भाद्रपद कृष्ण १३, कलियुग वर्ष ५११५
कटक नगरके मंदिर तथा मूर्ति गिराते हुए तथा गिरानेके पश्चात लिए गए कुछ छायाचित्र |
श्री. अनिल धीर |
जनवरी २०११ में ओडिशा राज्यकी सांस्कृतिक राजधानी कटक नगरकी २०७ धार्मिक वास्तुओंको शासकीय स्थानपर निर्माण किए जानेका कारण देकर ओडिशा उच्च न्यायालयने उन्हें गिरानेका निर्णय दिया । निर्णयानुसार मई २०१३ में स्थानीय प्रशासनने मंदिर गिरानेका उपक्रम हाथमें लिया । एक एक कर मंदिर गिरानेके पश्चात स्थानीय हिंदू तथा मंदिरके न्यासी जागे तथा उन्होंने सर्वोच्च न्यायालयमें जाकर उच्च न्यायालयके निर्णयपर तात्कालिक प्रतिबंध प्राप्त किया । इस विषयमें ओडिशाके हिंदुत्ववादी तथा ज्येष्ठ वार्ताकार श्री. अनिल धीरका लेख प्रसिद्ध कर रहे हैं ।
१. २००९ में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गुजरातमें धार्मिक स्थल गिरानेके विषयमें दिया गया निर्णय
२.५.२००६ को ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ नियतकालिकके कर्णावती संस्करणमें प्रसिद्ध एक वृत्तमें कहा गया था कि गुजरात उच्च न्यायालयने गुजरातमें अवैध पद्धतिसे निर्माण किए गए हिंदुओंके १ सहस्र २०० मंदिर एवं २६० मस्जिदें गिरानेका आदेश दिया है । इसमें सर्वोच्च न्यायालयने स्वयं हस्तक्षेप कर गुजरात उच्च न्यायालयके आदेशको स्थगन दिया है ।
२९.९.२००९ को सर्वोच्च न्यायालयके दिए निर्णयमें सारे राज्य तथा केंद्रशासित प्रदेशोंको आदेश दिया कि ८ सप्ताहमें अपने-अपने प्रदेशमें अवैध पद्धतिसे निर्माण किए गए धार्मिक भवनोंकी विस्तृत सूची भेजें । इस निर्णयमें कहा गया है कि अबसे आगे शासकीय अथवा सार्वजनिक स्थानपर कोई भी धार्मिक वास्तुका निर्माण न करे तथा सारे राज्योंके मुख्य सचिव अपने-अपने राज्योंके जिलाधिकारियोंको इस विषयमें त्वरित सूचित करें । साथ ही वे ४ सप्ताहमें अपने-अपने प्रदेशमें अवैध पद्धतिसे निर्माण किए गए धार्मिक वास्तुओंकी विस्तृत सूची भेजें ।
इसके पश्चात कई राज्योंने समय समाप्त होनेपर भी सर्वोच्च न्यायालयको अपने राज्यके अवैध धार्मिक वास्तुओंकी सूची नहीं भेजी । इस विषयमें १७.१२.२००९ को सर्वोच्च न्यायालयने पुन: निर्णय दिया कि सारे राज्य २७.१.२०१० तक अपनी-अपनी सूची भेजें । निर्णयके अंतमें स्पष्ट कहा गया है कि विषयका गांभीर्य देखते हुए इस निर्णयके अतिरिक्त देशका अन्य कोई भी न्यायालय दूसरा आदेश न दे ।
२. ओडिशा राज्यप्रशासनद्वारा की गई कार्यवाही
इसके पश्चात ओडिशा राज्यप्रशासनने सारे जिलाधिकारी एवं संबंधित प्रशासकीय अधिकारियोंको सूचित किया कि हर जिलेके अवैध धार्मिक वास्तुओंकी प्रत्यक्ष जांच पडताल कर विस्तृत सूची तैयार कर प्रशासनको भेजे । तदनुसार ओडिशा राज्यमें १५, सहस्र अवैध धार्मिक वास्तुओंकी सूची बनाई गई ।
३. ओडिशा उच्च न्यायालयने अवैध धार्मिक वास्तु गिरानेका निर्णय दिया ।
इसी समय कटक शहरमें अवैध निर्माण किए धार्मिक वास्तुओंके कारण ओडिशा उच्च न्यायालयमें नगरके वाहन संचारमें बाधा आनेके ४ अलग-अलग परिवाद प्रविष्ट किए गए थे । इस विषयमें जनवरी २०११ में ओडिशा उच्च न्यायालयने कटक नगरके अवैध धार्मिक वास्तुओंकी सूची बनाकर उन्हें गिरा दिया जाए, प्रशासनको ऐसा आदेश दिया ।
४. ओडिशा प्रशासन एवं उच्च न्यायालय द्वारा की गई अक्षम्य चूक !
जनवरी २०११ में ओडिशा उच्च न्यायालयके अंतरिम निर्णयके विषयमें ओडिशा प्रशासनने त्वरित कटकके जिलाधिकारियोंको २०७ अवैध धार्मिक वास्तु गिरानेका आदेश दिया । २०७ अवैध धार्मिक वास्तुओंमें हिंदुओंके २०४ मंदिर, मुसलमानोंकी २ मस्जिदें एवं १ गिरिजाघरका अंतर्भाव था । इस समय ओडिशा प्रशासनने सर्वोच्च न्यायालयका आदेश, तथा उसके पश्चात सर्वोच्च न्यायालयमें प्रस्तुत किए गए ब्यौरेके विषयमें उच्च न्यायालयको सूचित नहीं किया । तथा उच्च न्यायालयने भी सर्वोच्च न्यायालयके निर्णयका सम्मान नहीं किया ।
५. हिंदुओंकी ३० धार्मिक वास्तु गिरानेपर मंदिरोंके न्यासी तथा कुछ स्थानीय हिंदुओंनेसंगठित होकर मंदिरोंकी रक्षा हेतु ‘धर्मानुष्ठान सुरक्षा समिति’ संगठनकी स्थापना की !
१.५.२०१३ को कटक जिला प्रशासनने कटक नगरके मंदिर गिरानेका उपक्रम आरंभ किया । अगले दो दिनोंमें संपूर्ण कटक नगरमें संचारबंदीका वातावरण उत्पन्न हो गया । २ दिनोंमें ८ धार्मिक वास्तु गिराई गई । विविध मंदिरोंके न्यासी, श्रद्धालु, विविध भजन मंडल, दुर्गापूजा मंडलोंने मंदिरमें जाकर आंदोलन किए; किंतु प्रशासनने पुलिसकी सहायतासे आंदोलन कुचलकर ८ धार्मिक वास्तु गिराई । तदुपरांत प्रशासनने २२.५.२०१३ तक कुल ३० धार्मिक वास्तु गिराई । इस कालावधिमें विविध मंदिरोंके न्यासी तथा कुछ स्थानीय हिंदुओंने संगठित होकर मंदिरोंकी रक्षा हेतु ‘धर्मानुष्ठान सुरक्षा समिति’ नामका संगठन स्थापित किया ।
६. मंदिरोंकी रक्षा हेतु तत्परतासे कृत्य करनेवाले कुछ भक्त !
कटक नगर स्थित खाननगरके हर परिवारके अर्पणसे हाल ही में शिर्डीके श्री साईबाबाका मंदिर निर्माण किया गया है । दूसरे दिन मंदिर गिराने हेतु प्रशासन तथा पुलिसके आनेकी बात सामने आनेपर वहांके श्रद्धालुओंने निश्चित किया कि हर परिवारसे एक सदस्य मंदिर रक्षा हेतु आएगा । वहांके २ सहस्र ५०० श्रद्धालुओंने रातसे मंदिरमें बैठकर भजन कीर्तन किया । दूसरे दिन अनेक प्रयासोंके पश्चात श्रद्धालुओंको वहांसे हटानेमें पुलिस एवं प्रशासनके असफल होनेसे मंदिर गिरानेपर कानून एवं सुव्यवस्था रखना संभव नहीं होगा, यह कारण देकर उन्होंने मंदिर गिरानेका निर्णय निरस्त किया । (संदर्भ : टाईम्स ऑफ इंडिया, भुवनेश्वर संस्करण , २३.५.२०१३)
७. सर्वोच्च न्यायालयद्वारा मंदिर गिरानेपर प्रतिबंध लगाना
इसके पश्चात ४ मंदिरोंके न्यासियोंने कुछ हिंदुत्ववादी अधिवक्ताओंकी सहायतासे सर्वोच्च न्यायालयमें ओडिशा उच्च न्यायालयके निर्णयके विरुद्ध याचिका प्रविष्ट की । २५.५.२०१३ को सर्वोच्च न्यायालयने ये ४ मंदिर गिरानेपर तुरंत प्रतिबंध लगाया । इससे नींद खुलनेपर ओडिशा प्रशासनने दूसरे दिन अर्थात २६.५.२०१३ को मंदिर गिरानेका उपक्रम निरस्त किया ।
८. सुप्रसिद्ध गुंडिचा मंदिर अवैध बताकर धराशाई करना तथा प्रशासनको अपनी चूक ध्यानमें आनेपर पुनर्निर्माण हेतु (जनताके ) १६ से २० कोटि रुपयोंकी आवश्यकता ध्यानमें आना !
ओडिशाकी सांस्कृतिक राजधानी जिसकी पहचान है, उस कटक नगरमें सुप्रसिद्ध गुंडिचा मंदिर है । संपूर्ण विश्वमें पुरीके गुंडिचा मंदिरके पश्चात दूसरा गुंडिचा मंदिर केवल कटकमें है । रथयात्राके समय कटक तथा पंचक्रोशीसे लाखों श्रद्धालु इस मंदिरमें आते हैं । मंदिरका कुछ हिस्सा अवैध बताकर प्रशासनने मंदिर धराशाई कर दिया । मंदिरके परिसर स्थित २० फीटकी हनुमानमूर्ति तोड दी गई । मंदिर परिसरसे हनुमान मंदिर गिराते समय मूर्तिको रस्सीसे बांधकर खींचा गया । मंदिर प्रांगण स्थित सारे छोटे मंदिर एवं अन्य वास्तु तोडी गई । अब प्रशासन अपनी चूक जाननेके पश्चात गुंडिचा मंदिरके पुनर्निर्माणका विचार प्रस्तुत कर रहा है । प्रशासनको मंदिरका पुनर्निर्माण करने हेतु (जनताके)न्यूनतम १६ से २० कोटि रुपए व्यय होनेवाले हैं ।
९. कटक स्थित मंदिर गिराए जानेपर बलाढ्य हिंदू संगठनोंकी निष्क्रियता एवं हिंदुत्ववादी नेताओंका सबकुछ घटित होनेके पश्चात वहां पहुंचना !
१.५.२०१३ को कटक स्थित मंदिर गिरानेका आरंभ करनेपर अगले २२ दिनोंमें प्रशासनने ३० धार्मिक वास्तु धराशाई कर दी । उस समय प्रशासनका विरोध करने हेतु जो हिंदू रास्तेपर आए, उनमें मंदिरके न्यासी तथा मंदिरके निकट रहनेवालोंकी संख्या अधिक थी । कोई भी हिंदुत्ववादी नेता अथवा बलाढ्य हिंदुत्ववादी संगठन आगे नहीं आए । २२ दिनोंकी कालावधिमें एक भी हिंदुत्ववादी नेता अथवा बलाढ्य हिंदुत्ववादी संगठनने निषेध तक नहीं दर्शाया । २२.५.२०१३ के पश्चात ४ मंदिरोंके न्यासियोंने सर्वोच्च न्यायालय जाकर प्रतिबंध प्राप्त किया । स्थानीय भाजपा नेता श्री. समीर डेने घोषित किया कि हिंदुत्ववादी अधिवक्ताओंकी सहायतासे सर्वोच्च न्यायालय जाकर उच्च न्यायालयके अनुचित निर्णयके विरुद्ध अभियोग चलाएंगे ।
गोवर्धनपीठके शंकराचार्यद्वारा व्यक्त मत – ओडिशा उच्च न्यायालय मंदिरके संदर्भमें अभियोग चलाते समय पुरी शंकराचार्यका निर्णय अंतिम माननेवाले कोलकाता उच्च न्यायालयका आदर्श सामने रखे !
प्रशासनने कटकके मंदिर गिरानेका निण देकर हिंदुओंकी श्रद्धाओंका ही भंजन किया है । प्रशासन एवं न्यायालय अपनी मर्यादामें रहकर कार्य करें । जिन विषयोंके संदर्भमें भारतीय संविधान कुछ नहीं बता सकता, उन विषयोंमें प्रशासन हस्तक्षेप न करे । मंदिर तथा मठके संदर्भमें सारे निर्णय उस प्रदेशके शंकराचार्य अर्थात धर्मगुरुके अधीन होते हैं । श्रद्धास्थानोंका संविधान (व्यवस्था) धर्मशास्त्र है तो उससे भारतीय संविधान कैसे संबद्ध हो सकता है ? प्रशासन मेरे कहनेपर आपत्ति उठाएगा, यह मैं जानता हूं । मैं कारागृहसे डरता नहीं, अत: मैं उस विषयमें बात कर सकता हूं ।
ओडिशा उच्च न्यायालय अपने समक्ष कोलकाता उच्च न्यायालयका आदर्श रखे । कुछ वर्ष पूर्व कोलकाता उच्च न्यायालयने एक मंदिरके संदर्भमें अभियोगकी सुनवाई करते हुए कहा था कि इस सूत्रपर पुरी शंकराचार्यका निर्णय अंतिम होगा तथा उच्च न्यायालय उसे मानेगा । ओडिशा प्रशासन तथा उच्च न्यायालय यह जान ले कि भारतीय न्यायव्यवस्था तथा भारतीय संविधान स्थापित होनेसे पूर्व इस देशमें मंदिर हैं । उस समय जैसे मंदिरोंसे धर्मशासन संबद्ध था, आज भी वैसा ही होना आवश्यक है । प्रशासन हिंदुओंकी श्रद्धाओंका भंजन करना तुरंत रोके ।
– शंकराचार्य श्री निश्चलानंद सरस्वती, पूर्वाम्नाय गोवर्धनपीठ, जगन्नाथपुरी.
मंदिरोंके स्थानपर अनुचित व्यवहार करनेवाले हिंदू मंदिरोंके न्यासी !
कटक नगरके कुछ स्थानोंपर मंदिरोंके परिसरमें न्यासियोंने अवैध निर्माणकार्य किया है । दुकानें भाडेपर देकर वे धनार्जन कर रहे हैं । कुछ ंिहंदुओंने दुर्गापूजाके नामपर नगरके प्रमुख रास्तोंके निकट अवैध पद्धतिसे पूजा मंडपोंका निर्माण किया है । – श्री. विनायक शानभाग, भुवनेश्वर, ओडिशा, १५.६.२०१३.
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात