श्रावण कृष्ण १०, कलियुग वर्ष ५११५
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सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया है कि जब तक ‘किशोर’ शब्द की व्याख्या नहीं हो जाती, तब तक दिल्ली गैंगरेप मामले में कोई फैसला नहीं सुनाया जाए । अदालत ने बुधवार को जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड (जेजेबी) को यह सूचित करने का निर्देश दिया है ।
चीफ जस्टिस पी. सदाशिवम की अध्यक्षता वाली पीठ ने जनता पार्टी के अध्यक्ष सुब्रह्मण्यम स्वामी से कहा कि वह इस मुद्दे पर जेजेबी को सूचित करे । पीठ ने इस मामले पर १४ अगस्त को अगली सुनवाई करना तय किया है ।
किशोर की तरफ से वकील अनूप भम्बानी ने स्वामी की याचिका का विरोध किया और उनकी याचिका पर जवाब देने के लिए वक्त दिए जाने की मांग की ।
केंद्र ने भी स्वामी की याचिका का विरोध करते हुए कहा कि किसी आपराधिक मामले में तीसरे पक्ष को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए ।
साथ ही इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की ओर से लिए जाने वाले किसी भी निर्णय को पहले के मामलों पर लागू नहीं किया जाना चाहिए ।
पीठ ने हालांकि कहा कि याचिका में उठाए गए मुद्दों की जांच की जरूरत है और याचिका स्वीकार कर ली गई है । याद रहे कि स्वामी ने मांग की थी कि नाबालिग अपराधियों की उम्र सीमा १८ वर्ष विचार करने के बजाए मानसिक एवं बौद्धिक परिपक्वता पर गौर किया जाना चाहिए ।
सर्वोच्च अदालत की ओर से उनकी याचिका पर सुनवाई के लिए २३ जुलाई को मंजूरी मिलने के बाद जेजेबी ने १६ दिसंबर के सामूहिक बलात्कार और हत्या मामले में किशोर के कथित तौर पर शामिल होने पर फैसला सुनाने की तारीख पांच अगस्त तक टाल दी थी ।
स्वामी ने याचिका में कहा है कि किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल एवं सुरक्षा) अधिनियम किशोर शब्द की सीधी व्याख्या करता है कि १८ साल से कम उम्र का व्यक्ति नाबालिग है ।
यह इस मुद्दे पर यूनाईटेड नेशंस कन्वेंशन फॉर द राइट्स ऑफ चाइल्ड (यूएनसीआरसी) और बीजिंग नियमों का उल्लंघन है क्योंकि यूनएसीआरसी और बीजिंग नियम कहता है कि अपराध के लिए उम्र तय करने का कार्य मानसिक और बौद्धिक परिपक्वता को ध्यान में रखते हुए किया जाए ।
स्वामी का तर्क है कि किशोर शब्द की मौजूदा व्याख्या पीड़िता के जीवन के मूलभूत अधिकार को खारिज करती है ।
स्त्रोत : अमरउजाला