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भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की निगरानी में रहते हुए मिट गया ८१ विरासतों का नामोनिशान

श्रावण कृष्ण १४ , कलियुग वर्ष ५११५


नई दिल्ली – बीजापुर का नंदिकेश्वर अभिलेख, मथुरा की ऐतिहासिक मूर्तियां व पुरालेख, अल्मोड़ा का कुतुम्बरी मंदिर, रीवा के भित्ति चित्र, यह बानगी है उन अमूल्य विरासतों की जिनका अब अता-पता नहीं है। यह सभी संरक्षित स्मारक हैं यानी भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण एएसआइ़ की निगरानी में रहते हुए इन विरासतों का नामोनिशान मिट गया। एएसआइ के पास इसका कोई पक्का हिसाब ही नहीं है कि देश में कब, कहां और कितनी विरासतें गुम हो गई हैं, क्योंकि संस्था के पास सभी धरोहरों के सही आंकड़े तक नहीं हैं।

विकसित और आधुनिक होते हुए हम, इतिहास बचाने व संजोने के बजाय बेशकीमती विरासतें गंवाने लगे हैं। स्थापना के १५० साल पूरे कर रहा एएसआइ अपने शानदार अतीत के बावजूद गहरे सवालों के घेरे में है, जो हाल में भारत के पहले पुरातात्विक ऑडिट से उठने वाले हैं। संस्कृति मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार यह रिपोर्ट भारत में विरासतों की दुर्दशा की शर्मिदगी भरी तस्वीर सामने लाएगी। गुम विरासतों के मामले में संसद से भी गलत बयानी की गई है। अप्रैल, २०१२ में एएसआइ ने संस्कृति मंत्रालय के जरिये संसद को बताया था कि केंद्रीय स्तर से संरक्षित स्मारकों की सूची में केवल ३५ स्मारकों का अस्तित्व खत्म हुआ है।

मंत्रालय व ऑडिट दस्तावेज बताते हैं कि इनकी संख्या कहीं ज्यादा है। ऑडिट टीम ने एएसआइ की संरक्षित स्मारक सूची से करीब १५०० धरोहरें चुनी थीं और मौके पर जाकर उनकी पड़ताल की। इनमें ८१ धरोहरों का नामोनिशान मिट चुका है। एएसआइ से संरक्षित स्मारकों की सूची में ३६७८ विरासतें है। अगर सभी का भौतिक सत्यापन हो, तो खोए हुए इतिहास की तादाद बड़ी होगी।

सूत्रों के मुताबिक गुम हुए जिन ८१ स्मारकों की सूचना शायद पहली बार अधिकृत रूप से सरकार को मिल रही है, उनमें सर्वाधिक विरासतें दिल्ली की हैं। संस्कृति मंत्रालय और पुरातत्व सर्वेक्षण की नाक के नीचे दिल्ली की १५ विरासतों का अस्तित्व मिट गया। इनमें बाराखंबा सेमिट्री, शेरशाह के दौर का मोती गेट, रुडयार्ड किपलिंग के उपन्यासों सहित कई मिथकों के नायक ब्रितानी सैन्य अधिकारी ब्रिग्रेडियर जॉन निकोलसन की मूर्ति शामिल है। उत्तर प्रदेश ने भी थोक में विरासतें गंवाई हैं। एएसआइ आगरा और लखनऊ सर्किल के जरिये उत्तर प्रदेश में मौजूद इतिहास की हिफाजत करता है। इस हिफाजत के बीच ही यूपी से १६ बहुमूल्य स्मारक अब वाकई इतिहास बन गए हैं। इनमें मथुरा के कीमती पुरातात्विक अभिलेख और लखनऊ व उसके आसपास कई महत्वपूर्ण स्मारक हैं। इतना ही नहीं संरक्षित स्मारकों की गणना भी ठीक नहीं है। एएसआइ की केंद्रीय वेबसाइट और सर्किलों की वेबसाइट स्मारकों की संख्या में ५५ विरासतों का अंतर है। मसलन आगरा सर्किल की वेबसाइट के संरक्षित स्मारकों की संख्या ३९७ है, जबकि एएसआइ की केंद्रीय वेबसाइट इस सर्किल में धरोहरों की संख्या २६५ बताती है।

स्त्रोत : दैनिक जागरण

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