अश्विन शुक्ल ६, कलियुग वर्ष ५११५
नई देहली : प.पू. आसारामबापूजी एवं उनके आश्रमके विरुद्ध जानबूझकर किया जा रहा नकारात्मक वृत्तांकन रोकने हेतु न्यायालय आदेश दे, ऐसी मांग करनेवाली याचिका सर्वोच्च न्यायालयमें प्रविष्ट की गई है । मुख्य न्यायाधीश पी. सदाशिवम्की खंडपीठके समक्ष ज्येष्ठ अधिवक्ता विकास सिंहने प.पू. बापूजीका पक्ष प्रस्तुत किया । इस याचिकापर २१ अक्तूबरको सुनवाई होगी ।
इस अवसरपर अधिवक्ता सिंहने न्यायालयमें कहा कि प्रसारमाध्यमोंद्वारा अचूक वार्तांकन करनेके लिए कोई आपत्ति नहीं है; परंतु प्रसारमाध्यमोंको प.पू. बापूजीका आश्रम एक प्रकारका वेश्यागृह है, इस प्रकार चित्रांकित करनेवाले वार्तांकन रोकने चाहिए । इन आश्रमोंमें लगभग १० सहस्र विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं । अतः इस प्रकारके वार्तांकनसे वे प्रभावित हो रहे हैं ।
हिंदुओ, प.पू. आसारामबापूजीपर लगाए गए आरोपोंके विरुद्ध आगे दिए अनुसार निषेध करें !
१. प.पू. आसारामबापूजीका अनादर करनेवाले समाचार प्रणालोंका बहिष्कार करें !
२. प.पू. आसारामबापूजीका अनादर करनेवाले कार्यक्रमका समर्थन करनेवाले प्रतिष्ठानोंके (कंपनियोंके) उत्पादोंका बहिष्कार करें !
३. संबंधित प्रणालोंको सूचित करें कि प.पू. आसारामबापूजीके विषयमें मिथ्या जानकारी प्रसिद्ध की जा रही है । इसलिए समाचार प्रणाल ब्लॉक किए गए हैं !
४. समाचारप्रणालोंके माध्यमसे हिंदुओंकी धार्मिक भावनाओंको आहत किया जा रहा है । इस संदर्भमें भारतके दूरसंचार परिवाद आयोगको लिखित रूपमें सूचित करें !
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात