवीं से दसवीं शताब्दी के हैं।
शिव आश्रम के आसपास के ऊंचे टीले पर संतों के ठहरने के लिए आवास का निर्माण कराया जा रहा है। इसके लिए शुक्रवार को जेसीबी से खुदाई शुरू की गई। चार फीट मिंट्टी हटने के बाद अचानक वहां पत्थर दिखाई दिया तो जेसीबी मशीन को रुकवाया गया। वहां फावड़े से खुदाई कराई गई तो छह फुट लंबा शिवलिंग निकला। इसके बाद खुदाई जारी रखी गई तो तीन फुट ऊंचाई वाली भगवान हरिहर की प्रतिमा निकली।
पुरातत्व विशेषज्ञ एके तिवारी का कहना है कि भगवान हरिहर शिव और विष्णु का मिला-जुला स्वरूप हैं। प्रतिमा के त्रिनेत्र हैं। उल्टे हाथ में चक्र बना हुआ है, जबकि दाएं हाथ में त्रिशूल है। इसके अलावा मिले अवशेषों पर प्राचीन कलाकृतियां अंकित है।
खुदाई के दौरान एक शिलालेख भी बरामद हुआ है। पुरातत्व विशेषज्ञों का कहना है कि इस पर क्या लिखा है, यह इसकी सफाई के बाद ही ज्ञात हो सकेगा। शुक्रवार को परिसर में आदिकाल की नालीदार ककइया ईटें भी निकली हैं। कुछ पत्थर के टुकड़े भी निकले, जो मंदिर होने का सुबूत दे रहे हैं।
पहले निकला था ११ फुट का शिवलिंग
मंदिर के पुजारी देवानंद का कहना है कि २००४-०५ में उनके गुरु ने खुदाई कराई गई थी तब ११ फुट लंबा और पांच फुटा चौड़ा शिवलिंग निकला था, जिसे मंदिर में स्थापित कर दिया था।
मंदिर के पुजारी का कहना है कि लगभग १०० वर्ष पहले उनके गुरु लालता प्रसाद ने शिव मंदिर का निर्माण कराया था। उस समय मंदिर के किनारे एक बड़ा सा पक्का तालाब था। कहा जाता है कि इस तालाब का निर्माण भगवान राम ने कराया था। इसी स्थान पर शबरी ने तपस्या की थी, उसकी तपस्या से खुश होकर भगवान राम यहां पहुंचे थे। उस दौरान यहां तपस्या कर रहे ऋषियों ने भगवान राम को पीने के पानी की समस्या की जानकारी दी, तो उन्होंने शबरी के हाथ के बेर खाने की बात कहकर एक तालाब का निर्माण कराया। इस तालाब में न तो घास उगती थी न ही जीव-जंतु पलते थे। पानी स्वच्छ रहता था, जिसका पान ऋषि मुनि करते थे।
स्त्रोत : दैनिक जागरण
महाभारतकालीन इतिहास से जुड़े मैनपुरी के औंछा में १०-११वीं सदी के मंदिर के सुबूत
१९ जुलाई २०१३
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आगरा (उत्तर प्रदेश) – महाभारतकालीन इतिहास से जुड़े मैनपुरी के औंछा में अति प्राचीन पुरावशेष दबे हुए हैं । दसवीं सदी का एक मंदिर तो जमीन का सीना कुरेदकर बाहर आने को तैयार है । यहां करीब पांच फुट ऊंचाई के टीले पर कुछ मिंट्टी हटी तो मंदिर के कई साक्ष्य बाहर आ गए । करीब दर्जनभर मूर्तियां और मंदिर इमारत से जुड़े अवशेष निकले । भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के विशेषज्ञों का अनुमान है कि ये पुरावशेष १०-११वीं सदी के हैं । यदि संबंधित स्थल पर खुदाई की जाए तो अति प्राचीन मंदिर सामने आ सकता है ।
औंछा ग्राम पंचायत में श्रंगी ऋषि का प्राचीन आश्रम स्थित है । किसी जमाने में इस आश्रम में चारों और टीलों की भरमार हुआ करती थी । धीरे-धीरे टीले खत्म होते गए । बीती नौ जुलाई को आश्रम में बनाए जा रहे एक नए मंदिर भवन के दायीं ओर स्थित करीब पांच फुट ऊंचे टीले को समतल कराया गया । इसी दौरान खुदाई करने वालों को एक नर कंकाल नजर आया । इसके बाद एक-एक कर कुछ मूर्तियां, मंदिर के क्षतिग्रस्त अवशेष और निकले । जब जमीन समतल हुई तो उसके नीचे ककइया ईंटों से बनी दीवार या नींव के अवशेष दिखे ।
'दैनिक जागरण' टीम गुरुवार को यहां निकले अभिलेखों का परीक्षण करने एक सप्ताह के अंदर दोबारा पहुंची । वहां आश्रम परिसर में एक चबूतरे पर खुले में सारे पुरावशेष रखे हुए हैं । जबकि एक प्रतिमा (जो सुरक्षित बाहर निकली है) को आश्रम प्रशासन ने वहां निर्माणाधीन मंदिर में स्थापित कर दिया है । प्रतिमा देखने पर ही बहुत प्राचीन नजर आती है ।
अन्य अवशेषों पर बारीकी से नजर डाली गई तो अंदाजा लगा कि यह सभी साक्ष्य किसी न किसी रूप में किसी एक मंदिर का हिस्सा हैं । जागरण ने एएसआइ आगरा सर्किल के अधिकारियों को खुदाई में मिले पुरावशेषों के चित्र उपलब्ध कराए । इस पर विशेषज्ञों ने बताया कि यह १०वीं से ११वीं सदी के हैं । पुरावशेष कितने पुराने हैं, इसका सही और सटीक आकलन विस्तृत अध्ययन के बाद ही हो सकता है । पुरातत्व विशेषज्ञों का कहना है कि प्रतिमाओं और अवशेषों को किसी खास शैली का होने की बात स्पष्ट तौर अभी नहीं कही जा सकती ।
जागरण टीम ने खुदाई स्थल का जायजा लिया तो एक और चौंकाने वाली हकीकत सामने आई । टीले को समतल करने के बाद जमीन में किसी प्राचीन भवन की दीवार या नींव नजर आ रही है। यह ककइया ईटों की बनी है । पूर्व में इन्हीं ईटों का प्रयोग महलों, मंदिरों आदि भवनों के निर्माण होता था । पुरातत्वविद यहां मंदिर होने की संभावना से इन्कार नहीं कर रहे। इसके अलावा निर्माणाधीन मंदिर में एक अन्य प्रतिमा पहले से स्थापित है । द्विभंग मुद्रा में बनी यह प्रतिमा भी अत्यंत प्राचीन है । हालांकि इस देवी प्रतिमा के हाथों में क्या है, यह स्पष्ट नहीं हो पा रहा है ।
क्षेत्रवासियों व आश्रम प्रशासन का कहना है कि आश्रम परिसर और आसपास से जब भी टीले आदि को हटाया जाता है, तो इसी प्रकार के अवशेष या ककइया ईंटें निकलती हैं ।
८८ हजार ऋषियों ने की थी तपस्या
मंदिर प्रशासन से जुड़े संत भगवान स्वरूप (श्री श्री १००८ स्वामी चेतनानंद महाराज के शिष्य) ने बताया कि भारतीय धार्मिक इतिहास के अनुसार त्रेता युग में श्रंगी ऋषि ने यहां तपस्या की थी । तब यह क्षेत्र अरण्य वन के नाम से जाना जाता था और करीब ८८ हजार ऋषियों की यह तपोस्थली रहा है । महाभारत काल में पांडवों ने अपना १२ वर्ष के वनवास का समय भी यहां व्यतीत किया था। पूर्व में यहां कभी मंदिर था, इसका कोई उल्लेख कहीं नहीं है, परंतु ऐसा हो सकता है कि कभी यहां या नजदीक में कोई मंदिर रहा हो ।
यह हैं प्रमुख पुरावशेष
देवी प्रतिमा : करीब एक फुट के आकार की प्रतिमा पत्थर के ऊपर उकेर कर बनाई गई है । प्राचीन होने के कारण आकृति थोड़ी अस्पष्ट है । प्रतिमा के चार हाथ हैं, जिनमें से दाएं ओर ऊपर के हाथ में गदा और बाएं ओर नीचे के हाथ में शंख स्पष्ट नजर आ रहे हैं । शेष दो हाथों में क्या है यह साफ नहीं दिखता । विशेषज्ञों का अनुमान है कि यह प्रतिमा १०वीं से ११वीं सदी के बीच की है । भारतीय इतिहास के हिसाब से उस दौर को राजपूत काल के नाम से जाना जाता है ।
भारवाहक या कीचक : प्राचीन मंदिरों-भवनों में यह स्तंभों के ऊपर का भाग होता था, जिसमें कुछ मूर्तियां छत का भार वहन करते हुए बनाई जाती थीं । विशेषज्ञों का अनुमान है कि यह किसी मंदिर का हिस्सा हैं जो या तो क्षतिग्रस्त हो गया या किसी तरह मिट्टी के नीचे दब गया होगा । यह भी १०वीं से ११वीं सदी की बताई जा रही हैं ।
आमलक : खुदाई में आमलक पत्थर का एक अधूरा हिस्सा भी निकला है । यह प्राचीन मंदिरों में कलश के नीचे लगाया जाता था । इस पत्थर का मिलना भी सीधे तौर पर वहां प्राचीन मंदिर की मौजूदगी का साक्ष्य है और विशेषज्ञ इसके भी १०वीं से १२वीं सदी के होने का अनुमान लगा रहे हैं ।
कंकाल के रहस्य पर पर्दा
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पुरावशेषों के साथ जमीन से निकले असामान्य नरकंकाल का रहस्य नहीं खुल सका । बीती नौ जुलाई को हुई टीले की खुदाई में एक अद्भुत नर कंकाल भी निकला था, जो सामान्य से करीब डेढ़ गुना बड़ा था । कंकाल के सिर का हिस्सा, एक सामान्य सिर से करीब दो से तीन गुना तक बड़ा दिख रहा था । परंतु इसके सामने आने के बाद भी जिला प्रशासन या संबंधित विभागों ने परीक्षण आदि की कोई कोशिश नहीं की। ऐसे में आश्रम प्रशासन ने नर कंकाल को फिर से जमीन में ही दबा दिया । गुरुवार को जब जागरण टीम पहुंची तो नर कंकाल को दबाए जाने वाली जगह पर समाधि बना दी गई थी ।
एएसआइ साक्ष्य जुटाएगी
मैनपुरी के औंछा में निकली मूर्तियां और अवशेष लगभग १०वीं सदी की होने का अनुमान है । इनके विस्तृत अध्ययन के लिए जल्द ही विभागीय विशेषज्ञों की एक टीम वहां भेजी जाएगी। जिससे इतिहास और पुरातत्व संबंधी सारे साक्ष्य सामने आ सकें । – एनके पाठक, अधीक्षण पुरातत्वविद आगरा सर्किल एएसआइ
पुरावशेष एक हजार साल पुराने
औंछा में मिल रहे पुरावशेषों के करीब एक हजार साल पुराना होने का अनुमान है । संभवत: राजपूत काल में यहां मंदिर का निर्माण कराया गया होगा । यह पुरातन इतिहास से जुड़ा हुआ है। संबंधित स्थल और पुरावशेषों का पूरा अध्ययन होना चाहिए, जिससे इतिहास सामने आ सके । – राजकिशोर राजे, इतिहासकार
शासन को पत्र भेजेंगे : डीएम
पुरावशेषों के खुदाई में निकलने के मामले की जांच के लिए एक समिति बना दी है । पुरावशेषों को फिलहाल आश्रम प्रशासन के सुपुर्द कर दिया है । टीम की रिपोर्ट आने के बाद इसके अध्ययन के संबंध में शासन को पत्र भेजा जाएगा । – विजय किरन आनंद, डीएम मैनपुरी
स्त्रोत : दैनिक जागरण