अश्विन कृष्ण १४ / अमावस्या , कलियुग वर्ष ५११५
नरेंद्र मोदीका संतापजनक वक्तव्य !
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शौचकूपोंके निर्माणके उपरांत मोदी मंदिर निर्माण करने सिद्ध होंगे, क्या हिंदू ऐसा समझें ?
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देशमें पहले शौचकूपोंका निर्माण करें; तत्पश्चात मस्जिद अथवा गिरिजाघर, क्या मोदी ऐसा वक्तव्य कर सकते हैं ?
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मोदी हिंदुओंको (गृहित) कुछ महत्व न देकर ऐसा वक्तव्य करने लगे हों, तो वे अपने पांवपर स्वयं कुल्हाडी न मारें !
नई दिल्ली – अगले चुनाव में युवाओं की भूमिका को भांपते हुए भाजपा के पीएम उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने देश भर से जुटे हजारों छात्रों को साध लिया। बुधवार को देश के २०० कॉलेजों से हजारों छात्र जुटे थे। उन्होंने प्रजेंटेशन के जरिये युवाओं के मनचाहे भारत का खाका खींचा था। समापन भाषण में मोदी ने हर बिंदु को छुआ और खास ध्यान रखा कि पूरा मुद्दा विकास आधारित हो और देश का वर्तमान नेतृत्व भी कठघरे में खड़ा किया जाए। उन्होंने कहा कि मेरा मानना है, 'पहले शौचालय फिर देवालय'। मेरी प्राथमिकता है पहले विकास। मैंने गुजरात में यह कर दिखाया है। गौरतलब है कि ऐसे ही एक बयान को लेकर ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश की खासी आलोचना हुई थी। (स्वतंत्रताके ६७ वर्षोंमें जनता हेतु शौचकूपोंका निर्माण नहीं किया गया, यह भारत हेतु लज्जास्पद ही है । श्री. मोदीके प्रधानमंत्री बननेपर यह समस्या उन्हें हल करनी चाहिए; किंतु उनके अभीके वक्तव्यसे उन्हें मंदिरोंका महत्त्व मालूम नहीं, धर्माभिमानी हिंदुओंको ऐसा लगने लगा है । इससे पूर्व कांग्रेसके मंत्री जयराम रमेशने भी इस प्रकारका वक्तव्य दिया था । विकासके नामपर हिंदुओंके धार्मिक श्रद्धास्थानोंकी ओर देखनेका शासनकर्ताओंका दृष्टिकोण, चाहे वे हिंदुत्ववादी हों या समाजवादी, एक ही होनेकी बात ध्यानमें आई । इसका कारण धर्मशिक्षाका अभाव ही है । श्री. मोदीके प्रधानमंत्री होनेकी संभावना होनेपर भी उन्हें धर्मशिक्षा देनेकी नितांत आवश्यकता है । अन्यथा उनके प्रधानमंत्री बननेपर, भारत एक विकसित देश होगा, किंतु उस देशमें ‘राम’ न होगा ! – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात)
मोदी ने जहां युवाओं को विकास और रोजगार के मंत्र दिए, वहीं धर्मनिरपेक्षता पर छिड़ी बहस को भी देश के विकास से जोड़ दिया। उन्होंने कहा कि धर्मनिरपेक्षता वही सही है, जो देश को विकास के रास्ते पर ले जाए। धर्मनिरपेक्षता का मतलब सर्वधर्म समभाव है। इसमें सभी के लिए न्याय है, लेकिन यह भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि किसी का तुष्टीकरण न किया जाए। देश और समाज की भलाई तभी होगी, जब इस धर्मनिरपेक्षता का पालन होगा। युवा भी उनकी बात से सहमत दिखे। तालियों से हॉल गूंज उठा। मोदी को अहसास था कि युवा अपने नेतृत्व को लेकर खासा जाग्रत होते हैं। लिहाजा, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह उनके निशाने पर थे।
कुछ मुलाकातों का हवाला देते हुए उन्होंने संकेत दिया कि केंद्र सरकार न तो कोई निर्णय ले सकती है और न ही कोई नई सोच अपना सकती है। खामियाजा देश भुगत रहा है। उन्होंने कहा कि नेतृत्व में फैसला लेने की क्षमता होनी चाहिए।
मोदी ने तकनीक का भी उल्लेख किया और कहा कि पारदर्शिता के लिए इसका उपयोग जरूरी है। महिलाओं के सशक्तिकरण, आधारभूत ढांचों के निर्माण जैसी समस्याओं को भी गुजरात मॉडल से जोड़ते हुए संकेत दिया कि देश को भी अब सशक्त नेतृत्व की जरूरत है। इंटरनेट और सोशल मीडिया पर सक्रिय युवाओं को भरोसा दिया कि वह उनके सपने अधूरे नहीं रहने देंगे।
उन्होंने अपील की कि देश के लिए कोई भी सुझाव हो तो वह कभी भी सोशल मीडिया के जरिए उनसे संपर्क साध सकते हैं। लगभग एक घंटे के भाषण में युवाओं की तालियों के शोर ने मोदी को जरूर बड़ा हौसला दिया होगा। आखिरकार मोदी उन्हें यह बताने से नहीं चूके कि बदलाव का रास्ता वोट से होकर गुजरता है। अगर युवा बदलाव चाहते हैं तो वे अपनी इस जिम्मेदारी को भी निभाएं।
'मुझे एक हिंदूवादी नेता के तौर पर पहचाना जाता है। मेरी छवि मुझे ऐसा कहने की अनुमति नहीं देती, लेकिन मैं यह कहने की हिम्मत कर रहा हूं कि पहले शौचालय फिर देवालय। गांवों में मंदिरों पर लाखों रुपये खर्च किए जाते हैं, लेकिन वहां शौचालय नहीं हैं।' – नरेंद्र मोदी
स्त्रोत : जागरण