भाद्रपद पूर्णिमा , कलियुग वर्ष ५११५
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अमृतसर – अकाल तख्त के पांच सिंह साहिबान ने फैसला लिया है कि जिस स्थान पर नशे का सेवन या फिर 'बार' (शराब पीने का स्थान) होगा वहां गुरु साहिब का प्रकाश कतई नहीं किया जा सकता। इसके अलावा कब्र, जठेरों (कलदेव) व समाधियों पर श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी का पाठ करने पर रोक लगाई गई है। साथ ही, जिस घर में हलाल मीट बनता है वहां भी श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी का प्रकाश न करने को कहा गया है।
श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार ज्ञानी गुरबचन सिंह ने कहा कि पूर्व जत्थेदार ज्ञानी जोगिंदर सिंह वेदांती ने भी अपने कार्यकाल में इसी प्रकार के आदेश जारी किए थे। उन्होंने मजीठा में स्थित बाबा रोडे शाह की दरगाह में श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी के प्रकाश को लेकर पैदा हुए विवाद के बाद सिखों को आदेश दिया था कि वह दरगाहों व कब्रों पर श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी का प्रकाश न करें।
ज्ञानी जोगिंदर सिंह वेदांती के इस आदेश के बाद बाबा रोडे शाह दरगाह कमेटी ने गुरु ग्रंथ साहिब जी का प्रकाश हटा दिया था।
अकाल तख्त का फैसला न मानने पर सिखों के लिए सजा का भी प्रावधान है। किसी भी सिख ने चाहे कितनी भी भयंकर गलती की हो उसे सजा के तौर पर गुरुद्वारा साहिब में सेवा करना, बर्तन मांजना, कीर्तन सुनना, श्री जपुजी साहिब का पाठ करना व अरदास करवाने की ही धार्मिक सजा लगती है।
अकाल तख्त साहिब 'जति शरण आए तिस कंठ लगावे के आधार पर सजा देता है।' अकाल तख्त साहिब सिखों की सर्वोच्च सत्ता है। मीरी-पीरी के सिद्धांत में मीरी का ओहदा अकाल तख्त साहिब को ही साहिब को ही हासिल है।
स्त्रोत : जागरण