अखिल भारतीय विचारकोंके परिषदकी स्थापनाकी आवश्यकता एवं राष्ट्रीय स्वरूप

सारणी


(सूचना : यह विषय अधिवेशनमें भाषणके स्वरुपमे प्रस्तुत किया जाएगा |)

१. समाजमें विचारकोंका महत्त्व तथा आजके लोकराज्यमें उनकी उपेक्षा होना

        हिंदुत्वका कार्य करनेके लिए उसके सभी अंग बहुत महत्त्वपूर्ण हैं । उनमें विचारकका स्थान भी महत्त्वपूर्ण है । किसी भी आंदोलनको निर्णायक मोड देनेके लिए विचारकोंका होना अत्यंत आवश्यक है । तानाशाही छोड संपूर्ण विश्वमें विकसित हुए सभी वैचारिक आंदोलनोंके पीछे जैसे साम्यवाद एवं समाजवाद विचारकोंका योगदान है । समाज निर्मितिके कार्यमें विचारक बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं । किंतु यह वास्तविकता होते हुए भी समाजके सभी घटकोंने इसकी उपेक्षा की है । एक समय प्राचीन राजा-महाराजाओंके दरबारमें विचारकोंका बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान हुआ करता था । राज कारोबार चलाते समय उनकी राय ली जाती थी; परंतु जैसे-जैसे धर्मपर आधारित प्रशासन व्यवस्था नष्ट होने लगी, उसीके साथ-साथ विचारकोंका महत्त्व भी न्यून होने लगा ।

        आजके लोकतंत्रमें विचारकोंका घटक ही सामाजिक जीवनसे लुप्त होनेसे वह तथा वह व्यक्तिवादतक ही सीमित रह गया है । इस कारण शासकोंकी ऐसी धारणा ही बन गई है कि ‘हम करें सो कायदा । विचारकोंका महत्त्व नष्ट होनेके पीछे आजका लोकराज्य ही उत्तरदायी है ।

२. विचारसामर्थ्यके आधारपर भी विधायक राष्ट्रका पुनर्निर्माण हो सकता है, यह स्पष्ट करनेवाला भारतका प्रभावशाली इतिहास

        विचारकोंके विषयमें बोलते समय इतिहासके कुछ व्यक्ति सामने आ जाते हैं । इनमें सबसे आदर्श हैं आर्य चाणक्य एवं महाभारतमें युधिष्ठिरको भी नीतिनियमका स्मरण करवानेवाले विदुर ! इन्हें देखकर यह समझमें आता है कि विचारवान व्यक्तियोंको कितने उच्च विचारोंके साथ कार्य करना चाहिए । प्राचीनकालकी ही नहीं अभीकी सोचें तो पेशवा दरबारके नाना फडणवीस जो नीतिकुशलके रूपमें विख्यात थे, उस समय उनकी भूमिका भी एक विचारवान व्यक्तिकी ही थी । विचारकोंके विचार सामर्थ्यसे राष्ट्रका पुनर्निर्माण हो सकता है यह इसका जीता जागता उदाहरण है ।

३. हिंदू राष्ट्रकी स्थापनामें विचारकोंका असामान्य महत्त्व

३ अ. हिंदू राष्ट्रकी स्थापनाके विषयमें लोगोंका प्रबोधन करना

        हम हिंदू राष्ट्रकी स्थापनाके विषयमें तथा विचारकोंके कार्यके बारेमें सोचें, तो आनेवाले समयमें उनकी भूमिका स्पष्ट हो जाती है । हिंदू राष्ट्रकी स्थापनाके लिए व्यापक जनाधार निर्माण करना आवश्यक है । इसलिए लोगोंमें हिंदू राष्ट्रकी स्थापनाके विचारोंका प्रसार करना तथा इस विषयमें जनजागरण करना आवश्यक है ।

३ अ १. विचारकोंपर समाजका विश्वास अभी भी दृढ एवं स्थिर है

        समाजमें होनेवाले प्रबोधन वर्तमान व्यवस्थाके विरोधमें क्रांतिके विचार लाते हैं । इसलिए शासक उनके विरुद्ध होते हैं । इसी प्रकारके प्रबोधनका दायित्व सदा शिक्षक, वार्तापत्र एवं विचारकोंपर रहता है । इनमें शिक्षक एवं वार्तापत्रको प्रचलित व्यवस्था व्यवसायिक मानती है । इसके लिए उनसे प्रबोधनकी अपेक्षा करना व्यर्थ होगा । यह हमारा सौभाग्य है कि विचारक अभी भी किसी प्रलोभनके सामने नहीं झुक रहे हैं । इसी कारण आज भी समाज उनपर विश्वास रखती है ।

        आधुनिकताके कारण प्रत्येक व्यक्ति हर एक बातका समाधान बौद्धिक स्तरपर ढूंढता है । इस प्रक्रियामें विश्वास एक महत्त्वपूर्ण अंग है । विचारक अपने विश्वासके प्राकृतिक गुणके साथ, अधिकारपूर्वक समाजको हिंदू राष्ट्रकी स्थापनाकी अपरिहार्यताके बारेमें बता सकते हैं ।

३ अ २. विचारसामर्थ्यके आधारपर भी समाजको सही मार्गपर ले जाना ही विचारकोंकी महत्वपूर्ण भूमिका है

        विचारक प्रत्येक घटनाको पृथक्करण एवं भविष्यकी दृष्टिसे देख सकते हैं तथा समाज, धर्म, एवं राष्ट्र पर होनेवाले उसके सकारात्मक परिणामका विश्लेषण कर सकते हैं । विचारक स्वयंका संगठन निर्माण नहीं कर सकते, किंतु वे संगठित समाजको दिशा अवश्य दे सकते हैं । यह सामर्थ्य विचारकोंको हिंदु राष्ट्रकी स्थापनामें लगाना चाहिए ।

४. हिंदुत्वका कार्य सक्षमरूपसे करनेके विषयमें विचारक क्या कर सकते हैं ?

४ अ. हिंदू धर्मका महत्त्व बताना

        हिंदुत्व, यह सबको पुरानी संकल्पना लगती है । इसका एकमात्र कारण हिंदू धर्मके प्रति लोगोंकी अज्ञानता ही है । विचारक हिंदू धर्मका महत्त्व समाजको बताएं । विचारक विविध पत्रिकाओंमें लिखें तथा हिंदुत्वके लिए हानिकारक घटनाओंके विरोधमें निररंतर प्रतिकार करें । तो यह उनका अमूल्य योगदान ही होगा । वर्तमान समयकी मांग यही है कि जो लोग हिंदु धर्मकी परंपराओं असत्य एवं की निराधार एवं विकृत आलोचना करते हैं, विचारकोंको अभ्यासपूर्ण लेखोंद्वारा उनका खंडन करनेकी आवश्यकता है ।

४ आ. दूरदर्शनपर हिंदुत्वके संदर्भमें आयोजित चर्चासत्रोंमें हिंदुत्वका पक्ष प्रभावीरूपसे रखना

        हमारा अनुभव यह है कि दूरदर्शनके कुछ ऐसे चैनल हैं जिन्हें हिंदुत्वके विषयमें बोलनेवाले वक्ताओंकी सदैव आवश्यकता रहती है । ‘हिंदू जनजागृति समिति’ एवं ‘सनातन संस्था’ हिंदुत्व तथा धर्मशास्त्रके लिए बातें करते हैं, यह जाननेके उपरांत उन्होंने इन दोनोंको गणेशपूजाका शास्त्र एवं ग्रहण काल आदि धार्मिक विषयोंपर तथा हिंदू त्यौहारोंमें होनेवाले अनाचार, हिंदु धर्मके विरुद्ध पारित किए गए कानून, धार्मिक तथा सामाजिक दृष्टिसे ‘लिव इन रिलेशनशिप’, तथा लिंगपरिवर्तन आदि विषयोंपर बोलनेके लिए आमंत्रित किया गया । इस प्रकार विचारक चाहें तो इसमें रुचि दिखा सकते हैं तथा इसमें अग्रसर रह सकते हैं । जो विचारक बोलना चाहते हैं उनके नाम हम अपने परिचित चैनलको सुझाएंगे ।

४ इ. इंटरनेटके माध्यमसे देशके नवयुवकोंको अनुकूल दिशा देना

        आजका युग सूचना एवं तंत्रज्ञानका युग है । हमारे देशके करोडों नवयुवक घंटों इंटरनेटका प्रयोग घंटकरते हैं । फेसबुक तथा ब्लॉगके माध्यमसे प्रतिदिन उनके संपर्कमें रहकर उनके विचारोंको हिंदुत्वके विषयमें सकारात्मक दिशा दे सकते हैं ।

४ ई. अन्य प्रसारमाध्यमोंका उपयोग करना

        हिंदुत्ववादी नियतकालिक, वेबसाइट (जालस्थान) के माध्यमसे समाजको दिशा दे सकते हैं ।

५. हिंदू राष्ट्रके लिए विचारोंकी दिशा कैसी हो ?

        विचारक हिंदू समाजका नेतृत्व करें, यह हमारी सामान्य अपेक्षा है । इस नेतृत्वमें धार्मिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक, इन तीनों अंगोंका समावेश हो । हिंदू समाजका नेतृत्व करते समय विचारक अपनी भूमिका आगे दिए अनुसार रखें ।

५ अ. धार्मिक श्रद्धाओंका आदर करना

        विचारक हिंदुओंके सभी देवी-देवता, धर्मग्रंथ, परंपरा, त्यौहार एवं व्रतपर विश्वास करते हैं । इस कारण हिंदुओंकी श्रद्धा इन सबमें बिखर गई है । इसीलिए उन्हें संगठित करते समय हमें उनके श्रद्धास्थानोंका आदर करना चाहिए ।

५ आ. जाति-पातिउठके परे जाकर व्यापक स्तरपर विचार करना

        हिंदु संतों एवं राष्ट्रपुरुषोंको उनकी जातियोसे परे रखकर, उन्हें केवल एक हिंदूके रूपमें देखें । तथा उनकी दी हुई सीखको १०० प्रतिशत सत्य मानकर, उसका आदर करें ।

५ इ. हिंदूहितके आडे आनेवाली संकल्पनाओंका बहिष्कार करें

        आज अनेक हिंदू ‘हिंदूमुस्लि म भाई-भाई’ बोलते हैं, परंतु एक भी मुसलमान ऐसा कभी नहीं कहता है । इसलिए मुसलमान तथा ईसाइयोंके प्रति हमारा यह एकतरफा प्रेम हमें महंगा पडेगा । सर्वधर्मसमभाव जैसी संकल्पनाओंका विचारकोंद्वारा निषेध होना अत्यंत आवश्यक है ।

५ ई. धर्मको प्रमाण माननेके लिए आग्रह करें

        धर्मके विषयमें अपनी संकल्पनाओंको स्पष्ट करते समय अपनी व्यक्तिगत रायको एक ओर ररखकर धर्मको प्रमाण माननेके लिए आग्रही रहें ।

६. विचारकोंमें परस्पर समन्वय एवं विचारोंके आदान-प्रदानकी आवश्यकता क्यों है ?

६ अ. समन्वयसे परिणाम बढते हैं

        किसी भी क्षेत्रमें यदि समन्वय होगा, तो ही कार्यमें सुसूत्रता आती है । यदि कार्यका विभाजन कर उस क्षेत्रके जानकार व्यक्तिको/विशेषज्ञको उसे संभालने दे दिया जाए, तो उस कार्यकी फलोत्पत्ति अधिक प्रभावकारी होगी । इसलिए सभी विचारक यदि एक दूसरेके संपर्कमें रहें, तो वे एक-दूसरेके कार्यसे परिचित होंगे । इससे किसी भी क्षेत्रमें किसी भी कार्यको प्रभावी ढंगसे करनेके लिए वे एक-दूसरेकी सहायता भी कर पाएंगे ।

६ आ. ज्ञान तथा अनुभवमें वृद्धि होते जाना

        विचारोंका आदान-प्रदान ज्ञान समृद्ध होनेका लक्षण है । एक व्यक्ति सभी क्षेत्रोंके विषयमें जानकारी नहीं रख सकता । उस क्षेत्रमें काम करनेवालोंसे बातचीत एवं विचारविमर्श करनेसे ही जानकारी बढती है । उस दृष्टिकोणसे केवल विचारक ही नहीं, अपितु हिंदुत्वके हितमें कार्य करनेवाले सभीको सर्वदा एक-दूसरेके साथ विचार, अनुभव तथा त्रुटियां टालनेके लिए त्रुटियोंका भी आदान-प्रदान करना चाहिए ।

७. जब समाजके सभी अंग संगठित हो रहे हैं तो विचारक संगठित क्यों नहीं हो पाते ?

        समय-समयपर हिंदुत्वकी दिशा निश्चित करना, विचारोंका आदान-प्रदान करना तथा एक-दूसरेके साथ समन्वय रखनेके लिए एक मंचका होना अति आवश्यक है । आज सर्व क्षेत्रोंके लोग संगठित हैं, इसलिए कि उनका एक मंच है । परंतु विचारकोंका ऐसा कोई मंच नहीं है । व्यक्तिगत लाभके लिए समाजके विभिन्न अंग जब संगठनोंके नामपर एक साथ आ रहे हैं तो समाज, राष्ट्र एवं धर्म के लिए कार्य करनेवाले विचारक अलिप्त रहकर कार्य क्यों कर रहे हैं ? एक सामान्य हिंदुत्ववादीके रूपमें यह प्रश्न मेरे समक्ष खडा है ।

८. विचारकोंके संगठित होनेसे हिंदुत्वको कौनसे लाभ होंगे ?

        जो विचारक आज अलग रहकर कार्य कर रहे हैं, वे यदि संगठित हो जाएं,, तो हिंदू राष्ट्रकी संकल्पनाको एक पृथक पहचान मिल जाएगी । हिंदू राष्ट्रकी संकल्पनाको राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय स्तरपर जनाधार प्राप्त करवानेके लिए विचारकोंकी महत्त्वपूर्ण भूमिका होगी । हिंदुत्ववादी संगठन समाजमें जाकर हिंदू राष्ट्रके लिए क्रांति करेंगे तथा विचारक राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तरपर उसकी आवश्यकता बताएंगे । सभीके संगठित होनेसे ही इतना व्यापक कार्य सरलतापूर्वक हो सकता है ।

९. विचारक किस माध्यमसे संगठित हों ?

        हमारी यह अपेक्षा है कि हिंदू राष्ट्रके कार्यको गति प्रदान करनेके लिए सभी हिंदुत्ववादी विचारकोंकी एक राष्ट्रीय परिषद हो तथा उसका संचालन भी विचारक ही करें । इसके लिए विचारक जो सहायता चाहते हैं, उसे हम सभी हिंदुत्ववादी संगठन अपना धर्मकर्तव्य मानकर करनेके लिए तैयार हैं ।

९ अ. विचारकोंकी परिषद राष्ट्रीय स्तरपर कैसे कार्य करे ?

१. परिषदका गठन कर उसके माध्यमसे कार्य करनेवाले विचारकोंके नामोंकी सूची बनाएं/नाम प्रविष्ट करें ।

२. वे विचारक आगे जाकर कौनसा कार्य करेंगे, यह सुनिश्चित करें ।

३. प्रत्येक माह एक-दो बार इंटरनेटके माध्यमसे सहभागी सर्व विचारकोंकी बैठक हो । उसमें जो भी कार्य सुनिश्चित किए गए हैं, उनका अवलोकन किया जाए । इस दिशामें विचारकोंकी परिषदका कार्य जारी रहे, ऐसी मैं समस्त हिंदू समाजकी ओरसे आप सभी विचारकोंसे विनती करता हूं ।

        इसी अधिवेशनमें ‘हिंदू विचारकोंकी परिषद’ स्थापित करनेकी दृष्टिसे उपस्थित विचारक आगेकी चर्चा आरंभ करें, ऐसी विनती करता हूं ।

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