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धर्मजागृतिके माध्यमसे समयानुसार हिंदुओंको संगठित करना ही आवश्यक धर्मकार्य

अश्विन शुक्लपक्ष १, कलियुग वर्ष ५११५

श्री. रमेश शिंदे

श्री. रमेश शिंदे

हिंदू जनजागृति समितिके राष्ट्रीय प्रवक्ता श्री. रमेश शिंदेको कर्नाटक राज्यकी यात्रामें विभिन्न कार्यक्रममें हिंदूनिष्ठोंद्वारा पूछे गए प्रश्न तथा श्री. रमेश शिंदेके उत्तरका संकलित स्वरूप हम अपने वाचकोंके लिए प्रकाशित कर रहे हैं ।


प्रश्न : व्यस्त जीवनमें राष्ट्र एवं धर्मकार्य हेतु समय नहीं, यदि अधिकांश हिंदुओंकी ऐसी मानसिकता है, तो उनका प्रबोधन किस प्रकार करना चाहिए ?

श्री. शिंदे : यदि आज देश एवं धर्मके लिए हिंदुओंके द्वारा समयके विषयमें पूछा गया, तो वे व्यस्त रहते हैं, ऐसा उनका उत्तर होता है । उनके पास क्रिकेट देखनेके लिए ५ घंटे, चित्रपट देखनेके लिए ३ घंटे, धारिका देखनेके लिए २ घंटे होते हैं; किंतु राष्ट्र एवं धर्मका विषय आनेपर वे व्यस्त रहते हैं । एक मुसलमान कितना भी व्यस्त हो, किंतु वह दिनमें पांच बार नमाजपठन अवश्य करता है । कितने हिंदू दिनमें न्यूनतम एक बार १० मिनिटके लिए भी मंदिर जाते हैं ? यह शास्त्रवचन है कि ‘धर्मो रक्षति रक्षितः ।' अर्थात `जो धर्मकी रक्षा करता है, उसकी ही रक्षा धर्म करता है ।' अतः भविष्यमें यदि हिंदुओंको सुखके दिन व्यतीत करने हैं, तो वे अपने विचार एवं कृत्यमें परिवर्तन कर राष्ट्र एवं धर्म हेतु समय व्यतीत करें । अन्यथा भविष्यमें यदि हिंदू आपत्तिमें फंस जाएंगे, तो ईश्वर भी कहेगा, कि ‘अब मैं व्यस्त हूं ।’ यदि मुसलमान धर्म हेतु समय निकालते हैं, ईसाई पाश्चात्य देशसे भारतमें आकर गांव-गांव जाकर हिंदुओंको भ्रमित कर उनका धर्मपरिवर्तन करते हैं, तो हम धर्मके लिए समय क्यों नहीं निकाल सकते ?

प्रश्न : धर्मपालन करने हेतु लज्जा(शरम) प्रतीत करनेवाले हिंदुओंका प्रबोधन कैसे करना चाहिए ?

श्री. शिंदे :
अ. `मेकॉले'की शिक्षापद्धतिके कारण हिंदुओंको किसीके द्वारा धर्मांतरित करनेकी आवश्यकता नहीं है । क्योंकि आधी मात्रामें वे स्वयं ही धर्मांतरित हैं । उनके विचार तथा कृत्यद्वारा सहज ही यह स्पष्ट दिखाई देता है । हिंदुओंको इस बातका ध्यान रखना चाहिए कि धर्मशास्त्रके अनुसार माथेपर तिलक लगानेमें भी उन्हें लज्जा आती है, किंतु उसी समय मुसलमान सिरपर टोपी पहनकर कहीं भी जा सकते हैं ।

आ. आज कोई भी हिंदू दूरभाष अथवा भ्रमणभाषपर संपर्क करते समय ‘हैलो' इस शब्दसे संभाषणका प्रारंभ करता है; किंतु कितने लोगोंको ‘हैलो' शब्दका अर्थ ज्ञात है ? एक प्रचलित कथानुसार दूरभाषकी खोज करनेवाले ग्राहम बेल नामक संशोधककी सहेलीका नाम ‘मार्गरेट हैलो’ था । उसके साथ दूरभाषद्वारा प्रथम संभाषण करते समय ग्राहमने ‘हैलो' शब्दका उपयोग किया था । उससे ही आगे यह शब्द प्रचलित हुआ । ऐसा होते हुए भी, कोई भी मुसलमान ‘हैलो' नहीं कहता, अपितु अपने धर्मानुसार ‘सलाम वालेकुम' कहकर संभाषण आरंभ करता है । यदि मुसलमान स्वपंथके अभिमानका पालन करने हेतु प्रचलित पद्धतियोंको मिटा सकते हैं, तो हिंदू क्यों नहीं कर सकते ? इस प्रकार छोटे-छोटे कृत्योंद्वारा ही धर्मका अभिमान व्यक्त होता है । अतः मुसलमान धर्मांतरित नहीं होता, किंतु हिंदू सहज रूपसे धर्मांतरित होते हैं ।

प्रश्न : जन्मदिन पाश्चात्य पद्धतिसे मनाना, क्या आरोग्यके लिए उपायकारक है ?

श्री. शिंदे : जन्मदिनपर हम पाश्चात्य पद्धतिके अनुसार मोमबत्ती बुझाते हैं । अब ‘डिस्कव्हरी चैनल'ने ही यह बात स्पष्ट की है कि मोमबत्तीपर फूंक लगानेसे मुंहके विषाणु हवाके माध्यमसे उस केकपर जाते हैं और यही केक उपस्थित व्यक्तियोंको बांटा जाता है । उसके द्वारा वे विषाणु अन्योंकी देहमें प्रवेश कर सकते हैं; अतः यह पद्धति अशास्त्रीय है । यदि केक ‘नैवेद्य' के रूपमें भी हम किसी देवताको नहीं दिखाते, तो ऐसा पराया पदार्थ हम जन्मदिनपर क्यों खाएं ?

प्रश्न : यदि कभी भी संघर्षका समय आता है, तो हिंदू उसका सामना करनेसे डरते हैं ?

श्री. शिंदे : आज सर्वत्र हिंसाकी मात्रा बढ गई है । केरलमें ४ सहस्र हिंदू युवतियोंको धर्मांतरित करनेवाला ‘लव जिहाद' पूरे भारतमें तीव्र गतिसे बढ रहा है । गोहत्याकी मात्रा तीव्रतासे बढ गई है । पुलिस तथा शासनके निष्क्रिय होनेके कारण आज हमारी आंखोंके सामने ये धर्मांध हिंदू माता-भगिनी तथा गोमाताको उठा रहे हैं । क्या हिंदू इन धर्मांधोंके हमारे घरतक आनेकी प्रतीक्षा कर रहे हैं ? क्या हम हमारा घर, धर्म इसकी रक्षा हेतु सिद्ध हैं ?
भगवान श्रीकृष्णने गीतामें बताया है कि धर्म हेतु लडना ही पुरुषार्थ है तथा धर्म हेतु न लडनेवाले क्लैब्य (नपुंसक)के नामसे पहचाने जाएंगे । सारांशमें हिंदूद्वेषी बडी मात्रामें इसकी सिद्धता कर रहे हैं । हिंदू कुछ करें या ना करें, उन्हें इस आपत्तिका सामना करना ही पडेगा । प्रश्न इतना ही है कि नपुंसक बनना है या पुरुषार्थ दिखाना है ?

प्रश्न : ‘वन्दे मातरम्'को अस्वीकार करनेवाले अनेक मुसलमान आज भारतमें हैं । उनके विषयमें कौनसी भूमिका अपनानी चाहिए ?

श्री. शिंदे : १९४७ में भारतमें मुसलमानोंकी संख्या साधारणरूपसे २४ प्रतिशत होनेके पश्चात उन्होंने ‘वन्दे मातरम्'का विरोध किया । स्वतंत्र मतदातासंघकी मांग की । तदुपरांत उन्होंने स्वतंत्र देश अर्थात पाकिस्तानकी मांग की तथा भारतका ३२ प्रतिशत भूक्षेत्र बलपूर्वक अपनाकर पाकिस्तान तथा बांग्लादेशकी स्थापना की । उस समय २ प्रतिशत मुसलमानोंने भारतपर प्रेम दिखाकर भारतमें ही निवास करना पंसद किया; किंतु आज उन्हीं मुुसलमानोंके २ प्रतिशतसे १८ प्रतिशतपर पहुंचनेके कारण पुनः उनमें ‘जिहादी'वृत्ति जागृत हुई है । अब पुनः वे ‘वन्दे मातरम्’ कहनेसे अस्वीकार करेंगे । ‘भारतीय अधिनियम नहीं, अपितु इस्लामी शरीयतका अधिनियम चाहिए । अल्पसंख्यकके कारण अलग सुविधा चाहिए । स्वतंत्र मतदातासंघ चाहिए’, इस प्रकार १९४७ से पूर्वकी राष्ट्रविरोधी भूमिका अपना रहे हैं । यह भूमिका अर्थात विभाजनके समय ‘हंसके लिया पाकिस्तान, लडके लेंगे हिंदुस्थान !' प्रत्यक्षमें यही घोषणा लानेका उनका प्रयास है । इस देशके और टुकडे नहीं करना है, तो हिंदुओंको इकट्ठा होकर इस राष्ट्रविरोधी प्रवृत्तिपर दबाव डालना चाहिए ।

प्रश्न : चीनद्वारा भारतको क्या सीखना चाहिए ?

श्री. शिंदे : चीनकी ऑलिंपिक आदि अंतरराष्ट्रीय स्पर्धामें हो रही अग्रिम स्थान देखकर उनके भूतपूर्व राष्ट्राध्यक्ष माओ जेडांगको प्रश्न किया, ‘आपका देश सर्व खेलोंमें अग्रिम स्थानपर होता है, तो आप क्रिकेट क्यों नहीं खेलते, आप सहजतासे विश्वचषक (वर्ल्ड कप) जीत सकते हैं ।' इस प्रश्नपर जेडांगद्वारा दिया उत्तर प्रत्येक भारतीयको अंतर्मुख करनेवाला है । उन्होंने बताया, ‘हमें केवल क्रिकेटके विश्वकप नहीं चाहिए, हमें तो पूरे विश्वपर राज्य करना है । अतः हम देशमें मनुष्यबलको एकसे डेढ घंटेसे अधिक समयतक मनोरंजनमें व्यतीत नहीं करने दे सकते । अतः क्रिकेटके समान घंटोंतक देखे जानेवाले खेलको न चुनकर हम अल्प समयवाले खेल ही खेलते हैं ।’ चीनकी इस महत्त्वाकांक्षाके कारण ही आज भारतके राष्ट्रीय दिवसके लिए पाकिट/खीसेपर लगाए जानेवाले कागजके ध्वज भी चीनसे ही आयात होते हैं । भारतीय केवल क्रिकेटमें समय व्यतीत कर रहे हैं; इसलिए यह ध्यानमें रखना चाहिए कि हमारे ‘रुपए’का अवमूल्यन हुआ है; किंतु चीनके ‘येन’ का मूल्य अल्प नहीं होता !

प्रश्न : राममंदिरकी स्थापना अभीतक नहीं हो सकी । इस संदर्भमें आपका क्या मत है ?

श्री. शिंदे : बहुसंख्यक हिंदुओंके आराध्य देवता प्रभु श्रीरामका मंदिर गिराकर वहां परकीय आक्रामकोंने मस्जिदकी स्थापना की एवं वहां पुनः राममंदिरकी स्थापना करनेके लिए हमें लडना पडता है, इसके समान दुर्दैवकी बात और कोई नहीं है । जब बाबरी मस्जिद गिराई, उस समय मुसलमानोंने ‘१ मस्जिद गिराई है, तो एक लक्ष बनाकर दिखाएंगे', ऐसा वचन लेकर, १ लक्ष मस्जिदकी स्थापना करनेका निश्चय किया एवं प्रत्यक्षमें उसे किया भी । सारांशमें वे जो विचार करते हैं, वह कर दिखाते हैं । इसके विरुद्ध हम श्रीराममंदिरकी स्थापना आजतक न कर सके । प्रत्येक गांवमें न्यूनतम एक राममंदिरकी स्थापना तो हम कर ही सकते थे, किंतु हमने वह भी नहीं किया ।

प्रश्न : क्या चुनावकी पृष्ठभूमिपर राजनीतिद्वारा परिवर्तन लाना संभव है ?

श्री. शिंदे : परिवर्तन राजनीतिद्वारा नहीं, अपितु संगठित शक्तिद्वारा हो सकता है । यदि राजनीतिद्वारा परिवर्तन होता, तो हिंदुत्वका नाम लेकर सत्तामें आए भाजपाके सत्ताकालमें कश्मीरी हिंदुओंका पुनर्वसन, राममंदिर, गोहत्या बंदी, समान नागरी अधिनियम, सीमाप्रश्नके समान हिंदुओंके न्याय अधिकारोंसे संबंधित अनेक प्रश्नोंका हल निकलता ।

प्रश्न : हिंदुस्थानमें परिवर्तनकी दृष्टिसे हिंदूनिष्ठ संगठन तथा हिंदुओंको क्या करना चाहिए ?

श्री. शिंदे : आज भारतमें मुसलमानोंकी संख्या एक चतुर्थांशकी अपेक्षा अल्प होनेपर भी सर्व दल उनकी चापलूसी करते हैं; क्योंकि उनके पास संगठित शक्ति है । इसके विरुद्ध मुसलमानोंकी तुलनामें हिंदुओंकी संख्या चौगुनी होनेपर भी कोई राजनीतिक दल उनकी ओर ध्यान ही नहीं देता; क्योंकि उनमें संगठित भावका अभाव है । मुसलमान संगठित होनेके कारण उन्हें प्रत्यक्ष राजनीतिमें हिस्सा लेनेकी अर्थात दल स्थापित करनेकी आवश्यकता नहीं होती । बंगालमें वे ममता बनर्जीद्वारा अपनी मांगें पूरी कर लेते हैं, तो तामिलनाडुमें जयललिता शासनद्वारा ।
इस सर्व स्थितिका अभ्यास करते हुए राजनीतिद्वारा परिवर्तन होनेके दिनके सपने देखनेकी अपेक्षा भविष्यमें हिंदू तथा हिंदुओंका नेतृत्व करनेवाले संगठनोंको ही आनेवाले चुनावकी ओर निम्न निर्देशित दृष्टिकोणसे देखना, यह हिंदू तथा राष्ट्रके हितका है ।

१. प्रत्येक स्थानपर २०-२५ प्रतिशत हिंदुओंकी मतपेटी सिद्ध करना

२. इस मतपेटीद्वारा एकमुखसे हिंदुओंके न्याय एवं अधिकारोंकी मांगें करना ।

३. इस मतपेटीके बलपर राजनीतिको हिंदूहितके मोडपर लाना ।

सारांशमें आज हिंदुओंको उनकी शक्तिका भान करवानेकी आवश्यकता है । जैसे हनुमानको ‘उनमें आकाशगमनका सामर्थ्य है’ इसका भान कर देनेके पश्चात उन्होंने उडान भरा था, उसी प्रकार आज हिंदुओंको उनकी शक्तिका भान कर देना चाहिए । यदि शृंखला पद्धतिसे हम निकटके २० गांवोंके हिंदुओंको उपर्युक्त सूत्रके संदर्भमें संगठित कर सकें, तो एक मतदातासंघकी स्थापना होकर वहां चुनावके लिए खडे होनेवाले उम्मीदवारको हिंदू मतपेटीका विचार करना पडेगा । शास्त्रमें बताया गया है कि ‘कलियुगमें ‘संघे शक्तिः कलौयुगे ।', अर्थात ‘कलियुगमें संगठित शक्तिकी विजय होती है ।’ अतः जागृत एवं संगठित होना ही हिंदुओंकी सभी समस्याओंका एकमात्र उपाय/समाधान है ।

प्रश्न : आप राजनीतिमें हिस्सा क्यों नहीं लेते ?

श्री. शिंदे :
१. किसी भी कृत्यसे पूर्व लोगोंको यह ज्ञात होना चाहिए कि संगठनके विचार क्या हैं ? इसके लिए प्रथम जनजागृति एवं विचारोंका प्रचार करना पडता है । लोगोंको अपने विचार उचित हैं, इससे निश्चित ही सामाजिक परिवर्तन हो सकता है, इसका विश्वास होना आवश्यक है । इसके उपरांत ही उन विचारोंको अनुयायी प्राप्त होते हैं । बिना अनुयायीके किसी भी मार्गसे क्रांति सफल नहीं हो सकती । अतः अब प्राथमिक स्तरपर जनजागृति एवं विचारोंका प्रचार आरंभ है ।

२. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघको भी राजनीतिक दृष्टिसे सफल होनेमें ७० वर्ष कार्य करना पडा, तब कहीं जाकर भाजपा सत्तामें आई । अब आपत्काल होनेके कारण इतनी लम्बी कालावधि उपलब्ध ही नहीं है । भाजपाको भी सत्तामें आनेके लिए सामाजिक सूत्रोंका उपयोग नहीं हुआ । अतः अंतमें उन्हें भी श्रीराममंदिरके सूत्रका, अर्थात धर्मका ही आधार लेना पडा । प्रत्येक व्यक्तिमें सामाजिक प्रतिबद्धताकी अपेक्षा धार्मिक भावना ही प्रबल रहती है । अतः हम राजनीतिमें जानेकी अपेक्षा धार्मिक शिक्षाका उपयोग कर रहे हैं ।

३. यदि हमने राजनीतिमें प्रवेश किया, तो बहुसंख्य हिंदुओंके मनमें राजनीतिक संभ्रम उत्पन्न होगा । साथ ही हिंदुओंके मतोंका विभाजन होगा और उसका लाभ हिंदू-विरोधियोंको होगा ।

४. वर्तमानमें राजनीतिकी आर्थिक समझौता, उससे प्राप्त नीचेका स्तर, यह सब देखते हुए उस गंदगीमें जानेकी अपेक्षा हिंदुओंको संगठित कर, अपनी शक्ति बढाकर, राजनीतिक दलोंको ही हिंदूहितके लिए बाध्य करना चाहिए । मुसलमान अल्पसंख्यक होते हुए भी जो साध्य कर सकते हैं, उसे हिंदू बहुसंख्यक होकर भी क्यों नहीं कर सकेंगे ? इसके लिए वास्तविक रूपसे हिंदुओंमें जनजागृति करनेकी ही आवश्यकता है और आज वही कार्य हम प्राधान्य क्रमसे कर रहे हैं ।

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

 

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