चैत्र कृ. ११, कलियुग वर्ष ५११४
कर्नाटकमें भाजपाकी सरकारद्वारा हिंदुद्रोह
कर्नाटक – यहांका ४० वर्ष पुराना श्री प्रसन्न वीर अंजनेय हनुमान मंदिर कर्नाटक सरकारद्वारा नियंत्रणमें लिया गया है । यह कार्यवाही कर्नाटकमें भाजपाकी सरकारद्वारा शुक्रवारको दोपहरके पश्चात की गई । इस कार्यवाहीके पीछेका कारण मंदिर विश्वस्त समिति एवं कुछ स्थानीय लोगोंमें चल रहा विवाद बताया जा रहा है, परंतु इतनी तत्परतासे मंदिर अधिग्रहित करनेके पीछेका निश्चित कारण अबतक सामने नहीं आया है । यह मंदिर लाखों भक्तोंका श्रद्धास्थान है । इसलिए इस मंदिरपर सरकारद्वारा कार्यवाही करनेसे भक्त व्यथित हो गए हैं । सभीमें तीव्र रोष फैल गया है ।
मंदिर विश्वस्त समितिद्वारा सरकारका तीव्र विरोध
सरकारद्वारा की गई एकाएक कार्यवाहीसे आक्रोशित मंदिर विश्वस्त समितिद्वारा सरकारपर आरोप लगाया गया है कि मंदिर नियंत्रणमें लेनेसे पूर्व समितिको कोई पूर्वसूचना नहीं दी गई थी । यह कार्यवाही जानबूझकर शुक्रवारको की गई, जिससे शनिवार एवं रविवारको न्यायालयकी छुट्टी होनेसे हमें इस प्रकरणमें न्यायालयकी सहायता लेकर इसे स्थगित करना असंभव हो ।’ (यह सर्व कर्नाटककी भाजपा सरकारद्वारा पूर्वनियोजन कर मंदिरकी संपत्ति लूटने हेतु रचाया गया षडयंत्र ही है । अबतक मुसलमान, पुर्तगाली (पोर्तुगीज), अंग्रेज
एवं मुसलमानसमर्थक कांग्रेसी शासकोंने हिंदुओंके मंदिर लूटे थे । अब भाजपा भी हिंदुओंके श्रद्धास्थान लूटनेका काम कर रही है । हिंदुओ, ऐसे राजनेताओंको सदाके लिए हटाएं ! हिंदुओंके श्रद्धास्थानोंपर आघात करनेवाले राजनेताओंको हिंदु राष्ट्रमें कानूनके अनुसार कडा दंड दिया जाएगा ! – संपादक)
उपलब्ध जानकारीके अनुसार मंदिरके सामने एक व्यावसायिक आस्थापनका निर्माण कार्य किया जा रहा था; जिससे मंदिरकी मूर्ति मार्गसे दिखाई देनेमें अडचन उत्पन्न हो गई थी । इस विषयको लेकर मंदिर विश्वस्त समिति एवं कुछ स्थानीय लोगोंमें पिछले दो वर्षोंसे वाद-विवाद चल रहा था । तदुपरांत दोनों पक्षोंमें समझौता हुआ तथा निर्माणकार्य रोक दिया गया था । अब सरकारने विवादका कारण देते हुए यह मंदिर अपने नियंत्रणमें ले लिया है । (इसका अर्थ यह कि भाजपाने (दूसरी कांग्रेसने) दुराचारी मुसलमानोंको भी लज्जित कर दिया है । हिंदुओ, यह स्थिति परिवर्तित करने हेतु हिंदु राष्ट्र स्थापित करना अत्यंत आवश्यक है ! – संपादक)
विश्वस्त समितिको मंदिर अधिग्रहणके पीछे स्थानीय लोकप्रतिनिधियोंका हाथ होनेका संदेह !
मंदिरके कोषाध्यक्ष श्री. सुब्रमण्यम्ने कहा, ‘‘श्री प्रसन्न वीर अंजनेय हनुमान मंदिर एवं मंदिर विश्वस्त समिति वर्ष १९७३ से अस्तित्वमें है । यह कोई अनधिकृत वास्तू नहीं है । सरकारद्वारा दिए गए स्थानपर ही यह मंदिर है । शुक्रवारको दोपहर ३.२० पर २० अधिकारियोंने आकर कहा, ‘‘सरकारद्वारा यह मंदिर नियंत्रणमें ले लिया गया है ।’’ हमने जब पूछा कि मंदिर अधिग्रहित करनेके विषयमें कोई पूर्वसूचना क्यों नहीं दी गई ? तो उनके पास इसका कोई उत्तर नहीं था । रात्रि ९ बजे उन्होंने मंदिरका दरवाजा, अर्पणपेटी एवं मंदिरके साहित्यकी सूचीको सील कर दिया । अधिग्रहण जानबूझकर शुक्रवारको किया । हम सोमवारको न्यायालयमें इसके विरोधमें न्याय मांगनेवाले हैं ।’’ विश्वस्त समितिने स्थानीय लोकप्रतिनिधियोंकी सहायता लेना अस्वीकार कर दिया है । विश्वस्तोंका कहना है कि इस प्रकरणमें स्थानीय लोकप्रतिनिधियोंका भी सहभाग हो सकता है ।
स्थानीय विधायकद्वारा मंदिर सरकारीकरणका निर्लज्जतासे समर्थन
स्थानीय विधायक एन्.एल्.नरेंद्रबाबूने कहा, ‘‘मंदिर विश्वस्त समिति एवं कुछ स्थानीय लोगोंमें मंदिरकी देखभालको लेकर विवाद चल रहा था । मंदिरके सामने जो निर्माणकार्य चल रहा था, उससे अनेक लोगोंको मंदिरकी पवित्रता भंग होनेका भय था । निर्माणकार्य आरंभ होनेसे पूर्व श्रद्धालू मूर्तिके दर्शन मार्गसे भी ले सकते थे; परंतु निर्माणकार्यसे उसमें अडचन उत्पन्न हो रही थी । अतः भक्तोंद्वारा इस निर्माण कार्यपर आक्षेप लिया गया । सरकारको नागरिकोंके हितकी दृष्टिसे यह समस्या सुलझानी थी । इसके लिए मंदिर विश्वस्त समितिको निमंत्रित किया गया था; परंतु विश्वस्त मंडलद्वारा सकारात्मक प्रतिसाद न मिलनेके कारण नागरिकोंने मुझराई विभागसे संपर्क किया । मंदिर विश्वस्त मंडलके साथ सभीका हित ध्यानमें रखते हुए ही मंदिर अधिग्रहित किया गया है ।’’ (हिंदुओ, ऐसे हिंदुद्वेषी विधायकोंको ध्यानमें रखें एवं भविष्यमें होनेवाले चुनावोंके माध्यमसे उन्हें सदाके लिए हटाएं ! – संपादक)
मंदिरकी जानकारी
१३ एकड भूमिपर बसा हुआ श्री प्रसन्न वीर अंजनेय हनुमान मंदिर वहांके २२ फुट ऊंची श्री हनुमानजीकी मूर्तिके लिए विख्यात है । वर्ष १९७५ में मूर्तिकार षण्मुगानंदने यह मूर्ति वहांकी चट्टानको खोदकर बनाई है । मंदिरके आसपास नागरी बस्ती निर्माण होनेके पूर्व वहांकी चट्टानपर श्री हनुमानजीका चित्र था, जिसकी प्रतिदिन पूजा की जाती थी । वर्ष १९६० के पश्चात मंदिरका विकास हुआ । ७ जून १९७६ को एक पारंपारिक समारोहमें राज्यके मुख्यमंत्री केंगल हनुमान थैया एवं पी.वी. नरसिंहरावकी उपस्थितिमें इस मंदिरका लोकार्पण किया गया । इस मंदिरकी ओरसे नि:शुल्क रुग्णालय, वैद्यकीय चिकित्सा केंद्र, नि:शुल्क नेत्र जांच केंद्र तथा ग्रंथालय चलाए जाते हैं । इतना ही नहीं, अपितु प्रत्येक सप्ताहमें कलाकारोंको प्रोत्साहन देनेकी दृष्टिसे सांस्कृतिक कार्यक्रम भी किए जाते हैं ।
अधिग्रहणके विरोधमें हिंदु जनजागृति समितिद्वारा तीव्र प्रदर्शने
इस आंदोलनमें मंदिरके पदाधिकारी श्री. कृष्णमूर्ति, हिंदु जनजागृति समितिके श्री. चंद्रुमोगेर, सनातन संस्थाके कार्यकर्ताके साथ १०० धर्माभिमानी सहभागी हुए । इस अवसरपर कर्नाटक राज्यके हिंदु जनजागृति समितिके प्रवक्ता श्री. मोहन गौडाने कहा कि सरकारद्वारा मंदिर सरकारीकरणका समिति तीव्रतासे विरोध करती है । जबतक सरकार श्री प्रसन्न वीर अंजनेय स्वामी मंदिरको नियंत्रणमें लेनेके आदेश पीछे नहीं लेती, तबतक हिंदु धर्माभिमानी संघर्ष करते रहेंगे । यह घोर अन्याय है । यह हिंदु भक्तोंकी धार्मिक भावनाओंको आहत करनेवाला एवं संविधानद्वारा दी गई स्वतंत्रतापर आंच लानेवाला कृत्य है । सम्माननीय जनपदाधिकारीद्वारा संबंधित विषयमें बिना विश्वस्त पदाधिकारियोंको विश्वासमें लिए प्रत्यक्ष कार्यवाही करते समय नोटिस देना, कानूनका उल्लंघन ही है । समितिने मांग की है कि चूंकि यह कृत्य जनपदाधिकारीद्वारा राजनीतिक दबावमें आकर किया गया है, इसलिए सरकारद्वारा यह आदेश शीघ्र निरस्त किया जाए ।
कन्नड ‘समय’ प्रणाल (केबल)ने इस आंदोलनके समाचारको प्रकाशित किया एवं कन्नड समाचार प्रणालकी `कस्तूरी वाहिनी २४ न्यूज’द्वारा समितिके कार्यकर्ता श्री. चंद्रु मोगेरका साक्षात्कार सीधे प्रक्षेपित किया गया । एक हिंदु धर्माभिमानीने आक्रोशित होकर कहा, ‘‘तिरुपति तिरुमला मंदिर, मुंबईका श्री सिद्धिविनायक मंदिर एवं शिर्डीका श्री साईबाबा मंदिर सरकारद्वारा नियंत्रणमें लेनेके पश्चातसे वहां भारी मात्रामें भ्रष्टाचार आरंभ हो गया है । शासकीय समितियोंद्वारा मंदिरकी संपत्ति लूटी जा रही है ।’
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात