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सांप्रदायिक उपद्रवकी आंच केवल अल्पसंख्यकोंपर नहीं आती !

वैशाख शु. ३, कलियुग वर्ष ५११४

हिंदुविरोधी कानून बनानेवाली कांग्रेस सरकारको मुसलमानोंद्वारा करारा तमाचा !

धार्मिक एवं लक्ष्यित हिंसा (प्रतिबंधक) विधेयकके उद्देश्यपर प्रश्नचिन्ह !

इंद्रप्रस्थ (नई दिल्ली), २३ अप्रैल (वृत्तसंस्था) – कांग्रेस पक्षकी राष्ट्रीय अध्यक्षा श्रीमती सोनिया गांधीद्वारा प्रधानपद विभूषित राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहगार परिषदद्वारा ‘धार्मिक एवं लक्ष्यित हिंसा (प्रतिबंधक) विधेयक’ बनाया गया है । इस विधेयकमें ‘जातीय उपद्रवमें मुख्य रूपसे अल्पसंख्यंक एवं पिछडी जातिके लोगोंको लक्ष्य किया जाता है ऐसी कल्पना कर ‘ग्रुप’ शब्दका उपयोग किया गया है । इसपर ५४ स्वयंसेवी संगठनोंके प्रतिनिधियोंद्वारा आक्षेप अंकित किया गया है ।

‘सांप्रदायिक उपद्रवमें केवल अल्पसंख्यंकोंपर आंच नहीं आती’, ऐसी भूमिका इन संगठनोंमें एक ‘जम्मत-ए-उलेमा-ए-हिंद’ संगठनके नियाज-ए-फारुखीने प्रस्तुत की है । (इस्लाम धर्मकी एक सामाजिक संगठनको यह बात समझमें आती है; परंतु केंद्रसरकारको नहीं । इससे यह स्पष्ट होता है कि यह कानून केवल हिंदुओंके विरोधमें बनाया गया है ! – संपादक)

नियाज-ए-फारुखीने कहा, ‘‘राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार परिषदने ‘ग्रुप’ शब्दसे कल्पना की है कि सांप्रदायिक उपद्रवसे बहुसंख्यकोंपर कभी आंच नहीं आती, इस बातमें कोई सार नहीं है । सांप्रदायिक उपद्रवमें मुस्लिम बहुल क्षेत्रमें हिंदुओंको लक्ष्य किया जाता है, तो कानूनकी दृष्टिसे यह भी आपत्तिजनक होना चाहिए, क्योंकि उस क्षेत्रकी हदतक हिंदु अल्पसंख्यक होते हैं ।’’ इन संगठनोंद्वारा इस विधेयकमें सुधार सुझाया गया है, जिसमें कहा गया है कि सर्वप्रथम सांप्रदायिक उपद्रव रोकनेमें असफल पुलिस अधिकारियोंको उत्तरदायी सिद्ध कर उनपर भी आपराधिक (फौजदारी) कार्यवाही करें ।

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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