भाद्रपद पूर्णिमा , कलियुग वर्ष ५११५
१. समाजके पुरोहित
१ अ. भ्रमणभाषपर बातें करते हुए विधि करानेवाले पुरोहित ! : मैं एक बार एक नवविवाहित दंपतिके घर गया था । वहां श्री सत्यनारायण पूजा तथा गर्भाधान संस्कार करने हेतु एक पुरोहित आए थे । विधि करते समय उन्हें भ्रमणभाष आया । तब एक ओर वे भ्रमणभाषपर बोल रहे थे तथा दूसरी ओर विधि करवा रहे थे । ऐसे समय विधि आरंभ होनेसे पहले वे भ्रमणभाष कंपन स्थितिमें रख सकते थे ।
१ आ. विधि होनेके पश्चात घी के कागदका खोका भी अग्निमें फेंकनेवाले अल्पबुद्धि पुरोहित ! : एक व्यक्तिकी मां की मृत्यु हुई, उस समय ‘पंचक’ लगनेसे उस हेतु आवश्यक विधि करनी थी । पुरोहित वहां एक घी के कागदका खोका भी लाए थे । विधिके पश्चात घी के प्रयोगके उपरांत उसका वेष्टन कचरेके डिब्बेमें न डालकर जिस अग्निमें हवनीय द्रव्य अर्पण किए थे, उसी अग्निमें वह खोका भी डाल दिया ।
१ इ. अधिक समयतक चलनेवाले अनुष्ठानोंकी कालावधिमें आवारगी करनेवाले बालबुद्धिके पुरोहित ! : कुछ अनुष्ठानों हेतु अधिक समय लगता है, तथा पुरोहितोंको उसका कंटाला आता है । ऐसे समयपर उन्हें या तो नींद आती है, अथवा अपने पास होनेवाली मालासे खेलना, दूसरोंकी ओर देखकर आवारगी करना, ऐसे प्रयास करते रहते हैं । अनुष्ठान पूर्ण करने हेतु ऐसे पुरोहित इतनी शीघ्रतासे मंत्र बोलते हैं कि उनका उच्चारण किसीकी समझमें नहीं आता ।
इन सब बातोंसे विधिकर्ताको अनुष्ठानका कोई भी लाभ नहीं होता, अपितु देवताओंकी अवकृपासे उन्हें पाप लगता है ।
२. वटपूर्णिमाके दिन सामूहिक वटपूजा करते समय होनेवाले अनुचित कृत्य
मैं घर गया था । वटपूर्णिमाके दिन जहां सामूहिक वटपूजा हो रही थी, मैं उस मंदिरमें गया । मंदिरमें किसी बातका नियोजन न होनेसे चारों ओर गडबडी मची हुई थी । वहांके अनुभव की कुछ बातें आगे दे रहा हूं ।
२ अ. केवल रूढि-परंपराओंका पालन करने हेतु पूजा करनेवाली महिलाएं
२ अ १. गमलेमें बरगदकी टहनी रखकर कीचडमें ही भगवान हेतु फल रखकर कोई भी धार्मिक उपचार न कर पूजा करनेवाली पाखंडी महिलाएं ! : बरगदकी पूजा हेतु एक गमलेमें बरगदकी टहनी स्थापित कर आजूबाजूमें महिलाएं मंडलाकार बैठी थीं । वहां अनेक स्त्रियोंके पूजा करनेसे शंख एवं घंटी हलदी -कुमकुमसे चुपड गया था । अगरबत्तियां उनके स्टैंडपर न लगाकर देवताओंको अर्पण किए फलोंपर ही लगाई गई थीं । गमलोंके इर्द-गिर्द पानी गिरनेसे कीचड हुआ था तथा उसीमें सारी महिलाएं देवताओंको अर्पण करनेवाले फल रख रही थीं ।
२ अ २. बालटीमें ही टहनी स्थापित करना : एक दूसरे स्थानपर बरगदकी टहनी स्थापित करने हेतु गमलेके स्थानपर सीधे नहानेकी पुरानी बालटीका उपयोग किया गया था ।
२ अ ३. ‘नीरांजन’ (दिया) के रूपमें ढक्कनका उपयोग करनेवाली स्वयंको अति बुद्धिमान समझनेवाली महिला ! : एक महिलाके पास देवताओंकी आरती उतारने हेतु ‘नीरांजन’ न होनेसे उसने कांचके ‘शीतपेय’ की बोतलके ढक्कनमें रुई की बाती रखकर तथा उसे प्रज्वलित कर देवताओंकी आरती उतारी ।
आ. कुछ तथाकथित पुरोहित
२ आ १. श्रीगणेशकी आरती भी ठीकसे न गा सकना : एक पुरोहितको वहांकी एक महिलाने श्रीगणेशकी आरती गाने हेतु कहा; किंतु पुरोहितके आरती न गा सकनेके कारण उस महिलाको ही गानी पडी ।
२ आ २. बरगदकी टहनी जोरसे खींचकर अश्रद्धाका प्रदर्शन करनेवाला पुरोहित ! : अंतमें पूजासाहित्य समेटते समय एक पुरोहितने जिस बरगदकी टहनीका पूजन किया था, उस टहनीको जोरसे खींचकर दूर किया ।
३. विधिविषयमें अनास्था दर्शानेवाले कुछ मेजबान
३ अ. श्रीगणेशके आगमनसे स्वयंके कार्य अधिक महत्त्वपूर्ण लगना : एक स्थानपर गणेश चतुर्थीको गणेशजीकी पूजा करने हेतु एक पुरोहित अनेक वर्षोंसे जाते थे । उन्हें पूजा करने हेतु १५ से २० मिनट लगते थे । उसी स्थानपर एक अच्छे पुरोहितके जानेपर उन्हें ३० मिनटसे अधिक समय लगनेसे मेजबानने पूछा, आपको इतना समय कैसे लगता है ? प्रतिवर्ष हमारे यहांकी पूजा १५ से २० मिनटमें ही पूरी होती है । जरा शीघ्र कीजिए, मुझे कामपर जानेमें देर हो रही है ।
३ आ. विधिसे मेहमानोंका महत्त्व अधिक लगनेवाला दूल्हा ! : एक स्थानपर एक विवाह समारोहमें गया था, वहांके दूल्हेने पुरोहितसे कहा कि सभागृह कुछ घंटोंके लिए ही किराएपर लिया है । अपनी विधि शीघ्र समाप्त करें, सारे मेहमान हमसे मिलने आनेवाले हैं ।
३ इ. मदिराप्राशन कर पूजामें बैठना : एक स्थानपर श्रीगणेशपूजन हेतु मेजबान मदिरा प्राशन कर पूजामें बैठे थे ।
– श्री. लोमेश पाठक (आयु १८ वर्ष), सनातन साधक-पुरोहित पाठशाला, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष अमावास्या, कलियुग वर्ष ५११५ (८.७.१०१३))
पुरोहितो, धर्मशिक्षाका चिंतन कर समाजको शिक्षित करनेकी अपेक्षा दुराचरण कर समाजको अश्रद्धाकी ओर मोडनेसे पाप लगेगा, यह ध्यानमें रखें !धर्मशिक्षाके अभावमें हिंदुओंमें कुलाचार, परंपरा एवं धार्मिक विधियोंके विषयमें अज्ञान किस सीमातक पहुंचा है, उपर दिए उदाहरणोंसे यह स्पष्ट होता है । पहले अंग्रेज तथा उनके पश्चात भारतके अंग्रेजोंके चहेते तथाकथित बुद्धिवादियोंके हिंदूद्वेषकी बालघुट्टी पिलानेसे आज हिंदू धर्मियोंकी स्थिति, न घरका न घाटका, ऐसी हुई है । साथ ही निधर्मी (या अधर्मी) सरकारने हर प्रकारसे हिंदू धर्मका माहात्म्य नष्ट करनेका बीडा ही उठाया है । इन सारी बातोंसे सर्वसामान्य जनता स्वधर्म तथा धर्मपालनसे वंचित हो गई है । उचित प्रकारसे धर्माचरण न करनेसे उन्हें उससे कोई भी लाभ नहीं होता, तथा अनुभूति नहीं आती, तथा यह सब क्यों करना है, इस विषयमें भयंकर अज्ञानताके कारण इश्वरके प्रति श्रद्धा भी जागृत नहीं होती । |