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शत्रुका पालन करना : पूरीतरह असफल परराष्ट्रनीति !

श्रावण शुक्ल ९ , कलियुग वर्ष ५११५ 

१. राष्ट्रहितका त्याग कर शत्रुको ऊधम मचानेके लिए मुक्त छोडनेवाले शासनकर्ता !


अपना पडोसी देश सज्जन, सुविद्य, सुसंस्कृत तथा सात्त्विक वृत्तिका नहीं है । वह धूर्त तथा कपटी है । उनसे लडकर उसकी दुष्ट प्रवृत्तिका नाश करनेके पश्चात ही हम चैनसे रह सकते हैं । यही पडोसीधर्म है । हम निरंतर मानवताका तथा सुसंस्कृतपनका विचार करते हैं, तथा उसके अनुसार ही आचरण करते हैं । शत्रुको छोटे भाई, सौतेले भाईके रूपमें अपनाया । उससे आवश्यकतासे अधिक प्यार किया । उसके कुकृत्योंकी ओर अनदेखा कर निरंतर मित्रताके संबंध रखनेका प्रयास किया । ऐसा करते समय राष्ट्रहितका त्याग किया । हम हमारे वीरता, पराक्रम तथा क्षात्रतेजकी परंपरा भूल गए हैं । हमने शत्रुके साथ दुर्बल, दीन तथा लाचार होकर व्यवहार किया । अतः पहलेसे ही उद्दंड शत्रुको हमारे देशमें ऊधम मचानेके लिए छूट प्राप्त हो गई । 

२. शांति एवं नि:शस्त्रीकरणका समर्थन करते रहनेके कारण शत्रुका मनोबल बढकर जनता, सेना एवं सुरक्षा दलको कमजोर बनाया गया 

हम निरंतर शांति एवं नि:शस्त्रीकरणका समर्थन करते रहे । परिणामस्वरूप हमारा यह कृत्य शत्रुको अपनेविरुद्ध कार्यवाही करनेका प्रलोभन दिखानेके समान हुआ । शत्रु धीरे-धीरे अपने देशकी भूमि हडप रहा था । उस समय उसपर लश्करी कार्यवाही कर उसपर अपना धाक साधनेकी अपेक्षा उसका समर्थन ही करते रहे । उसके लिए समितिकी स्थापना करते रहे । समाजसेवक एवं चिंतकोंको आमंत्रित कर चर्चा करने बैठे । यह मार्ग राष्ट्ररक्षाका नहीं । यह मार्ग प्राणघातक तथा देशके लिए हानिकारक है । इस मार्गसे किसी भी प्रश्नसे मुक्ति नहीं मिलेगी । इसके विपरीत  अधिकाधिक संख्यामें शत्रु बलपूर्वक हमारी भूमि अधिकारमें लेकर अपने देशकी सीमा न्यून कर रहा है । उनका मनोबल बढ रहा है तथा जनता, सेना एवं सुरक्षा दलका मनोबल न्यून हो रहा है । 
पडोसी धर्मका ही राष्ट्रके मूलपर आकर घातक सिद्ध होना : पाकिस्तानके प्रति दया करनेवाले नेता इस देशकी सत्तामें हैं । उन्हें राष्ट्रहितकी अपेक्षा पडोसी धर्म महत्त्वपूर्ण प्रतीत होता है । अतः साधारण नागरिकको यह भय लगता है कि एक दिन यह पडोसी धर्म ही राष्ट्रके मूलपर आएगा तथा राष्ट्रका विनाश करेगा । – श्री. दुर्गेश परुलकर (धर्मभास्कर, जुलाई २०११)

३. भारतपर अण्वस्त्र ही क्या, बंदूककी गोलियां मारते समय भी पाक तथा चीनके समान राष्ट्रोंको दस बार विचार करनेके लिए विवश करनेवाले कडे राजनेता ही चाहिए !


यदि किसी राष्ट्रको उसके प्रति भय उत्पन्न करना है, तो उसे आक्रामक नीतिका ही उपयोग करना पडेगा । विशेषरूपसे यदि आप पाक-चीन-बांग्लादेशके समान षड्यंत्र करनेवाले शत्रुओंसे घिरे हैं, तो आक्रामक नीतिका उपयोग न करना अर्थात आत्मविनाश करना ! इसका विचार भी नहीं कर सकते कि चीन तथा पाकके समान राष्ट्रोंद्वारा यदि भारतपर अण्वस्त्रोंके माध्यमसे आक्रमण किया गया, तो वह मुंबई, देहली, कोलकाता, लक्ष्मणपुरी (लखनऊ), जयपुर, कर्णावतीके समान नगरोंपर ही करेंगे । इनमेंसे एक नगरपर भी यदि अणुबम गिर गया, तो क्या स्थिति होगी ? 
ऐसी स्थिति उत्पन्न करनी चाहिए कि यदि देहलीके समान नगरपर बमविस्फोट हुआ, तो विस्फोट करनेवालोंपर बमविस्फोट करनेके आदेश देनेके लिए नेतृत्वको शेष रहना होगा ? इसलिए नौसेना प्रमुखको, भारतपर अण्वस्त्रोंकी बौछार करनेके पश्चात हम सक्रिय रहेंगे, यह कहनेकी अपेक्षा भारतपर अण्वस्त्र ही क्या, बंदूककी गोलियां मारते समय भी पाक तथा चीनके समान राष्ट्रोंको दस बार विचार करना पडेगा !
४. इच्छाशक्तिका अभाव होनेवाली निरर्थक परराष्ट्रनीति !

लीबियामें अराजकता उत्पन्न होनेके पश्चात वहां १८ सहस्त्र भारतीय नागरिक फंसे थे, उस समय उनकी मुक्तिके लिए विलंब करनेवाला जनताद्रोही कांग्रेस शासन 

बीचकी कालावधिमें लीबियामें मोहम्मद गद्दाफीके ४२ वर्षोंकी एकाधिकारशाहीके विरुद्ध आंदोलन आरंभ था । लीबियामें चल रहे इस संघर्षमें गद्दाफीने आंदोलनकारियोंको पूरीतरहसे जलानेकी धमकी दी । इस धमकीके पश्चात केंद्रके कांग्रेस शासनने लीबियामें फंसे हुए १८ सहस्त्र भारतीयोंको वापस लानेके लिए तीव्रगतिसे प्रयास आरंभ किए । त्रिपोलीमें स्थित भारतीयोंको वापस ले जानेके लिए दो विमान भेजे गए । विमानके साथ ही आइ.न.एस. जलश्व तथा आइ.न.एस. म्हैसूर ये दो युद्धनौकाएं भी त्रिपोलीकी ओर भेजी थीं । ये युद्धनौकाएं दस दिनोंके पश्चात लीबिया पहुंचनेवाली थीं । लीबियामें संघर्षकी स्थिति उत्पन्न होनेके पश्चात तुर्किस्तान, चीन, इजीप्त, ब्रिटेन, साथ ही अन्य कुछ राष्ट्र भी अपने नागरिकोंको लेकर स्वदेश गए; किंतु भारतके कांग्रेस शासनने यह निर्णय लेनेमें अपेक्षासे अधिक विलंब किया । 

५. पाकिस्तान तथा चीनकी ओरसे निरंतर भारतविरोधी कार्रवाई हो रही थी, ऐसे समय उनसे सौहार्दताके संबंध प्रस्थापित होंगे, इस भ्रममें रहनेवाले नादान सुरक्षामंत्री !


भारतको चीन तथा पाक, इन पडोसी राष्ट्रोंके साथ ही सभीसे सौहार्दके संबंध प्रस्थापित करने हैं । भारतको यह विश्वास है कि पडोसी राष्ट्रोंके साथ होनेवाले विवाद चर्चाके माध्यमसे दूर हो जाएंगे । ३०.३.२०११ को भारत-पाक क्रिकेट सामनाके समय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह तथा पाकके प्रधानमंत्री युसूफ रजा गिलानीकी मोहालीमें हुई भेंट केवल भारत-पाकमें होनेवाले संबंध सुधारनेवाला नहीं, अपितु वह तो एक अच्छा आरंभ है । – ए.के. एंथनी, सुरक्षामंत्री

स्त्रोत – दैनिक सनातन प्रभात

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