अश्विन कृष्ण १२, कलियुग वर्ष ५११५
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पुणे पुलिसकी मुगलाई !
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हिंदु संतोंके साथ अन्याय एवं बंदीके निषेधार्थ हिंदुओंकी मूक मोरचाकी भी अनुमति अस्वीकार करनेवाली पुलिस केवल आजाद मैदानके धर्मांधोंके आक्रमणके समय पीछे हटती है !
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पुलिसद्वारा परिवहनकी अस्तव्यस्तताके विषयमें हास्यास्पद स्पष्टीकरण
पुणे : प.पू. आसारामबापूके साथ किया गया अन्याय, बंदी तथा उनकी अपकीर्तिके विरोधमें प.पू. आसारामबापूके भक्त तथा अन्य हिंदूनिष्ठ संगठनोंद्वारा आयोजित मूक मोरचाको पुणे पुलिसने परिवहनकी अस्तव्यस्तताका कारण बताकर अनुमति अस्वीकार की । अतः भक्तोंने यह भावना व्यक्त की कि लोकराज्यद्वारा प्राप्त स्वतंत्रतापर आघात हो रहा है । (परिवहनपर नियंत्रण रखना, यह तो पुलिसका कार्य ही है । लोकराज्यके मार्गसे भक्तोंको उनकी भावना व्यक्त करनेके लिए भी यदि पुलिस रोकती है, तो यह पुलिसका घटनाद्रोह है । साथ ही यह उनके प्रभुत्वका (हुकूमशाहीका) द्योतक है ! – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात)
१. २९ सितंबरके दिन दोपहरको २.३० बजे यहांके के.ई.एम. रुग्णालयसे शनिवारवाडाके इस मार्गपर मूक मोरचाका आयोजन किया गया था ।
२. भक्तोंकी ओरसे पुणे पुलिसको निवेदन दिया गया था ।
३. इसपर पुलिसने बताया कि पारंपरिक यात्राओंके अतिरिक्त अन्य मोरचाको अनुमति न देनेका नियम है । अतः इस मोरचाके संदर्भमें दो दिनमें निर्णय बताएंगे । (अब इसका अर्थ क्या यह समझें कि पुणेमें निषेध मोरचा निकालकर नागरिकोंद्वारा मत प्रदर्शित करनेका अधिकार भी छीन लिया गया है ? इसे तो पुलिसकी मुगलाई ही कहनी पडेगी ! – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात)
४. पुणे पुलिसद्वारा मोरचाके संदर्भमें कोई भी निर्णय प्राप्त न होनेके कारण भक्तोंने मोरचाकी सिद्धता की; किंतु मोरचाके एक दिन पूर्व ही पुलिसने आयोजकोंको इस मोरचाके लिए अनुमति अस्वीकार किए जानेका पत्र दिया । (क्या पुलिसद्वारा इस प्रकारका पत्र अन्य धर्मियोंके मोरचाके समय देनेका साहस कभी हुआ है ? – संपादक)
५. अनुमति अस्वीकार करनेके कारण प.पू. बापूजीके भक्तोंद्वारा संताप व्यक्त किया जा रहा है । एक भक्तने बताया कि हमें प.पू. बापूने संयमसे रहनेके लिए बताया है, इसलिए गुर्वाज्ञाके कारण हम शांत हैं । पुलिस इसका अर्थ यह नहीं समझे कि हम पीछे हटे हैं । हम वैध मार्गसे हमारे प्रयास चालू रखकर निषेध पंजीकृत करनेतक चुप नहीं बैठेंगे ।
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात