नैतिक अधःपतन !

सारणी


श्रावण कृष्ण १ , कलियुग वर्ष ५११५ 


१. राष्ट्रकी नैतिकता भी आपत्तिमें !

        ‘वेश्याद्वारा उत्पन्न संतान भी मांत्रिकोंकी वासनाके अधीन होती है, अतः धीरे-धीरे समाजके साथ राष्ट्रकी नैतिकता भी आपत्तिमें आ जाती है । अनेक राजनीतिज्ञ, पुलिस (आरक्षक), चलचित्र कलाकार, साथ ही क्रिकेटपटु, उद्योगपति आदि मांत्रिकोंकी वासनाके कवचमें फंस गए हैं । अतः भारत भी एक उच्छृंखल विदेशी राष्ट्रके रूपर्में णस्थापित होनेके मार्गपर है ।’ – एक विद्वान (श्रीमती अंजली गाडगीळके माध्यमसे, श्रावण शुद्ध १३, कलियुग वर्ष ५११०, दोपहर १२.०९ (१४.८.२००८)

२. प्रसारप्रणालद्वारा भारतीय संस्कृति संपुष्ट करनेकी सक्रिय भूमिका  निभानेका कार्य

      ‘प्रसारप्रणाल लोगोंके खाली समयकी पूर्ति करनेके साथ भारतीय संस्कृतिका अपहरण करनेका एक माध्यम बन गया है । प्रसारप्रणालने मनुष्यको असुर बनानेका एक भयंकर अभियान हाथमें लिया है । किसी भी देशकी संस्कृति अबाधित (सुरक्षित) रखनेमें युवा पीढी, महिला तथा बच्चोंकी सबसे बडी एवं अहम भूमिका होती है । जिस देशकी युवापीढी तथा बच्चोंपर देशकी संस्कृतिके संस्कार होते हैं, उस देशमें मानवता तथा एकताका एक अच्छा उदाहरण (समाज) स्थापित होता है । किसी भी देशको निर्बल बनाना है, तो उस देशकी संस्कृति नष्ट करें । संस्कृतिका पतन अर्थात उस देशका वास्तविक पतन । आज प्रसारमाध्यम हमारे देशकी संस्कृतिका नाश करनेकी सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं । प्रसारप्रणाल  लोगोंका केवल दिल नहीं बहलाते, अपितु उनकी विचारप्रक्रिया तथा जीवनशैलीमें भी परिवर्तन ला रहे हैं । बडे नगरोंमे यह परिवर्तन  तीव्र गतिसे हो रहा है ।
– विजया शर्मा (मासिक ‘ठेंगेपर सब मार दिया’, सितंबर २०१०)

३. स्त्रियोंकी सौंदर्यस्पर्धा, स्त्री जातिका अनादर तथा चीनी संस्कृतिके विपरीत है, कहां यह बतानेवाला संस्कृति अभिमानी चीन, तो कहां यह पद्धति हिंदू संस्कृतिद्वारा त्याज्य होनेके पश्चात भी सुधारके नामपर स्त्रियोंकी सौंदर्यस्पर्धा आयोजित करनेवाला भारत !

        ‘चीनमें आज भी स्त्रियोंकी सौंदर्यस्पर्धा नहीं होती । उनका यह दृढ मत है कि उससे स्त्री जातिका अनादर होता है तथा स्पर्धाकी यह पद्धति चीनी संस्कृतिके विरुद्ध है । भारतीय नारी भी इस प्रकार अनावृत्त होकर प्रदर्शनीमें हिस्सा नहीं लेती थी तथा वह भारतीय संस्कृतिके अनुसार भी नहीं था; किंतु जागतिक मतप्रवाहके विरुद्ध जानेके सामर्थ्य को त्यागनेवाला तथाकथित भारतीय उच्च समाज अंग्रेजीप्रेमी होनेके कारण, तथा अब बच्चोंकी शिक्षाका प्रारंभ ही अंग्रेजी समान परकीय भाषामें हो रहा है, अतः बचपनसे ही उच्च समाजमें पाश्चात्य संस्कृति तथा जीवनपद्धति व्याप्त होने लगी है । इसलिए वर्तमानकी भारतीय युवतियां जागतिक सौंदर्यस्पर्धामें हिस्सा ले रही हैं तथा वे सभी अंग्रेजीप्रेमी समाजकी ही हैं । चीनद्वारा इक्कीसवीं सदीमें विज्ञानपर आधारित सर्व सिद्धता की गई है; किंतु स्त्री इस प्रकारकी स्पर्धामें हिस्सा ले, उनकी संस्कृतिकी दृष्टिसे यह त्याज्य है; इसलिए उस राष्ट्रमें इस स्पर्धाको अस्वीकार करनेका साहस राष्ट्रमें है । हम तथाकथित सुधारके नामपर तथा भारतीयोंकी परिवर्तित मानसिकताके कारण उस स्पर्धामें हिस्सा ले रहे हैं ।’ – ग. ना. कापडी, पर्वरी, गोवा. (‘दैनिक गोमन्तक’, ११.११.१९९९)

४. पाश्चात्य शासन प्रणालका अनुकरण करनेके कारण राष्ट्रका विकृत राजनीतिकी असाध्य व्याधिसे पीडित होना तथा जीविका रहित ( बेरोजगार ) नवयुवकोंद्वारा हिंसाका मार्ग अपनाना

        ‘भारतमें आज विस्फोटक स्थिति  है । पाश्चात्य संसदीय शासनप्रणालका अनुकरण करनेके कारण हम विनाशकी सीमापर खडे हैं । संपूर्ण राष्ट्र विकृत राजनीतिकी असाध्य व्याधिसे पीडित है । देशपर भ्रष्ट एवं अपराधी राजनेता तथा पूंजीपतियोंका वर्चस्व प्रस्थापित है । इस अपवित्र गठबंधनने पहले देशके नागरिकोंका मांस भक्षण किया, तदनंतर उनका रक्त प्राशन किया तथा अब उनकी हड्डियां चबानेकी सिद्धता है । (इस अपवित्र गठबंधनने भोलीभाली जनताको अत्याचारोंके चक्रमें उलझाया है ।) अतः संपूर्ण देशमें अराजकताकी स्थिति व्याप्त है । उसमें क्षुधित तथा पहननेके लिए वस्त्रके अभाववाले जीविका रहित ( बेरोजगार ) नवयुवक अब हिंसाका मार्ग अपना रहे हैं ।

सौजन्य : दैनिक सनातन प्रभात 

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