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भारतके चर्चकी संपत्तिमें सरकारके हस्तक्षेपसे ईसाई धर्मगुरुका विरोध

भाद्रपद शुक्ल ६, कलियुग वर्ष ५११५

हिंदुओंके कितने धर्मगुरु मंदिरके सरकारीकरणका विरोध करते हैं ?

नई देहली – भारतके अधिकाधिक भूखंडपर कैथोलिक चर्चका स्वामीत्व है । उसीप्रकार भारत शासनके पश्चात यह सबसे अधिक रोजगार देनेवाली संस्था है । चर्चका वार्षिक अर्थसंकल्प भारतीय नौदलके वार्षिक अर्थसंकल्पके समान है । हाल-ही में गोवामें संपन्न अखिल भारतीय कैथोलिक संघकी परिषदमें ऐसा मत व्यक्त किया गया था कि चर्चकी इस संपत्तिपर सरकारी नियंत्रण होना चाहिए ; परंतु ईसाई धर्मगुरु बिशपने इसपर तीव्र विरोध दर्शाया है ।

१. कैथोलिक नेता एवं भूतपूर्व केंद्रीय मंत्री एदुआर्द फालेरोने कहा है कि विश्वमें सर्वत्र चर्चका व्यवहार उस उस देशके कानूनके अनुसार होता है । धार्मिक संगठन राज्यके अंतर्गत अपना अलग राज्य स्थापित नहीं कर सकता ।

२. ईसाई धर्मगुरु चर्चकी कार्यपद्धतिमें परिवर्तनका विरोध कर रहे हैं । सरकारी हस्तक्षेपको ईसाई धर्मगुरुका विरोध है । (ईसाईयोंके विरोध करनेपर सरकार चर्चके भ्रष्टाचारमें हस्तक्षेप करनेका साहस नहीं करती; परंतु हिंदुओंका विरोध तो दूर, उन्हें पूछे बिना ही उनके मंदिरोंका सरकारीकरण किया जाता है ! सर्वधर्मसमभावके नामपर हिंदुओंपर अत्याचार करनेवाले ऐसे राजनेताओंको सत्ताच्युत करना यही एकमात्र पर्याय है ! – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात )

३. सरकारके अधिकारमें रहनेवाले हिंदुओंके मंदिरमें प्रचुर मात्रामें भ्रष्टाचार होनेकी बात दिखाई दे रही है । कैथोलिक समाजके नेता डॉ. जान दयालने दावा किया है कि यदि चर्च सरकारके नियंत्रणमें गए, तो वहां भी भ्रष्टाचार होगा । (इससे स्पष्ट होता है कि चर्चका व्यवहार सरकारके नियंत्रणमें न जाए इस हेतु ईसाई कितने सतर्क हैं । मंदिरोके विषयमें कितने हिंदू ऐसी सतर्कता दर्शाते हैं  ? – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात )

४. भारतकी कैथोलिक संस्था ५०० वर्ष पुरानी है । भारतके चर्चके पास लाखों करोड रुपयोंकी संपत्ति है । इस संपत्तिपर चर्चका ही संपूर्ण अधिकार है । सरकार इस विषयपर मौन रहना चाहती है । (इससे यही प्रतिध्वनित होता है कि इस देशमें चर्च भ्रष्टाचार करनेके लिए मुक्त स्थान है ! – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात )

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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