संकट में हजारों साल पुराना ज्योतिर्लिंग !

श्रावण कृष्ण ६ , कलियुग वर्ष ५११५ 


भोले के भक्तों के लिए ये खबर मायूसी भरी है । ओंकारेश्वर के हजारों वर्ष पुराने स्वयंभू ज्योतिर्लिंग का तेजी से क्षरण हो रहा है. वजह बताई जा रही है जलाभिषेक और केमिकल मिली पूजा सामग्री का इस्तेमाल । संत, पुजारी और श्रद्धालु सब दुखी हैं । पढ़ें मुश्किल में पड़ी आस्था के बारे में ये स्टोरी…

मध्य प्रदेश के खंडवा जिले में स्थित बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक ओंकारेश्वर के हजारों वर्ष पुराने स्वयंभू ज्योतिर्लिंग में इतनी तेजी से क्षरण हो रहा है कि अब इसके अस्तित्व पर ही खतरा मंडराने लगा है । निराकार स्वयंभू ज्योतिर्लिंग के अंश टूटकर गिर रहे हैं, लेकिन इसे रोकने के कोई गंभीर प्रयास अब तक नहीं हुए हैं । संत-महात्माओं, पंडित-पुजारियों और भक्तों को इसकी चिंता सता रही है, लेकिन सरकार को इसकी कोई चिंता नहीं है ।

ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग में पहली बार जब वर्ष १९९६ में शिवलिंग का एक टुकड़ा निकलकर अलग हुआ, तब मंदिर प्रशासन का ध्यान इस ओर गया । मंदिर के मुख्य कार्यपालन अधिकारी हरिसिंह चौधरी कहते हैं, ''इसके बाद से लगातार पूजन-अभिषेक के दौरान ज्योतिर्लिंग के छोटे-छोटे अंशों के क्षरित होने की शिकायतें आती रहीं । '' भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के इंजीनियर्स, आर्कियोलॉजिस्ट और एक्सपर्ट की मदद से ५  मई, २००४ को इस पर लेप लगाकर संरक्षित किया गया । इस ताकीद के साथ कि इसे कम-से-कम एक माह पानी से बचाया जाए । जब श्रद्धालुओं को ज्योतिर्लिंग पर जलाभिषेक से रोका गया तो खासा विरोध हुआ और प्रशासन ने एक सप्ताह में ही रोक हटा ली । उसके बाद से क्षरण और तेज हो गया ।

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के असिस्टेंट सुपरिटेंडेंट इंजीनियर पंकज शरण कहते हैं, ''समय से पहले पानी डालने से ट्रीटमेंट ही बेअसर हो गया । '' शरण का कहना है कि यह ज्योतिर्लिंग सैंड स्टोन का है, जिस पर दूध, पंचामृत, फूल, बेलपत्र के चढ़ावे से यह जलाधारी में रिसकर इकट्ठा होता है । फिर सडऩे से लेक्टिक एसिड बनता है, जिसने इसे काफी नुकसान पहुंचाया । इसे और क्षरण से बचाना है तो ज्योतिर्लिंग का जलाभिषेक पूरी तरह रोकना होगा । ओंकारेश्वर षड्दर्शन संत समाज के अध्यक्ष महामंडलेश्वर स्वामी विवेकानंद पुरी इससे सहमत नहीं हैं । वे कहते हैं, ''ज्योतिर्लिंग को सर्वाधिक नुकसान केमिकल लेप से हुआ । वरना यहां तो अनादिकाल से जलाभिषेक हो रहा है । '' 


दरअसल इस मामले में खासा बवाल तब मचा, जब ट्रस्ट के तत्कालीन मुख्य कार्यपालन अधिकारी स्वामी तेजानंद ने २९ जून, २००६  को मीडिया में यह बयान देकर खलबली मचा दी कि यह ज्योतिर्लिंग खंडित हो चुका है । इसलिए इसे नर्मदा में तिरोहित कर नया शिवलिंग स्थापित किया जाना चाहिए । इस बात को लेकर सारे संत-पुजारी और श्रद्धालु आक्रोशित हो गए और ट्रस्ट की यह घोषणा करनी पड़ी कि इसी ज्योतिर्लिंग को संरक्षित किया जाएगा. मैनेजिंग ट्रस्टी राव देवेंद्र सिंह कहते हैं, ''ज्योतिर्लिंग कभी भी खंडित नहीं होता । यह कोई मूर्ति नहीं है । यह निराकार रूप में प्रकट हुए साक्षात् भोलेनाथ हैं । '' 

खंडवा के कलेक्टर नीरज दुबे कहते हैं, ''क्षरण को लेकर सभी चिंतित हैं । अब इसे शास्त्रोक्त तरीके से रोकने के उपाय जरूरी हैं । '' दरअसल अभी तक ट्रस्ट ने सतही उपाय किए, जिसमें ज्योर्तिलिंग पर पहले दूध-पंचामृत, पुष्प को  प्रतिबंधित किया गया । फिर सीधे जलाभिषेक भी । अब श्रद्धालु कलश में जल भरकर एक फाइबर के टब में उड़ेल देते हैं और फिर तांबे के पाइप से भोलेनाथ को जलधारा चढ़ती है । केरल से यहां दर्शन करने आए रामास्वामी दुखी मन से कहते हैं, ''न तो भगवान के ठीक से दर्शन हो पा रहे हैं और न ही अभिषेक । '' यहां के पुजारी डंकेश्वर दीक्षित कहते हैं, ''अब जलाभिषेक की अवधि भी सीमित कर दी गई है । इसके बावजूद क्षरण जारी है । 

द्वारका पीठाधीश्वर शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती ने स्पष्ट अभिमत दिया कि इस पर स्वर्ण या रजत का आवरण बनाकर ढक दिया जाए । फिर उस पर अभिषेक संभव है । दूसरा विकल्प यह है कि ज्योतिर्लिंग की सिर्फ त्रिकाल पूजा हो और श्रद्धालुओं के लिए पृथक शिवलिंग अभिषेक के लिए स्थापित कर लिया जाए. इधर पुजारियों का सुझाव है कि स्फटिक का पारदर्शी आवरण हो, जिससे भगवान के दर्शन संभव हों । 

इन सुझावों को ट्रस्ट ने कलेक्टर के माध्यम से प्रदेश के संस्कृति विभाग को मार्गदर्शन के लिए भेज दिया, लेकिन वहां से तीन वर्षों में भी कोई जवाब नहीं आया । इस क्षेत्र के पूर्व विधायक राजनारायण सिंह कटाक्ष करते हैं, ''मुख्यमंत्री शिवराज सिंह तीर्थयात्राएं करवाकर वोट जुटाने की जुगत में हैं, लेकिन उन्हें अपने प्रदेश के ही तीर्थस्थलों के संरक्षण में रुचि नहीं है । '' आगामी सिंहस्थ २०१६ के मद्देनजर प्रशासन ने ओंकारेश्वर के विकास के लिए १६० करोड़ रु. की भारी-भरकम योजना तो बना डाली, लेकिन ज्योतिर्लिंग के क्षरण को रोकने के लिए इसमें कोई प्रस्ताव ही नहीं है । जाहिर है भगवान की चिंता किसी को नहीं है । ''

स्त्रोत : आज तक 

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