उस लडकीको पीडित न कहें ! – प.पू. आसारामबापू

भाद्रपद शुक्ल ४, कलियुग वर्ष ५११५

प.पू. आसारामबापूको बंदी बनानेसे पूर्व इंदौरमें उन्होंने वार्ताकारोंसे वार्तालाप किया


१. लोग तो भगवानपर भी कलंक लगाते हैं, मैं कौन ?

२. सभी आरोप झूठे हैं । शीघ्र ही विश्वके समक्ष आएगा ।

३. वह लडकी मेरी नातिनके समान है, उसे पीडित न कहें !

४. इससे पूर्व मुझपर तंत्रविद्या कर २ लडकोंकी हत्या करनेका आरोप लगाए गया; परंतु वह झूठा सिद्ध हुआ । वह भयंकर आरोप थातथा यह अश्लील आरोप है ।

५. यदि इन आरोपोमें सार होता, तो वे सिद्ध हुए होते ।

६. यदि मैं इन आरोपोंसे अस्थिर हो जाता, तो मैंने संतपदका त्याग किया होता । मेरे गुरुने मुझे सिखाया है कि सत्य निर्भय होता है एवं असत्य टिकता नहीं है ।

७. परंतु इन आरोपोंके कारण भक्तोंके दुखी होनेकी संभावना है ।

८. विवादसे बाहर आने हेतु मैं कोई नियोजन नहीं करता; परंतु भगवान सब जानते हैं एवं ऐसे आरोप निरस्त करते हैं ।

९. हम तो सर्पसे भी प्रेम करते हैं, जिससे उनका विष दूर होता है ।

१०. प्रसारमाध्यम हमारी अपकीर्ति करते हैं । मैं विमानतलके प्रमुख द्वारसे बाहर आया, तब भी वे कहते हैं कि पीछेके दरवाजेसे भाग गए ।

११. मुझे राजनीतिमें कोई चाह नहीं है । परमेश्वरकी कृपासे मैं जहां हूं, वह मुझे राजनीतिमें नहीं मिल सकता ।

१२. हम वैदिक विद्या सिखाते हैं, तांत्रिक नहीं ।

१३. मैं भगवानसे कहता हूं कि आपने मेरे सामने नई अडचन नहीं उत्पन्न की अर्थात आप मुझे भूले तो नहीं ?

१४. मैं भगवानसे कहता हूं कि मेरे लिए प्रतिदिन नई समस्या उत्पन्न कीजिए जिससे मुझे निरंतर आपकी याद रहेगी ।

१५. जब जब ऐसे आरोप लगाए जाते हैं, तब तब सत्संगके साधकोंकी संख्या बढती ही जाती है ।

१६. मुझे अपकीर्त करनेवालोंको मैं जानता हूं; परंतु मैं उनके नाम नहीं बताऊंगा ।

१७. संतोंके दुर्गुण देखनेवालोंकी स्वयंकी भी एक दृष्टि होती है ।

१८. कुछ विदेशी प्रतिष्ठान हिंदू संस्कृतिको नष्ट करना चाहते हैं ।

१९. मुझे क्रोध नहीं आता । अष्टावक्र गीताके अनुसार संत क्रोधित अवश्य दिखते हैं, परंतु वे वैसे होते नहीं ।

(संदर्भ : दैनिक दबंगदुनिया, २६.८.२०१३)

प.पू. आसारामबापूको बंदी बनाए जानेके विषयमें संतत्वकी प्रतीति देनेवाले उनके मत

मैं निर्दोष हूं । मैं बंदी बननेसे भयभीत नहीं होता । यदि मुझे कारागृहमें रहना पडा, तो मैं अपना अन्न-पानी ले जाऊंगा । यदि इसके लिए अनुमति नहीं मिली, तो अन्न-जल त्याग दूंगा । वैसे भी एक-ना-एक दिन तो यह देह छोडकर जाना ही है, तो अन्न-जलका त्याग क्यों नकरें । मेरे विरोधमें षडयंत्र रचनेवाले सभी व्यक्तियोंने शक्तिके साथ प्रयास चलाए हैं । ईश्‍वरी कृपा एवं भक्तोंका प्रेम मेरे साथ है । मैंने देखा कि समाजमें भली-भांति कार्य करनेवाले राजनेता, कलाकार एवं आध्यात्मिक संतके विरुद्ध षडयंत्र रचकर उन्हें पीछे हटानेका कार्य चल रहा है । (संदर्भ : दैनिक दबंग दुनिया, २७.८.२०१३)

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात 

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