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केंद्रप्रशासन न्यायालयके आदेशको गंभीरतासे क्यों नहीं लेता ? – मुंबई उच्च न्यायालय

भाद्रपद शुक्ल १३, कलियुग वर्ष ५११५

  • हिंदू जनजागृति समितिका संकेतस्थल तथा ‘फेसबुक पेज’ पर लगी बंदीकी घटना

  • मुंबई उच्च न्यायालय द्वारा केंद्रप्रशासनको फटकार !

  • न्यायालय केवल ऐसी पूछताछ न कर, संबंधित विभाग पुन: ऐसी चूकें न करें, इस हेतु उन्हें दंड दे, जनताकी ऐसी ही अपेक्षा होगी; क्योंकि प्रशासकीय कारोबार कैसे चलते हैं, सामान्य नागरिक प्रतिदिन इसका अनुभव ले रहे हैं !

मुंबई, (वार्ता.) – हिंदू जनजागृति समितिका संकेतस्थल तथा फेसबुक पन्नेपर बंदी लगानेकी घटनामें समितिकी ओरसे मुंबई उच्च न्यायालयमें प्रविष्ट की गई याचिकापर १६ सितंबरको सुनवाई हुई । २८ जून २०१३ को याचिकापर पहली बार सुनवाई होकर ‘जानकारी एवं तंत्रज्ञान विभाग’, ‘विधि विभाग’, केंद्रप्रशासनके इन विभागोंको ६ सितंबरतक अपनी बात प्रस्तुत करनेका आदेश मुंबई उच्च न्यायालयके मुख्य न्यायमूर्ति श्री. मोहीत शहा तथा न्यायमूर्ति संकलेचाकी खंडपीठने दिया था । केंद्रप्रशासनके ऊपर निर्देशित विभागोंद्वारा ६ सितंबरतक सत्यप्रतिज्ञापत्र द्वारा यह प्रस्तुत नहीं किया । यह बात समितिके अधिवक्ताओंने १६ सितंबरकी सुनावाईके समय खंडपीठके सामने लाई । उसपर, क्या केंद्रप्रशासन इस बातको गंभीरतासे नहीं लेता, ऐसा प्रश्न पूछकर खंडपीठने केंद्रप्रशासनको ३ सप्ताहोंके अंदर अपनी बात प्रस्तुत करनेका अंतिम समय दिया है ।
११ अगस्त २०१२ को आजाद मैदान मुंबईमें हुए दंगेके पश्चात असमके दंगेसे संबंधित लिखाई प्रकाशित किए जानेकी बात कहकर केंद्रप्रशासनने हिंदू जनजागृति समितिके संकेतस्थलपर तथा फेसबुक पन्नेपर बंदी लगाई थी । तत्पश्चात संकेतस्थलपर लगी बंदी कुछ शर्तें रखकर हटाई किंतु फेसबुक पन्नेपर लगी बंदी वैसी ही रखी । इस बंदीको तथा संबंधित अधिनियमको आव्हान देकर समितिने यह याचिका प्रविष्ट की है ।

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात 

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