अमेरिका ने रखी एक शर्त, अगर मान गया सीरिया तो नहीं होगा हमला

अद्ययावत


अमेरिका ने रखी एक शर्त, अगर मान गया सीरिया तो नहीं होगा हमला

११ सितंबर २०१३

वाशिंगटन – अमेरिका ने बशर अल-असद सरकार द्वारा रासायनिक हथियार सौंपने की स्थिति में हमला नहीं करने की बात कही है। अमेरिकी विदेश मंत्री जान केरी ने सैन्य के बजाय राजनीतिक तरीके से सीरियाई संकट के समाधान की इच्छा जताई है। दूसरी ओर, सीरियाई राष्ट्रपति असद ने हमले की सूरत में अमेरिका और उसके सहयोगी देशों को जवाब में 'हर कार्रवाई' के लिए तैयार रहने की चेतावनी दी है।

सीरिया पर हमले के लिए बढ़ता जा रहा समर्थन

सोमवार को लंदन में ब्रिटिश समकक्ष विलियम हेग के साथ बैठक के बाद केरी ने कहा, 'मैं स्पष्ट करना चाहता हूं, अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा, मैं और अन्य सभी सीरिया संकट के राजनीतिक समाधान पर सहमत हैं। सैन्य कार्रवाई कोई हल नहीं है, हमें इस बारे में कोई गलतफहमी नहीं है। सीरिया संकट का हल बातचीत की मेज पर ही निकलेगा। यदि असद सरकार एक सप्ताह के भीतर रासायनिक हथियारों को सौंप दे तो हमले को रोका जा सकता है।' केरी ने यह भी स्पष्ट किया कि अगर अमेरिका को हमला करना पड़ा तो यह अविश्वसनीय रूप से सीमित होगा। उन्होंने कहा, 'मुझे नहीं लगता कि हमें हमले से बचना चाहिए, कार्रवाई नहीं करना, कार्रवाई से ज्यादा जोखिम भरा है। अगर एक पक्ष [असद] को लगता है कि वे अपने असंख्य नागरिकों को खत्म कर सकते हैं तो वे बातचीत की मेज पर कभी नहीं आएंगे।'

साइबर हमला भी कर सकता है अमेरिका

ओबामा अगले दो दिन मीडिया के सामने युद्ध से डर रहे अमेरिकियों को इस पर राजी करने का प्रयास करेंगे कि देश की लंबी अवधि की सुरक्षा के लिए सीरिया पर हमला जरूरी है। अमेरिका का आरोप है कि असद शासन ने 21 अगस्त को रासायनिक हमला किया, जिसमें 400 बच्चों सहित 1429 लोग मारे गए। हालांकि सीरिया ने इससे इन्कार किया है।

सीरिया पर हमले का विरोध कर रहे रूस ने कहा है कि इससे क्षेत्र में आतंकवाद भड़क सकता है। इस बीच, असद ने चेताया कि अगर ओबामा सीरिया पर सैन्य हमला करने का फैसला करते हैं तो अमेरिका और उसके सहयोगी देशों को जवाब में 'हर कार्रवाई के लिए' तैयार रहना चाहिए।

स्त्रोत : जागरण


तीसरे विश्व युद्ध की आहट : सीरिया में युद्ध करने पर उतारू अमेरिका, शुरू हुई गुटबंदी

४ सितंबर २०१३


एक सीमित युद्ध की घोषणा बड़े खतरे की आहट सुना रही है। सीरिया में लोकतंत्र की बहाली और इंसानियत की हिफाजत के नाम पर अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा सीरिया पर हमले की बात कर रहे हैं। दूसरी तरफ सीरियाई राष्ट्रपति बशर अल-असद भी ताल ठोंक रहे हैं कि हमको कमजोर मत समझना ।

अगर युद्ध हुआ तो भारत पर भी असर पड़ेगा। और अगर युद्ध का दायरा बढ़ गया तो यह युद्ध तीसरे विश्व युद्ध की शक्ल भी ले सकता है ।

अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ९ सितंबर का इंतजार कर रहे हैं, जब अमेरिकी सीनेट में सीरिया पर बहस और मतदान होगा । जहां ओबामा युद्ध का मन बना चुके हैं, वही सीरिया के पक्ष में युद्ध को टालने के लिए रूस भी सक्रिय हो गया है । बाकी कई देशों में भी खेमेबंदी शुरू हो गई है ।

इंग्लैंड, फ्रांस की मौन सहमति, रूस सीरिया के पक्ष में

उन्माद, आक्रोश. स्वार्थ और कूटनीति के एक ऐसे मुहाने पर सीरिया खड़ा हैं, जहां जाने वाले हर रास्ते युद्ध की डुगडुगी बजा रहे हैं. अमेरिका युद्ध की पूरी तैयारी करके बैठा है । इंग्लैंड की मौन सहमति है । फ्रांस अमेरिका से कदमताल मिला रहा है । रूस बीच का रास्ता निकालना चाहता है और चीन दबा-छुपा विरोध कर रहा है । संयुक्त राष्ट्र इन सबके बीच चकरघन्नी बने फैसला नहीं कर पा रहा है कि करना क्या है । लेकिन लड़ाई के लिए कमर कस चुके दुनिया के रणवीरों के बीच सीरिया अमेरिका की चौधराहट का विरोध कर रहा है ।

ये सही है कि सीरिया के लोगों ने राष्ट्रपति असद के केमिकल हथियारों का दर्द और दंश भोगा है । लेकिन वो लोग नहीं चाहते कि अमेरिका उस दास्तां को दोहराए, जिसे दस साल पहले इराक ने भुगता था । उनका विरोध राजधानी दमिश्क की सड़कों पर बैनर-पोस्टर के साथ साफ दिख रहा है ।

सीरिया का सवाल पूरी दुनिया के माथे पर चिपका हुआ है । सवाल यह है कि क्या सीरिया के बहाने खाड़ी युद्ध पार्ट-3 की घड़ी आ गई है? क्या सीरिया का सवाल तीसरे विश्वयुद्ध की आहट सुना रहा है?

इस बीच खबर आई कि भूमध्यसागर से सीरिया पर दो-दो मिसाइल दागे गए । ये खबर रूस से आई, लेकिन जल्द ही इसका खंडन भी हो गया. अमेरिका ने कहा- हमने नहीं दागा । नाटो बोला-हमें तो पता ही नहीं । लेकिन ये तो सबको पता है कि सीरिया अगले युद्ध का मैदान बन सकता है । ऐसी नौबत ना आए, इसके लिए रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन बातचीत की दुहाई दे रहे हैं ।

शांति की रट सबने लगा रखी है, लेकिन युद्ध की तैयारी भी हो चुकी है. सीरिया के पास भूमध्यसागर और लाल सागर में लड़ाकू पोतों ने डेरा डाल दिया है. उस पर से फ्रांस भी सीरिया पर हमले के पक्ष में है. बस उसे अमेरिका के हमले का इंतजार है ।

जीन-मार्क आरॉल्ट फ्रांस के प्रधानमंत्री हैं और उनका कहना है कि फ्रांस सीरिया के राष्ट्रपति बशर असद द्वारा इस्तेमाल किए गए केमिकल हथियारों के खिलाफ कार्रवाई में साथ देगा ।

माहौल दोनों तरफ से गर्म है

सीरिया के पक्ष में ईरान खड़ा है तो चीन और रूस भी खिलाफ नहीं हैं । दूसरी तरफ अमेरिका, फ्रांस और इजरायल जैसे देश पूरी तरह सीरिया पर हमले के पक्षधर हैं. खाडी देशों में तुर्की और जॉर्डन का समर्थन है. इन सबके बीच इंग्लैंड का नैतिक समर्थन जारी है । ईरान ने तो यहां तक धमकी दी थी कि अगर अमेरिका सीरिया पर हमला बोलता है तो वह इजरायल पर हमला बोल देगा. इन सबके बीच अमेरिका के निशाने पर सीरिया के कुछ अहम ठिकाने हैं ।

अमेरिका के निशानों में सीरिया का राष्ट्रपति भवन, राष्ट्रीय सुरक्षा मंत्रालय, रक्षा मंत्रालय, स्पेशल फोर्स कमांड, रिपब्लिकन गार्ड और दमिश्क एयरपोर्ट सबसे अहम हैं ।

रूस और चीन अमेरिका को समझा रहे हैं. लिहाजा युद्ध का खतरा तब ज्यादा बढ़ जाएगा, जब राष्ट्रपति असद अपने मिसाइलों से हमला शुरू करेंगे, जिन पर रासायनिक हथियार भी लोड किये जा सकते हैं । सीरियाई राष्ट्रपति ने भी धमकी दी है कि मेरे देश पर किसी भी हमले का अंजाम बहुत बुरा होगा । यहां युद्ध छिड़ सकता है और एक बार जब बारूद का ढेर फटा तो हालात नियंत्रण से बाहर चले जाएंगे ।

सीरिया में रासायनिक हथियारों के इस्तेमाल से सैकड़ों बेगुनाह मारे गए थे । इसके खिलाफ अमेरिका सीरिया पर युद्ध का दबाव बना रहा है । इसके लिए सीरिया के आस-पास कई समुद्री इलाकों में अमेरिका के वार फ्लीट्स तैयार हैं ।

ओबामा ने कहा था- शांति की राह पर चलेंगे

बराक ओबामा युद्ध के साए से अमेरिका को निकालकर शांति की पगडंडी पर बढ़ाना चाहते थे । कहा तो यही था. बस शांति का राग ही अलापा था कि नोबेल पुरस्कार बांटने वालों को ओबामा में शांति का मसीहा नजर आने लगा और इन्हें नोबेल पुरस्कार भी थमा दिया, लेकिन जुबान से उड़ने वाले शांति के कबूतरों में अब युद्ध के बारूद भरने लगे हैं । जॉर्ज बुश और जॉर्ज बुश जूनियर से अलग अमेरिका काकी राजनीति को विस और शांति के खंभों से बांधने की बात करने वाले ओबामा अपने देश की संसद को समझाने में लगे हैं कि सीरिया पर हमला क्यों जरूरी है, लेकिन ओबामा की युद्ध नीति अमेरिका के ही गले नहीं उतर रही ।

इस बीच अमेरिका ने सीरिया के इर्द-गिर्द अपने हथियारों की तैनाती कर दी है । एड्रियाटिक सी में चार डिस्ट्रॉयर तैनात कर दिए गये हैं, जिनमें हर एक पर ९० टोमाहॉक क्रूज मिसाइल रखे हुए हैं । वहीं लाल सागर में विमानवाहक पोत यूएस हैरी एस ट्रूमन तैनात कर दिया गया है । लाल सागर और अरब सागर के बीच यमन के पास जंगी जहाजों की तैनाती हो चुकी है, जिसमें फाइटर बॉम्बर रखे गए हैं । अरब सागर में विमानवाहक पोत यूएएस निमिट्ज की तैनाती हो रखी है तो फारस की खाड़ी में डाहरान एयरबेस पर अमेरिकी विमान हैं ।

इनके अलावा फांस और नाटो की फौज तो है ही, जबकि खाड़ी देशों में तुर्की का खुला साथ है, लेकिन अपने देश में ही ओबामा के हाथ आधे बंधे और आधे ही खुले हैं. लड़ाई रिपबल्किन बनाम डेमोक्रेटिक हो गयी है ।

सीरिया के पास भी पावर है

सीरिया के पास जमीन से हवा में मार करने वाली करीब ९०० मिसाइलें हैं, जबकि ४००० से ज्यादा एंटी-एयरक्राफ्ट गन हैं. उन रासायनिक हथियारों को भी नजरअंदाज नहीं जा सकता, जिनकी मार से सीरिया में १४०० से ज्यादा लोग अपनी जान गंवा चुके हैं ।

हमले की कोशिश के पीछे असली सच 'तेल का खेल'

अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा सीरिया के खिलाफ युद्ध पर आमादा दिख रहे हैं । जो वजह बतायी जा रही है, वो नैतिकता के ऊंचे मूल्यों की दुहाई है. लेकिन सीरिया में लोकतंत्र की स्थापना की वजह के पीछे असली खेल तो तेल का है ।.

सीरिया भयंकर गृह युद्ध की चपेट में है । घर के इस झगड़े में जब रासायनिक हथियारों का इस्तेमाल शुरू हुआ तो मौत सीरिया की सड़कों पर नंगा नाच करने लगी. २१ अगस्त को रासानयिक हथियारों का ऐसा इस्तेमाल शुरू हुआ, जिसमें १४०० से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं और इनमें ४०० से ज्यादा अबोध बच्चे है । अब भी यहां सुन्नी, अलावाइट और ईसाइयों का आपसी संघर्ष जारी है, जिसके चलते अब तक करीब २० लाख लोग दूसरे देशों की तरफ भाग रहे हैं ।

बस इसी आधार पर मुफ्त में मसीहा बनने चले ओबामा अमेरिका पर हमला बोलने की बात कर रहे हैं, लेकिन जानकारों के मुताबिक हमले के पीछे का सच कुछ और है । पेट्रोलियम भंडार के मामले में सीरिया दुनिया का 33वां सबसे बड़ा देश है. यहां २५० करोड़ बैरल तेल मौजूद है. अमेरिका की नजर उसके तेल पर है ।

दुनिया देख चुकी है कि १९९१ और २००३ के खाडी युद्ध में भी अमेरिका की क्या चाल रही है । दस साल बाद वही चाल सीरिया में दोहराने की कोशिश हो रही है, लेकिन खतरा ये है कि कहीं पेट्रोल में लगी आग से दुनिया ना झुलसने लगे ।

तो भारत की हालत और खराब हो जाएगी

रूस समेत कई देश इस कोशिश में जुटे हैं कि सीरिया में युद्ध की नौबत ना आए ।फिर भी अगर युद्ध हुआ तो खाड़ी देशों में लड़ाई की चिंगारी ही पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों में आग लगा देगी. ऐसी स्थिति में भारत पर भी बुरा असर पड़ सकता है ।

जब रुपया लुढ़कता है, डॉलर चढ़ता है, जब खाड़ी देशों में कोहराम मचता है, तब हिंदुस्तान में डीजल-पेट्रोल के दाम में आग लग जाती है । इसीलिए अगर सीरिया में युद्ध की नौबत आई तो खतरा हिंदुस्तान पर भी पड़ेगा. पेट्रोल का मीटर और तेजी से ऊपर भागेगा ।

इस बीच विदेश मंत्रालय की तरफ से संतुलित बयान आया है. इस संघर्ष का कोई सैनिक समाधान नहीं हो सकता. हम लगातार इस समस्या के राजनितिक हल के लिए इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस ऑन सीरिया (जेनेवा-२) का समर्थन करते हैं जिसमें सीरिया सरकार और विरोधियों को बातचीत की मेज पर लाया जा सके ।

माना जा रहा है कि जरूरी पड़ा तो रूस और चीन सीरिया के लिए फौजी मदद भी भेज सकते हैं, लेकिन इससे खतरा ये है कि कहीं लड़ाई का दायरा काफी बड़ा ना हो जाए और दुनिया के तमाम देश इसमें ना आ जाएं ।

तो फिर ९ सितंबर तक का इंतजार कीजिए, जब अमेरिकी संसद में सीरिया पर कार्रवाई प्रस्ताव को लेकर बहस और मतदान होने वाला है ।

स्त्रोत : आज तक


ओबामा का सीरिया पर हमले का फैसला, कांग्रेस की मंजूरी का इंतजार

३ सितंबर २०१३


वाशिंग्टन – अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा सीरिया पर हमले का फैसले कर चुके हैं, लेकिन इसके लिए वह अमेरिकी कांग्रेस से भी मंजूरी लेना चाहते हैं। ओबामा ने कहा कि अमेरिकी सैन्य कार्रवाई का उद्देश्य सीरिया को भविष्य में रासायनिक हथियारों के इस्तेमाल के प्रति चेताना और उसकी क्षमता को घटाना है।

सीरिया में हमले को लेकर ओबामा ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को एक तरफा कर दिया हैं। ओबामा का कहना हैं कि सीरिया में रसायनिक हमला मानवता पर हमला है। इसलिए इसके खिलाफ कड़े कदम उठाने की जरूरत हैं। हालांकि इस बारे में सीरिया के प्रधानमंत्री वाएल-अल-हलकी ने कहना हैं कि वह पश्चिमी देशो के हर हमले का जवाब देने के लिए पूरी तरह तैयार है।

जबकि अमेरिका में ओबामा के फैसला के कड़ा विरोध शुरू हो गया हैं। व्हाइट हाउस के सामने हजारों लोगों ओबामा प्रशासन के खिलाफ नारेबाजी कर रहे हैं। गौरतलब हैं कि इराक युद्घ के बाद अब अमेरिका के लोग और कोई और युद्घ नहीं चाहते।

स्त्रोत : पंजाब केसरी

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