अश्विन शुक्ल १०, कलियुग वर्ष ५११५
१. अन्य धर्मियोंकी धार्मिक संस्थाओंके पास सहस्रों कोटि रुपए होते हैं, किंतु हिंदू संस्थाओंके पास ५० कोटि रुपए भी न होना, हिंदू व्यापारियों हेतु लज्जास्पद है !
भामाशाह यदि महाराणा प्रतापको धन न देते, तो आज संपूर्ण राजस्थान मुसलमान राज्य हो जाता । आज धनके अभावसे हिंदू संस्था कार्य नहीं कर सकतीं । धन तो केवल व्यापारी ही दे सकते हैं । यदि धनके अभावसे हिंदू समाज नष्ट हुआ, तो सर्वप्रथम व्यापारियोंपर ही संकट आएगा । इसका सारा दोष व्यापारियोंको ही लगेगा । अन्य धर्मियोंकी धार्मिक संस्थाओंके पास सहस्रों कोटि रुपयोंका धन है; किंतु हिंदू संस्थाओंके पास ५० कोटि रुपए भी नहीं है । यह बात व्यापारियों हेतु लज्जास्पद है ।
२. भारतको पवित्र हिंदू राष्ट्र न बनाकर अपवित्र, अधार्मिक एवं चरित्रहीन धर्मनिरपेक्ष धर्मशाला बनानेवाले स्वार्थी धर्मनिरपेक्ष शासनकर्ता !
कुछ स्वार्थी धर्मनिरपेक्ष नेताओंने अपने राजकीय स्वार्थ हेतु ९० कोटि हिंदुओंका विश्वासघात कर इस देशको पवित्र हिंदू राष्ट्र न बनाकर एक अपवित्र, अधार्मिक तथा चरित्रहीन धर्मनिरपेक्ष धर्मशाला बनाई है । आज बहुसंख्यक हिंदुओंको दूसरी श्रेणीकी नागरिकताका स्थान प्राप्त हो रहा है । हिंदुओंका विश्वकल्याणकारी धर्म आज देशका प्रमुख धर्म नहीं है । हिंदुओंपर इतना अन्याय क्यों हो रहा है ?
३. कश्मीरके मुख्यमंत्री एक धर्मांध होनेके कारण वहां ३५ सहस्त्र हिंदुओंकी हत्या होनेपर भी ना तो उस घटनाका अन्वेषण किया गया और ना ही निषेध !
कश्मीरमें हिंदुओंपर भयानक अत्याचार किए गए; किंतु ‘युनाइटेड नेशन्स’ने कश्मीरी शरणार्थियोंकी किसी भी प्रकारसे सहायता नहीं की, अथवा उन अत्याचारोंका निषेध भी नहीं किया । कश्मीरमें ३५ सहस्र हिंदुओंकी हत्या की गई । उस घटनाका कोई भी अन्वेषण नहीं किया गया; क्योंकि वहांके मुख्यमंत्री एक धर्मांध थे ।
४. कश्मीरी हिंदुओंको विस्थापित होकर तंबूमें भिखारियों जैसा जीवन व्यतीत करना पड रहा है, ऐसी स्थितिमें एक भी उद्योगपतिद्वारा उनकी सहायता न करना लज्जास्पद है !
कश्मीरमें निःशस्त्र हिंदुओंपर आतंकवादियों द्वारा भयानक अत्याचार किए गए । उनकी आंखें निकाली गर्इं, हाथ पांव काट दिए गए, महिलाओंको तलवारसे चीर दिया गया; (संदर्भ : दैनिक इंडियन एक्सप्रेस, १७.९.१९९०); परिणामस्वरूप लगभग ४ लाख हिंदू कश्मीर छोडकर जम्मू तथा अन्य शहरोंमें फटे तंबुओंमें भिखारियों जैसा जीवन यापन कर रहे हैं; किंतु उन्हें किसी भी हिंदू उद्योगपतिने सहायता नहीं की । आत्मकेंद्रित वृत्तिसे पीडित निर्लज्ज हिंदू यहां भी मौन बैठे रहे ।
५. हिंदुओंको धर्मांधोंसे धर्मबंधुत्व सीखना आवश्यक !
पूरे विश्वमें कहीं भी १० मुसलमान मारे जाएं, तो संपूर्ण विश्वके मुसलमान चिल्लाना आरंभ करते हैं; क्योंकि उनमें धर्मबंधुत्व होता है । हिंदुओंको यह उनसे सीखना चाहिए । मां प्रथम रोते बच्चेको ही पहले दूध पिलाती है, इस न्यायसे लोकराज्यमें (लोकशाहीत) जो अपने अधिकारोंकी रक्षा हेतु समय आनेपर विरोध प्रकट करते हैं, उनके ही अधिकार सुरक्षित रहते हैं ।
– श्री. आनंदशंकर पंड्या, उपाध्यक्ष, विश्व हिंदू परिषद